सरयूसुत मिश्रा 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तारीफ क्या की, राजस्थान कांग्रेस में लगी आग फिर से धधक गई है। मोदी ने गहलोत को अपना सीनियर क्या बताया, सचिन पायलट ने अशोक गहलोत की तुलना गुलाम नबी आजाद की मोदी द्वारा की गई तारीफ से कर दी। गुलाम नबी आजाद अब कांग्रेस छोड़ चुके हैं। जब मोदी ने संसद में उनकी तारीफ की थी तब से ही कांग्रेस में ऐसा कहा जाने लगा था कि गुलाम नबी आजाद अपना रास्ता बदलने वाले हैं। अब गहलोत भी उसी रेंज में आ गए हैं।

पीएम मोदी द्वारा गहलोत की तारीफ को जोड़कर सचिन पायलट ने राजस्थान में आलाकमान की हुई बेइज्जती का मामला फिर से उठा दिया है। पायलट का कहना है कि विधायक दल की बैठक से पहले जिन्होंने विद्रोह किया, जिनके खिलाफ कार्रवाई के लिए नोटिस दिया गया था, उसको ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता, अनिश्चय की स्थिति समाप्त करनी ही पड़ेगी।

कांग्रेस पार्टी, अध्यक्ष के निर्वाचन से अभी निपटी है और नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने राजस्थान का संकट फिर से खड़ा हो गया है। पहले भी खड़गे और अजय माकन आलाकमान के पर्यवेक्षक बनकर जयपुर गए थे और उनके सामने ही अशोक गहलोत प्रायोजित विधायक विद्रोह को अंजाम दिया गया था।

राजनीति में विरोधी नेताओं की तारीफ़ कोई नई बात नहीं है। पहले भी ऐसा होता रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तो विरोधी दल के नेता के रूप में इंदिरा गांधी की तारीफ की थी। मोदी भी राजनीतिक शिष्टाचार में कांग्रेसी नेता की प्रशंसा करते हैं तो उसमें राजनीति तलाशना कहां तक उचित है?

गुलाम नबी आजाद कितनी बार सफाई दे चुके हैं कि संसद में विदाई के समय पीएम मोदी ने उनको लेकर जो भाषण दिया था वह एक दुर्घटना में मदद के संदर्भ में कही गई भावनात्मक बात थी। आजाद की मोदी द्वारा की गई तारीफ कांग्रेस में लंबे समय तक नेताओं के बीच खींचतान का विषय बनी रही। अंततः गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बना ली। 

गहलोत के मामले में परिस्थितियां असामान्य हैं। गहलोत को गांधी परिवार का करीबी माना जाता है। इसके बाद भी विधायक दल की बैठक नहीं करते हुए विधायकों द्वारा आलाकमान के खिलाफ विद्रोह को कांग्रेस में बहुत गंभीरता से लिया गया है। वर्तमान में कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भले ही परिस्थितियों के कारण चुप हों लेकिन गहलोत के इशारे पर जयपुर में जो कुछ भी हुआ था उसका सीधा असर उन पर ही पड़ा था।

अब मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने ‘सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने’ जैसी स्थिति बनी है। राजस्थान में एक साल बाद चुनाव है। अशोक गहलोत को रखने या हटाने का फैसला कांग्रेस के लिए बहुत कठिन फैसला हो सकता है। सचिन पायलट युवाओं के बीच लोकप्रिय माने जाते हैं। अगले चुनाव में उनकी अहम भूमिका हो सकती है। गहलोत और पायलट के बीच किसी प्रकार के समझौते की गुंजाइश दिखाई नहीं पड़ रही है। दोनों के बीच में राजनीतिक टकराव चरम पर है और  आलाकमान असमंजस की स्थिति में है। 

राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा अभी तक बनी हुई है। इस दृष्टि से अगले चुनाव में बीजेपी की सरकार बनने का क्रम है। अशोक गहलोत इस परंपरा को बदल सकेंगे इसके कोई मजबूत संकेत अभी दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। पायलट और गहलोत समर्थकों के बीच मची राजनीतिक उठापटक से कांग्रेस कमजोर ही होती जाएगी।

अशोक गहलोत आलाकमान और गांधी परिवार की नजर में अपना भरोसा खो चुके हैं। मोदी द्वारा गहलोत की तारीफ को कांग्रेस कार्यकर्ता भी पचा नहीं पा रहे हैं। गुलाम नबी आजाद के उदाहरण को देखते हुए कांग्रेसजनों में ऐसा अहसास है कि गहलोत पर दबाव डाला गया तो वह भी गुलाम के रास्ते को पकड़ सकते हैं। गहलोत खेमा भी अपनी सुरक्षा के लिए और आलाकमान पर दबाव बनाने के लिए इसी तरह की बातें हवा में उछालने की कोशिश कर रहा है। सचिन पायलट के लिए भी यह मरने-मारने का अवसर दिखाई पड़ रहा है। उन्हें यह लग रहा है अगर यह मौका चूक गए तो उनका भविष्य बहुत पीछे चला जाएगा।

राजस्थान के संकट से निपटने के लिए कांग्रेस को कोई रास्ता सूझ नहीं रहा है। हिमाचल और गुजरात में विधानसभा चुनाव शुरू हो गए हैं। अशोक गहलोत को गुजरात का प्रभारी बनाया गया है। वे गुजरात में अपनी सक्रियता भी दिखाने लगे हैं। ऐसे हालात में पायलट और गहलोत समर्थकों के बीच बढ़ रहे द्वन्द के कारण दोनों राज्यों में कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं पर भी विपरीत असर पड़ सकता है।

कांग्रेस आज पीढ़ीगत टकराव में फंसी हुई है। कांग्रेस के महत्वपूर्ण पदों पर बुजुर्ग नेताओं का कब्जा है। युवा नेता अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करते दिखाई पड़ रहे हैं। गांधी परिवार बुजुर्गों और युवाओं के बीच समन्वय बनाने में सफल नहीं हो पा रहा है। इसके कारण ही कांग्रेस के युवा नेता पहले भी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। उनमें सबसे बड़ा नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया का कहा जा सकता है। कई अन्य नेताओं ने भी कांग्रेस छोड़ दी है। अभी तो राजस्थान में कांग्रेस उस स्थान पर पहुंचती दिख रही है जहां से लौटना बहुत मुश्किल है।

विरोध तो विरोध, मोदी की तारीफ भी कांग्रेस नेताओं के लिए राजनीतिक अभिशाप बनना दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। राजस्थान में गहलोत के चक्रव्यूह में केवल सचिन पायलट ही नहीं फंसे हुए हैं बल्कि पूरी कांग्रेस, गांधी परिवार और मल्लिकार्जुन खड़गे को भी गहलोत ने अपने चक्रव्यूह में फंसा दिया है। कांग्रेस इस चक्रव्यूह से कैसे निकलेगी और उसके बाद गहलोत कौन सा चक्रव्यूह रचेंगे, इसको लेकर कांग्रेस आलाकमान हिला हुआ है। राजस्थान के अशोक पार्टी के लिए शोक नहीं बन जाएं इसके लिए अब पार्टी को फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना होगा।
(लेखक की सोशल मीडिया पोस्‍ट से साभार)

(मध्‍यमत)
डिस्‍क्‍लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता, सटीकता व तथ्यात्मकता के लिए लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए मध्यमत किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है। यदि लेख पर आपके कोई विचार हों या आपको आपत्ति हो तो हमें जरूर लिखें।
—————
नोट- मध्यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्यमत की क्रेडिट लाइन अवश्य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected]  पर प्रेषित कर दें। – संपादक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here