शुक्रवार को देश की संसदीय संस्थाओं में हुए दो घटनाक्रम बता रहे हैं कि हमारा लोकतंत्र और लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्थाएं सभ्यता की दहलीज से बाहर निकलकर परंपराओं और अनुशासन को छिन्न भिन्न करने की होड़ में अंधी हुई जा रही हैं।
पहला घटनाक्रम लोकसभा में हुआ। वहां प्रश्नकाल के दौरान स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने संसदीय परंपराओं के विपरीत आचरण करके बता दिया कि भाजपा के नेता भी संसदीय अनुशासन को नोचने में किसी से कम नहीं हैं। संसद में शुक्रवार को जो हुआ उसमें सदन संचालन की मान्य परंपराओं और कायदों की धज्जियां उड़ गईं।
दरअसल कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर एक सवाल पूछा था। विभाग के मंत्री के नाते जवाब देने के लिए खड़े हुए स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने जवाब देने से पहले भाषण देना शुरू कर दिया। उन्होंने सवाल पूछने वाले सदस्य यानी राहुल गांधी के पिछले दिनों दिए गए बयान की निंदा करते हुए उनसे माफी की मांग कर डाली।
जाहिर है इस पर हंगामा होना ही था। अध्यक्ष ने मंत्री को टोका भी लेकिन इस बीच बवाल इतना बढ़ा कि सदन की कार्यवाही स्थगित करना पड़ी। मैंने भी कई सालों तक विधानसभा की रिपोर्टिंग की है और मुझे याद नहीं आता कि प्रश्नकाल के दौरान किसी मंत्री ने पूछी गई बात का जवाब देने के बजाय, सवाल पूछने वाले सदस्य की, सदन से बाहर दिए गए किसी भाषण पर, निंदा करनी शुरू कर दी हो।
सदन के नियम और परंपराएं दोनों ही कहते हैं कि प्रश्नकाल में मंत्री को सदस्य के सवाल का जवाब देने तक ही सीमित रहना चाहिए। हालांकि ऐसा होता रहा है कि सवाल-जवाब के दौरान कुछ इधर-उधर की बातें भी हो जाएं, लेकिन जैसा डॉ. हर्षवर्धन ने किया वैसा दृश्य शायद ही कभी देखने को मिला हो।
डॉ. हर्षवर्धन जवाब देने के बजाय जिस विषय पर भाषण दे रहे थे वह राहुल गांधी के उस बयान से ताल्लुक रखता था जिसमें राहुल ने प्रधानमंत्री को युवाओं द्वारा डंडे से मारने की बात कही थी। निश्चित रूप से राहुल गांधी का वह बयान अशोभनीय था और उसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। लेकिन जब गुरुवार को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा का समापन करते हुए राहुल गांधी को बहुत ही माकूल जवाब दे दिया था, तो फिर उनके ही एक मंत्री को सदन की मान्य परंपराएं और कायदा तोड़ते हुए इस तरह का आचरण करने की जरूरत क्या थी?
