अनिल यादव
मेरे सामने जम्मू-कश्मीर से संबंधित दो तस्वीरें हैं। यूं तो तस्वीरें और भी हैं लेकिन मैं जिन दो पक्षों पर बात करना चाहता हूँ उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए ये दो तस्वीरें ही पर्याप्त हैं।
इनमें से एक तस्वीर, उन तस्वीरों में से एक है जिन पर जम्मू-कश्मीर के तीन फोटो जर्नलिस्टों को पिछले दिनों पुलित्जर पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। जिस तस्वीर को मैंने अपनी बात कहने के लिए चुना है वह फोटोजर्नलिस्ट यासीन डार द्वारा ली गई है। इस तस्वीर में मुंह पर कपड़ा बांधे एक पत्थरबाज उछल कर बख्तरबंद सुरक्षा वाहन पर पत्थर से हमला करता नजर आ रहा है।
इस तस्वीर को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के बाद वहाँ की स्थिति बताने वाली तस्वीर मानते हुए पुलित्जर पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है।
जम्मू-कश्मीर पर भारत सरकार के रुख का विरोध करने वालों को ये एक पुरस्कृत करने लायक तस्वीर लग सकती है और उन्हें लग भी रही है। यही वजह है कि फोटोग्राफर को बधाइयाँ भी खूब दी गईं है। इस पर विरोधी स्वर भी उठे हैं, लेकिन सुनना चाहें तो यह तस्वीर कुछ और भी कहती है।
यह तस्वीर यह भी बताती है कि जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर के ये हालात हैं, तो उस समय कैसे रहे होंगे जब राज्य को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 वहाँ लागू थी?
यह तस्वीर यह भी बताती है कि आखिर वे कैसी भयानक परिस्थितियाँ रही होंगी जब जम्मू-कश्मीर की स्थिति को नियन्त्रण में लाने के लिए केंद्र सरकार को, अपने परम्परागत रुख को बदल कर वहाँ का विशेष दर्जा खत्म करना पड़ा।
जम्मू-कश्मीर पर भारत सरकार के मौजूदा रुख से असहमत वर्ग आरोप लगाता रहा है कि वहाँ हमेशा से भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात रहा है, जिसकी संख्या धारा 370 हटाने के बाद अब और भी बढ़ा दी गई है।
यदि यह तस्वीर सचमुच जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किये जाने के बाद की ही है तो फिर तो, ये तस्वीर यह भी बताती है कि वहाँ इतना अधिक सुरक्षा बल मौजूद होने के बाद भी वे वहां कितने संयम से काम ले रहे हैं?
क्योंकि एक अकेला पत्थरबाज यूं उछल कर इतने निर्भीक तरीके से सशस्त्र सुरक्षा बल के बख्तरबंद वाहन पर तभी पत्थर मार सकता है जब उसे आत्मविश्वास हो कि जवाब में उस पर वैसा बल प्रयोग नहीं किया जाएगा जैसा आमतौर पर किया जाता है। ऐसा आत्मविश्वास किसी में तभी आ सकता है जब उसे सुरक्षा बलों का पिछला यह रिकार्ड पता हो कि यथासंभव वे सख्त कारवाई नहीं करते।
वैसे प्रसंगवश यह जानना ठीक रहेगा कि पुलित्जर पुरस्कार अमेरिका के विख्यात खोजी पत्रकार जोसेफ पुलित्जर के नाम पर दिए जाते हैं। इसमें विजेता को सर्टिफिकेट सहित 15 हजार डॉलर नकद मिलते हैं।
पुलित्जर पुरस्कार के लिए चयनित इन तस्वीरों पर उंगलियां भी उठाई जा रही हैं और काफी राजनैतिक बयानबाजी भी हुई है। लेकिन सबसे निराले ढंग से, अप्रत्यक्ष सवालिया निशान लगाया है, जम्मू-कश्मीर के एक पुलिस अधिकारी इम्तियाज हुसैन मीर ने।
उन्होंने पिछले सप्ताह अपने ट्विटर एकाउंट पर एक रोती-बिलखती स्कूली छात्रा की तस्वीर यह कहते हुए शेयर की है कि ‘’मानवता की अंतरात्मा को झकझोर कर रख देने वाली तस्वीर… 2017 में कश्मीर में शहीद हुए एक पुलिसकर्मी की शोक संतप्त बेटी। क्या इस तस्वीर के लिए कोई पुरस्कार है?’’ उल्लेखनीय है कि इस छात्रा के पिता आतंकवादियों की गोलियों का शिकार बन गए थे।
अब आप खुद इन दोनों तस्वीरों को देखिये और जम्मू-कश्मीर के बारे में सोचिये?
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टीम मध्यमत