अजय बोकिल
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सपरिवार भारत की 36 घंटे की यात्रा की (भारत के लिहाज से) ठोस परिणति 3 अरब डॉलर के रक्षा सौदों तथा गैस व तेल समझौतों के रूप में हुई, लेकिन अमेरिका में इसे खास महत्व नहीं मिला। गोया यह तो होना ही था। भारत की दृष्टि से सबसे बड़ी बात ट्रंप द्वारा सीएए लागू करने और कश्मीर में धारा 370 हटाने के मुद्दे पर मोदी सरकार का बचाव था। माना जा सकता है कि ट्रंप की खातिरदारी पर जो 100 करोड़ खर्च किए गए, उसका पुरस्कार भारत को अमेरिकी सरकार के समर्थन के रूप में मिला। ट्रंप ने साफ कहा कि यह ‘भारत का अंदरूनी मामला’ है। उन्होंने ऐलानिया तौर पर यह भी कहा कि मोदी सभी धर्मों की स्वतंत्रता के हामी हैं।
ट्रंप के इस बयान को भारत की कूटनीतिक जीत माना जा रहा है। वहीं यह बयान सीएए को संविधान विरोधी बताने वालों के लिए झटका भी है। यकीनन ट्रंप की यह यात्रा फिलहाल मोदी सरकार के स्टैंड को मजबूती ही देगी। अपनी पत्रकार वार्ता में ट्रंप ने पूरी सावधानी बरती कि उनके श्रीमुख से ऐसा कुछ न निकले, जो मोदी सरकार को मुश्किल में डाल दे। हालांकि यह गारंटी कोई नहीं दे सकता कि विवादास्पद मुद्दों पर ट्रंप का रुख स्वदेश लौटने भी वही रहेगा, जो उन्होंने मंगलवार को भारत में जताया।
ट्रंप जैसे भी हों, लेकिन वो दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। इसलिए भारतीय मीडिया में उनकी यात्रा को भरपूर कवरेज मिलना ही था और मिला भी। अगर दिल्ली की हिंसा न होती तो शायद दो दिन तक टीवी चैनलों का एकसूत्री मीनू यही होता। भारत में ‘अतिथि देवो भव’ की तर्ज पर ट्रंप फैमिली का भरपूर सत्कार हुआ। मौज-मस्ती भी हुई। ट्रंप के संदर्भ में तो इसे ‘अतिथि महा देवो भव’ भी कहा जा सकता है। लेकिन ट्रंप जिस असल मकसद से भारत आए थे, वह आंशिक रूप से ही पूरा हुआ। जो पूरा हुआ, वह है मोदी के बहाने अमेरिका के भारतवंशी वोटरों को रिझाना। जो अपूरा रहा, वह है भारत के साथ बड़ी ट्रेड डील (व्यापार समझौता)। अमेरिका चाहता था कि भारत टैरिफ में रियायत दे और अमेरिकी उत्पादों के लिए नए कृषि क्षेत्र खोले। इस मुद्दे पर अगर समझौता नहीं हो सका तो इसका अर्थ यही है कि मोदी सरकार ने भारत के हितों से समझौता नहीं किया। वास्तव में ऐसा है तो यह संतोष की बात है।
जहां भारतीय मीडिया में दो दिनों तक ट्रंप की यात्रा पहली सुर्खी रही, वहीं यह देखना उतना ही दिलचस्प है कि खुद अमेरिका में ट्रंप की भारत यात्रा को कितना कवरेज मिला। अमेरिकियों की नजर में ट्रंप की भारत यात्रा का क्या महत्व रहा? इस लिहाज से अमेरिकी मीडिया पर एक नजर डालें। ‘यूएसए टुडे’ संयुक्त राज्य अमेरिका का सर्वाधिक प्रसार वाला अखबार है। इसके मंगलवार के वेब संस्करण को देखें तो अखबार के लिए अमेरिका की भारत से डिफेंस डील से ज्यादा महत्वपूर्ण हॉलीवुड के मूवी मुगल हार्वे विन्स्टीन के बारे में ट्रंप द्वारा दिल्ली में किया गया राजनीतिक कटाक्ष था कि ‘‘ मैं उनका (वीन्स्टीन) प्रशंसक कभी नहीं रहा। मिशेल ओबामा और हिलेरी क्लिंटन जरूर उन्हें ‘चाहती’ थीं।‘’ ट्रंप ने इसी बहाने अपने राजनीतिक विरोधियों को धोया। हार्वे विन्स्टीन वो शख्सियत हैं, जिन पर 87 अमेरिकी महिला सिने हस्तियों ने क्रूर यौन शोषण के आरोप लगाए, जिनमें से दो कोर्ट ने सही पाए और विन्स्टीन को अदालत ने 25 साल जेल की सजा सुनाई। अखबार ने बाकी बातों को ज्यादा महत्व नहीं दिया।
अमेरिका के ज्यादातर अखबारों के वेब संस्करणों में मंगलवार की लीड खबर कोरोना वायरस ही थी। ट्रंप की भारत यात्रा को बहुत नीचे जगह मिली है। मसलन ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने जरूर ट्रंप की मोदी से मुलाकात को महत्व दिया। दूसरी लीड के रूप में खबर का शीर्षक था ‘ धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर ट्रंप द्वारा मोदी का बचाव।‘ अलबत्ता ‘ द वाशिंगटन टाइम्स’ ने ट्रंप द्वारा भारतीय उद्योगपतियों को कोरोना वायरस के खतरों और अमेरिका द्वारा उससे निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों की जानकारी देने को सुर्खी बनाया है। एक और प्रमुख अखबार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने ‘ट्रंप मोदी’ की दोस्ती को ‘ब्रोमांस’ करार देते हुए सवाल किया कि इस दोस्ती के पीछे क्या है?