डॉ. हर्षवर्धन की इस हरकत से सदन में जो माहौल बना उसे यदि समय रहते नहीं संभाला गया होता और अध्यक्ष ने सही समय पर सही फैसला करते हुए सदन की कार्यवाही तत्काल स्थगित नहीं की होती तो देश की संसद का कलंकित होना लगभग तय था। वैसे जो हुआ उससे भी संसद के माथे पर कोई कुंकुम तिलक नहीं लगा है।
वैसे भी यह सदन के नियमों में है कि सदन के बाहर कही गई किसी बात पर इस तरह कोई चर्चा या बहस नहीं हो सकती। घटना के बाद कांग्रेस दल के नेता अधीररंजन चौधरी की ओर से की गई यह आपत्ति बिलकुल जायज है कि यह किसी भी सदस्य को सवाल पूछने से रोकने का मामला है। प्रश्नकाल के दौरान यदि सदन से बाहर कही गई बातों का इस तरह उल्लेख होना शुरू हो जाएगा तो प्रश्नकाल चलना ही लगभग असंभव हो जाएगा।
संयोग से दूसरा मामला भी किसी न किसी रूप में राहुल गांधी से वास्ता रखता है। यह मामला केरल से जुड़ा है जहां के वायनाड से राहुल गांधी सांसद हैं। दरअसल शुक्रवार को ही केरल विधानसभा में राज्य का वर्ष 2020-21 का बजट पेश किया गया और वहां भी मान्य परंपराओं से हटकर बजट पुस्तिका के मुखपृष्ठ पर गांधी जी की हत्या से संबंधित चित्र छापा गया।
जब इस मामले पर आपत्ति हुई तो वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने कहा- ‘’मेरे बजट भाषण के कवर पर मलयाली चित्रकार द्वारा बनाया गया गांधी की हत्या के दौरान का दृश्य है। हम इससे संदेश देना चाहते हैं कि हम यह नहीं भूलने वाले कि गांधी की हत्या किसने की थी।‘’
उन्होंने कहा- ’यह तब बहुत जरूरी हो जाता है, जब इतिहास को दोबारा लिखा जा रहा हो। कुछ यादों को मिटाने का प्रयास किया जा रहा हो और एनआरसी के बल पर देश के बीच एक सांप्रदायिक रेखा खींची जा रही हो। केरल ऐसे समय में एकता की मिसाल पेश करेगा।‘’
एलडीएफ सरकार के इस कदम पर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उसके नेता टॉम वडक्कन ने कहा- ‘’कौन लोग हैं जो महात्मा गांधी की हत्या का जश्न मना रहे हैं। केरल सरकार ने यह किस मंसूबे के तहत किया है। गांधी जी की हत्या के समय की तस्वीर छाप कर क्या आप यह याद दिला रहे हैं कि किस तरह से इस सरकार में लोगों की हत्या की जा रही है।‘’
केरल में बजट भाषण की पुस्तिका पर सिर्फ गांधी हत्या का दृश्य प्रकाशित करने वाली घटना ही नहीं हुई। वित्त मंत्री ने अपने भाषण की शुरुआत भी सीएए/एनआरसी जैसे मुद्दे से की। यहां याद रखना होगा कि केरल विधानसभा ऐसी पहली विधानसभा है जिसने सीएए के खिलाफ बाकायदा प्रस्ताव पारित किया है। केरल सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी गई है।
इसी सिलसिले में पिछले दिनों केरल विधानसभा में परंपरा से हटकर एक और घटना हुई थी जब राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने बजट सत्र की शुरुआत में अपने भाषण के दौरान सीएए के विरोध संबंधी बातें आपत्ति के साथ पढ़ी थीं। उन्होंने कहा था- ”मैं यह पैराग्राफ पढ़ने जा रहा हूं, क्योंकि मुख्यमंत्री चाहते हैं कि मैं इसे पढ़ूं, हालांकि मेरा मानना है कि यह नीति या कार्यक्रम के तहत नहीं है। सीएम ने कहा है कि यह सरकार का दृष्टिकोण है और उनकी इच्छा का सम्मान करने के लिए मैं इस पैरा को पढ़ने जा रहा हूं।”
परंपराओं को तोड़ने के प्रसंग उस समय भी सामने आए थे जब संसद में लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ लेते हुए कुछ सदस्यों ने धार्मिक नारेबाजी की थी। पिछले दिनों महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे मंत्रिमंडल की शपथ के दौरान भी ऐसे नजारे देखने को मिले थे।
ऐसा लगता है कि अब नियम-कायदों, संविधान-कानून, परंपरा-मान्यता आदि से किसी को कोई लेना देना बचा ही नहीं है। चौतरफा मनमानी का ही राज है, सड़क से लेकर संसद तक सभी जगह मनमानी का यह कालारंग पोता जा रहा है।