साँप से डरें नहीं,जहर का कारोबार सीख लें

जयराम शुक्ल

डेल कारनेगी जीवन प्रबंधन के विश्वविख्यात गुरू माने जाते हैं। उनकी दो पुस्तकों- ‘लोक व्यवहार’ व ‘चिंता छोड़ो सुख से जियो’ के नाम सबसे ज्यादा बिकने और पढ़ी जाने वाली पुस्तकों में है। इन पुस्तकों की विशेषता यह कि इनमें न गप्प है न लेखकीय परिकल्पना। जो वास्तव में हुआ वही लिखा। कुछेक कहानियां तो ऐसी भी हैं जो मौत के एक सेंकड पहले जीवन दृष्टि बदल देती हैं। आज इन्हीं में से एक कहानी की चर्चा करते हैं।

बड़े बाँध की योजनाएं किसानों को भारी मुसीबत लाने वाली होती हैं। जैसे नर्मदा के इंदिरा सागर बाँध में हरसूद जैसे हँसते-खेलते शहर डूब गए। ऐसे ही दुनियाभर में हजारों शहरों और अरबों हेक्टेयर की काश्त की भूमि जल में समाधिस्थ हो गई। यह कहानी अमेरिका के एक प्रांत फिलाडेल्फिया की है।

बड़े बाँध की योजना में कई किसानों के खेत डूब में आ गए। ज्यादातर ने मुआवजे की राशि से धंधे-रोजगार बदल लिए। एक किसान अड़ियल निकला। उसने सरकार से मुआवजा लेने की जगह डूब की जमीन के एवज में जमीन ही माँग ली। खिसियाए अधिकारियों ने सबक सिखाने की मंशा से उसे छाँटकर बंजर व झाड़ झंखाड़ वाली जमीन दे दी।

किसान सरकार से मिली इस जमीन पर खेती करने पहुंचा। उजाड़-बंजर जमीन से भी वह निराश नहीं हुआ। किराये के ट्रैक्टर मँगवाए व मजदूरों को जमीन में लगा दिया ताकि उसे खेती लायक बनाया जा सके। शाम होते-होते उसके खेती के मंसूबों पर पानी फिर गया, क्योंकि उस बंजर जमीन में खतरनाक जहरीले साँपों का डेरा था। चार मजदूर साँप के डसे जाने से मर गए।

जमीन अभिशप्त घोषित हो गई। कोई भी मजदूर काम करने को तैयार नहीं। हफ्ते दस दिन तक किसान अपने परिवार के भविष्य को लेकर गुनता-धुनता रहा। सामने अँधेरा था और उसे कुछ सूझ नहीं रहा था। गहरे अवसाद में उसने आत्महत्या करने की ठानी।

दिन ढले वह गहरी झील के किनारे पहुँचा। मरने से पहले वह अतीत का स्मरण करने लगा। जिंदगी में भूल चूक के लिए अंतरमन से उसने सबसे क्षमा माँगी। वह छँलाग लगाने ही वाला था कि उसके दिमाग में बिजली की तरह एक विचार कौंधा। वह ठिठका और क्षण भर में ही मरने का विचार स्थगित करके लंबे कदमों से घर की ओर लौट पड़ा।

दूसरे दिन सुबह होते ही वह सपेरों की बस्ती में पहुंचा जो साँपों को पकड़ने का काम करते थे। उसने वहां आठ-दस लोगों से बात की। सभी मेहनताने की शर्त पर तैयार हो गए। बंजर जमीन के बिलों से साँपों को पकड़ने का काम शुरू हुआ। पहले ही दिन पचास साँप पकड़कर एक पेटी में कैद कर दिए गए। सभी श्रमिकों को मेहनताना देने के बाद उसने ऐलान किया- इन साँपों का जहर निकालने पर वह दोगुना मेहनताना देगा। सँपेरे बिष निकालने को तैयार हो गए।

