राकेश अचल
दुनिया का कोई धर्म मानवता के खिलाफ तो नहीं है। हर धर्म की अपनी जमीन है, अपने समर्थक हैं और धर्म प्रचार के अपने तौर-तरीके हैं लेकिन आपदा के समय सब क़ानून के हिसाब से चलते हैं, अपनी मर्जी से नहीं, लेकिन तब्लीग ने कोरोना संकट के समय कानूनों की अनदेखी कर एक संकट न सिर्फ अपनी जमात के लोगों के लिए पैदा किया बल्कि कोरोना के खिलाफ दुनिया में लड़ी जा रही लड़ाई को भी कमजोर किया है। इसलिए तब्लीग क़ानून के निशाने पर है।
निजामुद्दीन इलाके में तब्लीग का मुख्यालय है और यहां बीते 93 साल से धर्म प्रचार का काम किया जा रहा है। तबलीगी जमात दुनिया भर में सुन्नी इस्लामी धर्म प्रचार का काम करती आई है। ये एक तरह का आंदोलन है, जो मुसलमानों को मूल इस्लामी पद्धतियों की तरफ़ बुलाता है। खास तौर पर धार्मिक तरीके, वेशाभूषा, वैयक्तिक गतिविधियों की तरफ। धारणा है कि जमात से जुड़े लोगों की संख्या 150 मिलियन है और ये दुनिया के 150 देशों में फैले हैं ख़ास तौर पर दक्षिण एशिया में इनकी संख्या अधिक है।
इस आंदोलन को 1927 में मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने भारत में शुरू किया था। इसका मूल उद्देश्य आध्यात्मिक इस्लाम को मुसलमानों तक पहुंचाना और फैलाना है कोरोना फैलाना नहीं। इस जमाअत के मुख्य उद्देश्य ‘छ: उसूल’ (कलिमा, सलात, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तबलीग) हैं। यह एक धर्म प्रचार आंदोलन माना गया।
तब्लीगी जमात के निज़ामुद्दीन गुट ने 17 से 19 मार्च तक दिल्ली में अल्लामी मशवरा इज्तिमा का ऐलान किया था जिसमें कई विदेशी वक्ताओं ने भाग लिया था और 2000 से अधिक लोग शामिल हुए। यह संदेह है कि इनमें से कुछ वक्ता कोरोना वायरस से संक्रमित थे जो बाद में मंडलियों में फैल गए।
कहा जा रहा है कि 16 मार्च 2020 को, दिल्ली सरकार ने आदेश दिया कि 31 मार्च, 2020 तक दिल्ली में धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक समारोहों में 50 से अधिक लोगों के जमावड़े की अनुमति नहीं दी जाएगी। 30 मार्च, 2020 तक पूरे निजामुद्दीन पश्चिम क्षेत्र को पुलिस द्वारा बंद कर दिया गया लेकिन तब्लीग में आये लोग कहीं नहीं गए। तब्लीग का कहना है कि लॉकडाउन में वे असहाय थे। दिल्ली सरकार ने तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन गुट के प्रमुख मुहम्मद साद कांधलवी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी है और इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। आपत्तिजनक ये है कि एक जमात की गलती के कारण देश का मीडिया देश के पूरे मुसलमानों को निशाने पर ले आया है।
क़ानून के खिलाफ जाकर काम करने वाली जमात एक अपवाद है अन्यथा देश की तमाम मस्जिदें भी लॉकडाउन के कारण बंद हैं, लोग घरों पर नमाज पढ़ रहे हैं। किसी ने भी क़ानून का उल्लंघन नहीं किया है फिर पूरी कौम को निशाने पर लेने का क्या अर्थ है? जिसने गलती की है वो सजा भुगतेगा, उसे नीचे का ही नहीं ऊपर का क़ानून भी माफ़ नहीं करने वाला, किन्तु जो गुनाह हमारा मीडिया कर रहा है उसके लिए सजा का कोई प्रावधान नहीं है। इसे समझदारी से ही दूर किया जा सकता है।
जीवन और मृत्यु को लेकर हर धर्म का अपना दर्शन है। सनातनी भी हानि, लाभ, जीवन और मरण के अलावा जस, अपजस को विधि के हाथ में रखते हैं, तब्लीग भी रखती है लेकिन गलती तब होती है जब कोई धर्म का ठेकेदार देशकाल व परिस्थितियों की अनदेखी कर धर्म की व्याख्या अपने ढंग से कर लोगों को मौत के मुंह में जान-बूझकर धकेलने का अपराध करता है। जमात के प्रमुख ने ये अपराध किया है। उसकी इस गलती से उसके अपने समर्थकों की जानें गयी हैं और दूसरों की खतरे में पड़ी हैं, इन्हें बचाना एक कठिन और चुनौती भरा काम है।
कोरोना काल में उपजे इस विवाद पर लिखने का मेरा कोई मन नहीं था किन्तु मैंने सिर्फ इसलिए इस विमर्श को आगे बढ़ाया है ताकि भक्तों की फ़ौज फिर सक्रिय न हो (हालांकि वो सक्रिय हो चुकी है) और वातावरण न बिगड़े। दिल्ली की घटना सीधे-सीधे सामाजिक लापरवाही है और इसे इसी तरह से लिया जाना चाहिए। अच्छा है कि इस्लाम को जानने और मानने वाले इस मामले में देश के साथ हैं तब्लीग के साथ नहीं। जरूरत इस बात की है कि अब तब्लीगी जमात में शामिल हुए देश, दुनिया के लोग खुद बाहर आएं और कोरोना संक्रमण को रोकने में चिकित्सा जगत की मदद करें। प्रशासन उनसे जो सहयोग मांगे, दें ताकि कोरोना के खिलाफ जंग को जीता जा सके। इस मामले में किसकी गलती थी और किसकी नहीं ये तो बाद में तय होता ही रहेगा। क़ानून अपना काम करेगा, हमें अपना काम करना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं। यह सामग्री उनकी फेसबुक पोस्ट से साभार ली गई है।)