Chairman and CEO of India's Kingfisher Airlines Vijay Mallya talks on his cellphone during a meeting with pilots in New Delhi on March 15, 2012. Chairman of the beleaguered airline Vijay Mallya was scheduled to meet pilots in the Indian capital in an attempt to steer it out of the crisis. India's Kingfisher Airlines earlier curtailed its overseas flights to avoid losing further cash as it struggles to keep flying amid mounting operational difficulties. AFP PHOTO/ Manan VATSYAYANA (Photo credit should read MANAN VATSYAYANA/AFP/Getty Images)

नई दिल्‍ली/ विजय माल्‍या जैसे बड़े डिफॉल्‍टरों को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रही सरकार ने स्‍वीकार किया है कि देश में 7,686 ऐसे इरादतन डिफॉल्टर हैं, जिन पर सरकारी बैंकों के 66,190 करोड़ रुपये बकाया हैं। यह स्थिति पिछले वर्ष दिसंबर तक की है।

वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने राज्यसभा में बताया कि देश के सरकारी बैंकों के 100 सबसे बड़े फंसे हुए कर्जदारों पर कुल 1.73 लाख करोड़ रुपये बकाया हैं। दिसंबर, 2015 तक सरकारी बैंकों के सबसे बड़े 50 डिफॉल्टरों पर 1.21 लाख करोड़ रुपये बकाया थे।

सदन में दिए गए ब्योरे के अनुसार सबसे ज्यादा इरादतन डिफॉल्टर और कर्ज राशि भारतीय स्टेट बैंक की हैं। इस बैंक के 1,164 खातेदार इस श्रेणी में हैं और उन पर 11,705 करोड़ रुपये बकाया हैं। इसके बाद पंजाब नैशनल बैंक है, जिसके 904 इरादतन डिफॉल्टर हैं और उन्होंने 10,869.72 करोड़ रुपये नहीं चुकाए हैं।

जहां डिफॉल्‍टरों पर कार्रवाई का सवाल है, भारतीय स्टेट बैंक इरादतन बकायादारों से निपटने के मामले में सबसे ज्यादा सक्रिय है और उसने ऐसे कई डिफॉल्टरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है। पीएनबी ने 9,672 करोड़ रुपये की वसूली के लिए 691 डिफॉल्टरों पर शिकंजा कसा है। कॉर्पोरेशन बैंक इस मामले में सबसे कमजोर है। उसके 123 डिफॉल्टरों पर 2,256 करोड़ रुपये बाकी हैं, मगर उसने सिर्फ 20 डिफॉल्टरों को ही कार्रवाई के दायरे में लिया है।

सिन्हा के अनुसार 3 साल में इरादतन डिफॉल्टरों की संख्या बढ़ी है और दिसंबर, 2015 तक यह 5,554 से बढ़कर 7,686 हो गई है। इस दौरान फंसे कर्जों की राशि भी 27,749 करोड़ रुपये से बढ़कर दोगुनी से ज्यादा हो गई है।

इस बीच बड़े डिफॉल्‍टरों के नाम सार्वजनिक किए जाने को लेकर भी आर्थिक जगत में बहस जारी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह जमाकर्ताओं का पैसा है और दिवालिया कानून को और मजबूत किए जाने की जरूरत है। डिफॉल्टरों से कारगर तरीके से निपटने के लिए अदालतों को सक्षम बनाना जरूरी है। सरकार दिवालिया कानून, 2015 के अंतर्गत एक अलग नियामक संस्‍था बनाने का विचार रखती है।

भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर, 2015 तक देश के सभी सरकारी बैंकों के फंसे हुए कर्ज की राशि 3.62 लाख करोड़ रुपये थी। न वसूल हो पाए कर्जों की मात्रा मार्च, 2013 तक 1.56 लाख करोड़ रुपये थी। यानी तीन वर्षों से भी कम समय में फंसे हुए कर्ज की राशि बढ़कर दोगुनी से भी ज्यादा हो गई।

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