अजीत अंजुम
सुना है मुंबई के फेरीवालों ने राज ठाकरे के लफ़ंगों का सही ‘इलाज’ कर दिया है। मैं ऐसे ‘इलाज’ का पक्षधर तो नहीं रहा हूँ लेकिन लाइलाज बीमारी के लिए कई बार घरेलू नुस्ख़े का इस्तेमाल ज़रूरी होता है। वो भी तब जब सत्ताधारी नीम-हकीम, वैद्य और लुकमान बिगड़ैल मरीज़ को ‘दवा’ न दे पा रहे हों। जब अधिकृत और सर्टिफाइड डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं तो मोहल्ले वाले और अड़ोसी-पड़ोसी अपने-अपने तरीक़े से घरेलू नुस्ख़ों का इस्तेमाल करते हैं। कई बार ये नुस्ख़े कारगर भी साबित होते हैं। उम्मीद है कि मुंबई के फेरीवालों के आक्रोश से उपजे ‘इलाज’ का ये तरीका उत्तर भारतीय फेरीवालों-दुकानदारों-ऑटो वालों के दुश्मन बने एमएनएस के बेलगाम लफंगों को सबक सिखाने में कारगर होगा।
मैं हिंसा के जवाब में हिसा की वकालत कतई नहीं कर रहा। गांधी की अहिंसावादी फिलॉसफी और आंबेडकर के कानून वाले इस देश में अगर किसी राज ठाकरे के गुर्गे-गुंडे और कार्यकर्ता मुंबई को अपनी जागीर समझकर उत्तर भारतीयों को बात -बेबात निशाना बनाने लगें। उन्हें चुन-चुनकर मारने-पीटने लगें। उनकी रोजी-रोजगार पर लात मारने लगें। उनकी दुकानें और ठिकानों पर धावा बोलने लगें और कानून का राज बहाल करने के लिए जिम्मेदार सत्ता उन्हें कंट्रोल करने में फेल होने लगे तो कभी-कभी न्यूटन का लॉ भी लागू हो जाए तो कोई हर्ज नहीं। न्यूटन का लॉ बोले तो क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया।
कभी-कभी क्रिया के विपरीत ये प्रतिक्रिया क्यों जरूरी है? ये बताने से पहले आपको बता दें कि वहां हुआ क्या है? मुंबई में सड़कों पर या स्टेशन परिसर में दुकान लगाकर रोजी-रोटी चलाने वाले बिहार-यूपी के फेरीवालों के खिलाफ एक बार फिर राज ठाकरे की गुंडा ब्रिगेड ने हल्ला बोल रखा है। जहां-तहां से उन्हें हटाया जा रहा है। अचानक एमएनएस के दस-बीस गुंडे किसी भी इलाके के फेरीवालों पर धावा बोल देते हैं। पिटाई करते हैं। उनके ठेले को तहस-नहस कर देते हैं। रोज ऐसी खबरें मीडिया में आ भी रही थीं लेकिन सरकार की तरफ से कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई। इसी बीच मुंबई में रेलवे स्टेशन परिसर में अपना धंधा करने वाले फेरीवालों की एमएनएस कार्यकर्ताओं (जिन्हें गुंडा ही कहा जाना चाहिए) ने जमकर पिटाई कर दी।
इसके बाद फेरीवाले इन हरकतों के खिलाफ एकजुट होने लगे। तभी राज ठाकरे ने एक और बयान दे दिया कि छठ के बहाने बिहारी और यूपी वाले मुंबई पर कब्जा करना चाहते हैं। राज ठाकरे हर छठ के समय ऐसे बकवास बयान देकर वितंडा खड़ा करने की कोशिश जरूर करते हैं। इस बार फेरीवालों में पहले से गुस्सा था। शनिवार को मुंबई के मलाड इलाके में ठाकरे की एमएनएस के खिलाफ फेरीवाले एक सभा करने जमा हुए। इस सभा को कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने भी संबोधित किया जो हर बार छठ में बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। तभी सभा को रोकने के लिए एमएनएस के कुछ गुर्गे टाइप लड़के वहां पहुंच गए। सभा रोकने की कोशिश करने करने लगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उसी दौरान पहले से बौखलाए फेरीवालों ने उन लड़को की पिटाई कर दी। दोनों तरफ से हुई इस मारपीट में ठाकरे के पांच कार्यकर्ताओं की ठीक से ‘सेवा’ हो गई। मौके पर तुरंत पुलिस पहुंची और घायलों की अस्पताल ले गई। फेरीवालों को थाने ले गई। फेरीवालों ने ऐलान कर दिया है कि अगर राज्य सरकार उनकी और उनके रोजगार की हिफाजत नहीं करती तो राज ठाकरे की उत्पाती सेना से वो इसी तरह निपटेंगे।
