सिंधिया मुर्दाबाद! एक अवसर भी है…

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डॉ. अजय खेमरिया

यह बिल्कुल सही है कि ग्वालियर की धरती और जयविलास महल के परकोटे पर खड़े होकर ‘सिंधिया मुर्दाबाद’ की अनुगूंज 22 अगस्त 2020 से पहले कभी किसी ने नही सुनी। यह भी सच है कि ऐसा करने की हिम्मत किसी दल के कार्यकर्ताओं में भी नही हुई क्योंकि दोनों दलों (भाजपा व कांग्रेस) में शाही परिवार की धमक और प्रभुत्व कायम रहा है। 2020 में बदला हुआ सियासी परिदृश्य अनेक कोण से महत्वपूर्ण है। जिस आक्रामक तरीके से ग्वालियर की धरती पर सिंधिया का विरोध हुआ है, उसने एक बड़े वर्ग को आह्लादित भी कर दिया है, जो वर्षों से महल विरोध की राजनीति का अलख जगाये हुए है। इसमें बीजेपी, कांग्रेस दोनों दलों के लोग शामिल हैं।

2019 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की अकल्पनीय शिकस्त को सिंधिया परिवार का सियासी अवसान समझने वाले लोगों के लिए सिंधिया का बीजेपी में बढ़ता कद बहुत ही अप्रत्याशित है। जिस तरह से ज्योतिरादित्य सिंधिया की सियासी धमक बीजेपी में सुनाई और स्पष्ट दिखाई दे रही है, उसे तत्कालिक मानने की भूल नहीं की जानी चाहिए। यानी यह तय है कि अगर सिंधिया उन सभी कमियों को कांग्रेस में ही छोड़ दें जो उनकी खुद की संभावनाओं को कमजोर करती रही हैं तो संभव है बीजेपी में उनका भविष्य कांग्रेस से कहीं अधिक बेहतर साबित हो।

इसलिए ग्वालियर में अगर उनके सामने या उनके महल के दरवाजे तक ‘सिंधिया मुर्दाबाद’ का शोर सुनाई दिया है तो उन्हें इसे भी एक बड़े अवसर के रूप में लेना चाहिये। अभी तक सिंधिया विकास की राजनीति का दावा करते रहे हैं लेकिन संसदीय राजनीति खासकर चुनावी जमावट केवल विकास के सहारे नहीं टिकती है। केवल जिंदाबाद के दम पर आज की राजनीति में कोई टिकाऊ नहीं हो सकता है। नये दौर की चुनावी राजनीति बहुआयामी धरातल पर पल्लवित होती है। इसे ईमानदारी से स्वीकार करना ही चाहिए कि केवल ‘महाराज जिंदाबाद’ औऱ ‘जय-जय’ के अतिशय अवलंबन ने ही 2019 की शिकस्त की पटकथा लिखी थी।

बेहतर होगा ‘सिंधिया मुर्दाबाद’ के नारों को ज्योतिरादित्य सिंधिया संसदीय राजनीति के हार के रूप में स्वीकार कर एक ऐसी लकीर खींचें जो उनके विरोधियों को सोचने पर मजबूर कर दे। सार्वजनिक जीवन में महाराजियत से स्थाई दूरी उन्हें सियासत का बेताज बादशाह बना सकती है, क्योंकि शेष सभी गुण तो उनमें अपरिमित मात्रा में जन्मजात ही मौजूद हैं।

यह भी एक तथ्य है कि कांग्रेस में उनकी ताकत का आधार टिकट वितरण की इलाकाई सम्प्रभुता भी थी। लेकिन बीजेपी में वह चाहें तो इस ताकत में और भी इजाफा कर सकते हैं बशर्ते पार्टी की रीति नीति में खुद को ढालने का पराक्रम दिखाएं। कांग्रेस में केवल उनके साथ टिकटाभिलाषियों की भीड़ ज्यादा होती थी, बीजेपी में उन्हें उस कैडर का साथ मिलेगा जो पार्टी के लिए समर्पित है। उन्हें संघ की उस जमीनी सरंचना का साथ मिल सकता है जो दशकों की तपस्या से खड़ी की गई है। यानी समाज जीवन के हर पक्ष में उन्हें बहुत बड़ा नेटवर्क बीजेपी नेता के रूप में उपलब्ध है। जैसा कि वह कहते है कि सिंधिया परिवार जनसेवा के लिए सियासत में है तो नये विचार परिवार में उनके सामने इसे प्रमाणित करने के बीसियों प्लेटफार्म उपलब्ध हैं।

इसलिए जिन कांग्रेसियों ने उनका मुर्दाबाद किया है, उनका हृदय से उन्हें अभिन्दन करना चाहिये, क्योंकि अंततः सिंधिया संसदीय राजनीति के चेहरे हैं और विरोध से ही व्यक्तित्व में मजबूती का अहसास होता है। जिस तरह से उन्होंने नागपुर जाकर खुद को कैडर के साथ जोड़ने और एक तादात्म्य स्थापित करने की मंशा अभिव्यक्त की है वह उनकी भविष्य की संभावनाओं को रेखांकित करता है। लेकिन यह समानान्तर रूप से अपार धैर्य की मांग भी करता है।

इस बदलाव के लिए उन्हें किसी पाठशाला की जरूरत भी नहीं है। इसी जयविलास में मौजूद राजमाता विजयाराजे सिंधिया की विरासत उनके लिए सहज भाव से हमेशा उपलब्ध है। सियासत की निर्मम गलियों में रनर का कोई स्थान नहीं होता है, केवल विनर ही स्वीकार्य होते हैं और विनर के लिए खेल की तकनीकी के साथ सामने वाले की रणनीति को ध्यान में रखना होता है। कांग्रेस सिंधिया को संघर्ष के पथ पर आने का निमंत्रण दे रही है, इसलिए मुर्दाबाद को जिंदाबाद में तब्दील करने के लिए उन्हें इस रास्ते का अनुशीलन सहज भाव से करने की आवश्यकता है।

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