राकेश अचल
शून्यकाल
अगले पल का हाल क्या पता
दिल कर दे हड़ताल क्या पता
मालामाल किया किस्मत ने
कर दे फिर कंगाल क्या पता
सुलग रहा कश्मीर हमारा
जल उठ्ठे इंफाल क्या पता
सब कुछ पांच वर्ष का हासिल
पहले का था हाल क्या पता
खुल जाएगी गली-गली में
लकड़ी वाली टाल क्या पता
जो करना है, करना झटपट
उड़ जाए तिरपाल क्या पता
दाना चुगना किंतु सम्हल कर
बिछा न हो फिर जाल क्या पता
रीझ न जाना बातचीत में
झूठे हों सुर-ताल क्या पता