अज़हर कुरैशी
इस समय पूरे विश्व के साथ ही भारत में भी कोरोना का कहर जारी है। देश में लॉक डाउन का तीसरा दौर चल रहा है और किसी को नही पता कि यह लॉक डाउन कब तक चलेगा। फिलहाल कोरोना की देश में जो स्थिति में उसका थोड़ा भी आकलन किया जाए तो समझ में आ सकता है कि पूरी तरह लॉक डाउन हटने में अभी कई महीने लग सकते हैं। इस बीच सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक और अन्य कई गतिविधियों को शर्तों के साथ छूट मिलती जाएगी। लॉक डाउन में धीरे धीरे चरणबद्ध तरीके से की जाने वाली शिथिलता हालात के साथ बढ़ती जाएगी।
सरकार ने लॉक डाउन लागू कर कोरोना को नियंत्रित करने के लिये जो कदम उठाए थे वो प्रारंभिक तौर पर प्रभावी माने जा सकते हैं। सरकार के उपायों का असर देश में कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या की गति से लगाया जा सकता है जहां हम विश्व के दूसरे देशों की तुलना में फिलहाल बेहतर स्थिति में है।
हमारे देश की जनसंख्या के मान से कोरोना उतना भयावह स्थिति में नही पहुंचा जितना विश्व के विकसित देशों में फैल गया है। हालांकि अभी भी यह बात मायने रखती है कि हमारे देश में कोरोना टेस्ट करने की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है और देश में कोरोना मरीजों की संख्या कम होने के पीछे एक कारण यह भी गिना जा सकता है।
एक बात पूरा विश्व जान रहा है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई लंबी है और इससे पूरी तरह उबरने में कई महीने लगने वाले हैं। एक सच्चाई यह भी हम सब को माननी पड़ेगी कि पूरी तरह लॉकडाउन अभी अगले एक दो महीने नहीं हटने वाला। हां सरकार क्रमश: गतिविधियां प्रारंभ करेगी। धीरे धीरे औद्योगिक, रोजगार मूलक कार्यों, शासकीय कार्यालयों को शर्तों के साथ कम समय के लिये खोलने के लिये छूट देती रहेगी। क्षेत्र विशेष में कोरोना के मरीजों की बढ़ीती या घटती संख्या इस तरह की छूट के लिये मुख्य कारक साबित होगी।
अब बात करें कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित होने वाली देश की अर्थव्यवस्था और बेहद तेजी से घटने वाले रोजगार के आंकड़ों पर। लॉक डाउन लागू होने के बाद प्रवासी मजदूरों के पलायन की तस्वीरों ने एक बात स्पष्ट कर दी है कि लॉक डाउन के लंबा खिंचने की स्थिति में लाखों कामगारों की यह संख्या देश के हर प्रदेश में रोजगार की समस्या को और बढाएगी।
सरकार ने जिस तरह से कोरोना की रोकथाम, उसके संक्रमण को रोकने, बीमारों का यथासंभव इलाज करने के लिये गंभीरता से कदम उठाए हैं उतनी ही गंभीरता देश में कोरोना के कारण उपजी बेरोजगारी, भुखमरी और आर्थिक अस्त व्यस्तता से निपटने के लिये भी दिखानी होगी वरना आने वाले महीनों में भुखमरी और बेरोजगारी की भयावह तस्वीर का सामना करना होगा।
अर्थ व्यवस्था को संभालने, ग्रामीणों को रोजगार के अवसर मुहैया कराने की रणनीति पर अभी से कोरोना की रोकथाम और उससे निपटने की मुहिम के साथ ही काम करना होगा। अगर इन समस्याओं पर अभी से ध्यान नहीं दिया गया तो बेरोजगारी, भुखमरी और बाजार की गिरावट कोरोना से भी बड़ी विपत्ति देश में ला सकती है।
सरकार को दूरदर्शिता से अर्थशास्त्रियों, उद्योपतियों, कॉरपोरेट सेक्टर के बड़े पूंजीपतियों को विश्वास में लेकर इस रणनीति पर अभी से काम करने की आवश्यकता है। यदि अभी सिर्फ कोरोना से ल़डने पर ही ध्यान दिया गया तो आने वाले समय में सरकार को अर्थ व्यवस्था के मुद्दे पर भारी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जिसका खमियाजा हमेशा की तरह देश के गरीब को उठाना पड़ेगा।
प्रवासी मजदूर जो रोजगार के लिये अपने घर से सालों से दूर रहते थे वो धीरे धीरे अपने घर पहुंच रहे है। इसलिये नहीं कि उन्हें अपने गांव या कस्बे में रोजगार मिलने वाला है बल्कि इसलिये कि संकट की घड़ी में अपनों के बीच व्यक्ति खुद को सुरक्षित और संतोषी महसूस करता है। सरकार को अब इन मजदूरों, बेरोजगार लोगों के लिये स्थानीय और ग्रामीण स्तर पर रोजगार के साधन जुटाने होंगे।
अपने आसपास रोजगार मिलने से न केवल ऐसे लोगों को अपने परिवार को इस संकट की घड़ी में संभालने का मौका मिलेगा बल्कि ग्रामीण क्षेत्र स्वयं के बल पर रोजगार के साधन विकसित कर सकेंगे। सरकार को चाहिये कि फौरी तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों मे मनरेगा और दूसरी योजनाओं के काम जल्द शुरू करे, जिससे लोग रोजगार के साथ खुद का जीवन यापन कर सकें।
सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी योजनाएं भी प्रारंभ कर सकती है जिससे ग्रामीण क्षेत्र के लोग स्व सहायता समूह की मदद से अथवा व्यक्तिगत स्तर पर, ऐसे अति लघु उद्योग शुरू कर सकें जो शहरी आवश्यकताओं की पूर्ति करें। आने वाले समय को दुखदाई, भयावह बेरोजगारी, भुखमरी और इनसे जनित अपराधों से बचाने के लिये जल्द से जल्द जरूरी कदम उठाने होंगे, उसी में हम सभी की भलाई है।
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टीम मध्यमत