पानी जब सिर से गुजर जाए। दर्द जब हद से गुजर जाए तो यही होता है। उत्तर भारतीय फेरीवाले हों , खोमचे वाले हों, दुकानदार हों या फिर ऑटो वाले, ये सब कई सालों से राज ठाकरे की उत्पाती ब्रिगेड के शिकार होते रहे हैं। सरे-आम उनके साथ मारपीट करने की तस्वीरें हमने बीते दस साल में पचासों बार देखी है। वे मीडिया की सुर्खियां बनी हैं। कई बार बवाल होने पर दिखावे के लिए कुछ गुर्गे-गुंडे पकड़े भी गए हैं। लेकिन न तो राज ठाकरे की हिमाकत पर कोई लगाम लगी, न ही सूबे की सरकार ने ऐसा इकबाल दिखाया कि कानून हाथ में लेने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। हां, हर बार ऐसे शांति प्रिय बयान जरूर दिए जाते रहे हैं।
सरकारी बयानों की बौछार से गुंडे नहीं डरते। ठाकरे भी नहीं डरते। मुंबई की रैलियों में वो शख्स डंके की चोट पर ऐलानियां अंदाज में बिहार और यूपी के लोगों को सबक सिखाने की बात करता है। मुंबई पर उनके बढ़ते प्रभाव को रोकने के तरीके बताता है और सब सुनते-देखते रहते हैं। इस बीच राज ठाकरे के लोग मारपीट को अंजाम देते रहते हैं। ये सब मराठी अस्मिता के नाम पर होता है या मराठियों के रोजगार को छीनने आए उत्तर भारतीयों से दुश्मनी के नाम पर होता है। दस साल तक कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी, तब भी और अब बीजेपी-शिवसेना की सरकार है तब भी, इस शख्स की हिमाकत पर कोई चोट नहीं करता।
ये अलग बात है कि विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में उसी मराठी जनता ने राज ठाकरे को उनकी औकात बता दी है। कहां तो लोकसभा चुनाव के पहले वो सीधे नरेन्द्र मोदी को ललकार रहे थे और कहां मराठी जनता ने उन्हें न तीन में रखा, न तेरह में। फिर भी अपनी हेकड़ी-अकड़ और दादागीरी के बूते वो मुंबई को जागीर बनाए रखने की कोशिश करते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले मैंने राज ठाकरे से उनके मुंबई स्थित घर पर लंबी बात की थी। उनसे उनकी राजनीति पर कुछ तीखे सवाल भी किए थे। वो भड़के थे। बौखलाए थे, लेकिन खुद को मुंबई का दादा साबित करने की कोशिश करते रहे थे। जिस मुंबई को बनाने -बसाने में उत्तर भारतीयों का योगदान किसी भी मराठी से कम नहीं, उस मुंबई को राज ठाकरे अपनी पुश्तैनी जायदाद मानते हैं।
तो मिस्टर ठाकरे, वो वक्त गया। अब अगर इसी तरह से बिहार-यूपी के लोग आपके गुंडों का इलाज करने सड़क पर आ गए तो बहुत मुश्किल होगी। जरा संभल कर, बिहार-यूपी के लोगों की भलमनसाहत आपने देखी है। फेरीवालों की तरह सब अपनी ताकत दिखाने लगे न, तो ठाकरेशाही खत्म होते देर न लगेगी।
(वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम की फेसबुक वॉल से)