ज्यादातर अमेरिकी अखबारों ने कोरोना वायरस के अलावा मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के निधन को प्रमुखता दी है। ‘लास एजेंल्स टाइम्स’ की तो यह प्रमुख खबर ही थी। मोटे तौर सभी अखबारों ने ट्रंप की यात्रा के बावजूद भारत से बड़ी ट्रेड डील न हो पाने पर निराशा जाहिर की है।
ट्रंप परिवार की भारत यात्रा के पहले दिन यानी सोमवार का अमेरिकी अखबारों में कवरेज और दिलचस्प था। मसलन ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने अपने कवरेज में सबसे ज्यादा अहमियत राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में परोसे गए ब्रोकली समोसे को दी। अखबार ने लिखा-“ट्रंप की भारत यात्रा के लिए बनाया गया ब्रोकली समोसा किसी को पसंद नहीं आया और ट्रंप ने भी हाथ नहीं लगाया।” बता दें कि आलू-मटर की जगह ब्रोकली-कॉर्न भरावन वाला यह समोसा खास ट्रंपजी के लिए तैयार किया गया था। अमेरिकी न्यूज संस्थान ‘न्यूजवीक’ ने पहले ही बता दिया था कि ट्रंप के सीएए विरोध पर मोदी से बात करने की संभावना बहुत कम है। अखबार ने अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से कहा कि अगर इस मुद्दे पर बात हुई तो इससे गलत संदेश जाएगा। एक अन्य अखबार ‘वाशिंगटन एग्जामिनर’ की सलाह थी कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अधिनायकवादी आंतरिक नीतियों और विवादित क्षेत्र कश्मीर पर उनकी सरकार की नीति को देखते हुए अमेरिका की नीति भारत को हथियार बेचने की जगह उत्पादक व्यापारिक कूटनीति की होनी चाहिए।
एक बड़े मीडिया प्रतिष्ठान एमएसएनबीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति अपने दिखावे और उत्सव में यक़ीन रखते हैं और विदेशी अधिकारियों ने उनकी इस आत्ममुग्धता को सहलाना सीख लिया है। रिपब्लिकन पार्टी से ताल्लुक रखने वाले ट्रंप को नीति, संस्कृति और इतिहास में कोई दिलचस्पी नहीं है। न्यूयार्क के एक मीडिया संस्थान ‘क्वार्ट्ज’ ने ट्रंप की भारत यात्रा के संदर्भ में अपनी रिपोर्ट में अहमदाबाद में झुग्गियों के सामने बनाई गई दीवार को तरजीह दी। अखबार ने सरणियावास झुग्गी बस्ती की एक महिला के हवाले से कहा कि ‘यह अंग्रेजों की गुलामी है।‘ अमेरिकी पत्रिका ‘द अटलांटिक’ ने तो साफ लिखा कि ट्रंप जो आज करना चाहते हैं, वह मोदी पहले ही कर चुके हैं। ट्रंप मुस्लिमों को बैन करना चाहते हैं, मोदी यह पहले ही कर चुके हैं।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति ट्रंप के अमेरिकी मीडिया से ‘मधुर’ तो क्या ठीक-ठाक रिश्ते भी नहीं हैं। उनका साफ मानना है कि मीडिया केवल फेक न्यूज देता है। लेकिन ‘गोदी मीडिया’ जैसा शब्द भारत के अलावा शायद ही किसी लोकतांत्रिक देश में चलता हो। अमेरिकी मीडिया की अपनी ठसक, टेक और प्रतिबद्धता है। वो ट्रंप को केवल इसलिए भर तवज्जो नहीं देता कि वो देश के राष्ट्रपति हैं। वो काने को काना कहने से नहीं चूकता।