दूसरे दिन किसान ने अखबारों में इश्तहार दिया कि उसके पास कोबरा, करैत जैसे बीस अत्यंत जहरीली प्रजाति के साँपों के विष हैं। शाम तक उसके घर विष के खरीदारों की लाइन लग गई। विष की कीमत दिए गए मेहनताने से एक हजार गुनी ज्यादा थी। अमेरिका की बड़ी मेडिकल लैब्स के प्रतिनिधियों ने उससे विष उपलब्ध कराने का मँहगा अनुबंध कर लिया।

एक ओर जिस जमीन से नाउम्‍मीद होकर वह मरने जा रहा था उसी जमीन की बदौलत उसे इतने डॉलर का अनुबंध मिल गया जिसकी रकम जमीन की कीमत से भी ज्यादा थी।

उसने साँपों की नर्सरी बनाई और उनके जहर की तिजारत शुरू कर दी। देखते ही देखते वह बंजर जमीन स्नेक पार्क में बदल गई। किसान फिलाडेल्फिया के अमीरों में आ गया। स्नेक पार्क वाइल्ड लाइफ टूरिज्म का बड़ा ठिकाना बन गया। वह किसान कुछ वर्षों बाद न्यूयार्क में रहने लगा तथा स्नेक पार्क जाने के लिए अपने प्रायवेट जेट का इस्तेमाल करता।

सबक- साँप से न निपट सको तो उसके जहर की तिजारत शुरू कर दो।

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अवसाद को प्रफुल्लता में, निराशा को आशा में बदलने का यह श्रेष्ठ उदाहरण है। यह बताता है कि संकट को कैसे अवसर में बदला जा सकता है। इस कोरोना काल में बहुत से ऐसे हैं जो अवसाद की ओर प्रस्थित हैं।

इस समय आप देखेंगे तो कई उत्साहजनक कथाएं सामने आ जाएंगी। मेरे एक मित्र बता रहे थे कि फलाँ साहब अपने लड़के की नशाखोरी से परेशान थे। देश के हर बड़े अस्पताल में, नशामुक्ति केंद्रों में अपने बेटे को दिखाया। कोरोना उनके लिए राहत लेकर आया। लड़के के दिमाग से नशे का असर कम होने लगा। कुछेक दिन बेचैनी में रहा फिर अब सँभल रहा है।

लाखों रुपये खर्च करने का जो असर नहीं दिखा वह कोरोना ने कर दिखाया। न जाने ऐसे कितनी बड़ी संख्या में लोग होंगे जिनका नशा बिलकुल ही बंद हो गया होगा। शराब, गाँजा, कोरेक्स व अन्य नशीली दवाओं के उपलब्‍ध न हो पाने ने बिना नशे के रहने का आदी बना दिया।

खान-पान संयमित होने से अन्य बीमारियां घट गईं। बीमारी से ज्यादा लोग दुर्घटनाओं में मरते थे। दुर्घटनाएं अपेक्षाकृत कम हो गईं। नदियां साफ हो गईं। जंगल हरहराने लगे। वन्यप्राणी सड़कों पर निर्द्वन्द दिखने लगे। हिमालय के दर्शन कुरुक्षेत्र से होने लगे। हवा शुद्ध हो गई, आसमान साफ हो गया। ओजोन होल भर गया।

कोरोना काल में अर्जित कार्बन क्रैडिट की बाजारू कीमत आँकें तो वह अकेले कोरोना से हुए नुकसान की भरपाई करने में समर्थ है। अस्थमा के मरीजों के कष्‍ट पर लगाम लग गई। घर में रहने से फैमिली बांडिंग और मजबूत हुई।

और सबसे बड़ी बात यह कि इस कोरोना काल में करोड़ों, अरबों जीवधारियों की जिंदगियाँ बच गईं, जिन्हें अब तक कटकर पेट में हजम हो जाना था। क्या उनकी मूक दुआओं का कोई मूल्य आँक सकते हैं, नहीं ना… सो कोरोना के कृष्णपक्ष में रहते हुए इसके शुक्लपक्ष के बारे में आज से ही सोचना शुरू कर दीजिए।

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निवेदन

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टीम मध्‍यमत

 

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