इसे लोकतंत्र और टेक दिग्‍गजों के बीच टकराव के रूप में देखिये

गिरीश उपाध्‍याय

हाल ही में भारत के कानून और इन्‍फॉरमेशन टेक्‍नालॉजी मंत्री रविशंकर प्रसाद के ट्विटर अकाउंट को ट्विटर द्वारा एक घंटे के लिए बंद कर देने के मामले ने बहुत तूल पकड़ा। हालांकि बाद में ट्विटर ने खुद ही प्रसाद का अकाउंट बहाल कर दिया लेकिन उस एक घंटे के बीच जो घटा उसे लेकर सोशल मीडिया पर बहुत कुछ लिखा और कहा गया। जैसा कि इन दिनों अकसर हो रहा है कि किसी भी मामले को राजनीतिक चश्‍मे से ही देखा और समझा जाने लगा है, प्रसाद और ट्विटर का यह मामला भी कई लोगों ने उसी नजरिये से देखा और उसी हिसाब से टिप्‍पणी करते हुए यहां तक कह दिया कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे…

लेकिन इस मामले को राजनीति के या पक्ष विपक्ष के संकुचित दायरे में देखने की भूल हमें बहुत भारी पड़ सकती है। दरअसल यह मामला किसी राजनेता और किसी सोशल मीडिया दिग्‍गज के बीच का नहीं बल्कि लोकतंत्र और दुनिया की टेक दिग्‍गज कंपनियों के बीच पैदा हो रहे नए टकराव का है। यदि आज रविशंकर प्रसाद के मामले को हमने सिर्फ एक राजनेता या एक मंत्री या किसी एक पार्टी विशेष से जुड़े मसले के रूप में देखने की गलती की तो आने वाले दिनों में यह गलती भारत जैसे कई लोकतांत्रिक देशों के लिए बहुत भारी पड़ सकती है। इन दिग्‍गज कंपनियों ने अपनी ताकत इतनी बढ़ा ली है और लोगों को इतना एडिक्‍ट बना दिया है कि भविष्‍य में वे दुनिया को अपने इशारों पर नचाने की हैसियत रखने लगी हैं।

भारत के नए आईटी कानूनों को स्‍वीकार करने के मामले में सरकार और दुनिया की दिग्‍गज सोशल मीडिया कंपनियों के बीच कई दिनों से खींचातानी चल रही है। मामले की गंभीरता का अंदाज आप इसी से लगा लीजिये कि किसी दूसरे देश में आकर व्‍यापार करने वाली ये कंपनियां, सरकार के इस आदेश निर्देश को मानने में भी आनाकानी कर रही हैं कि उन्‍हें उस देश के कानूनों को मानना पड़ेगा और उसी के हिसाब से चलना होगा। यानी इन बहुराष्‍ट्रीय टेक दिग्‍गज कंपनियों ने अपनी इतनी बड़ी हैसियत बना ली है कि वे सरकारों से भी टकराने लगी हैं। ट्विटर और सरकार के बीच तनातनी और वाट्सऐप की नई नीति को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच जाना इसी बात का संकेत है कि ये कंपनियां अपने आप को किसी भी सार्वभौम देश की रीति-नीति और उसके कानूनों से भी ऊपर मानने लगी हैं।

यह अजीब बात है और जैसाकि खुद रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि ट्विटर खुद को भारत में भी अमेरिकी कानूनों के हिसाब से चलाना चाहता है, जबकि भारत सरकार का कहना है कि यदि हमारे यहां रहना है और व्‍यापार करना है तो भारतीय कानूनों के हिसाब से चलना होगा। वैसे विदेशी कंपनियों का अपने ही हिसाब से चलना कोई नई बात नहीं है। वे जब चाहे अपने मूल देश के कानून के हिसाब से चलने लगती हैं और जब चाहे संबंधित देश के कानून के हिसाब से। उनका यह फैसला विशुद्ध रूप से उनके व्‍यापारिक हितों से जुड़ा होता है।

मुझे याद है भोपाल गैस त्रासदी के समय यह मांग कई बार उठाई गई कि गैस कांड पीडि़तों को अमेरिकी कानून के हिसाब से मुआवजा दिया जाए लेकिन गैस कांड के लिए जिम्‍मेदार अमेरिका की तत्‍कालीन बहुराष्‍ट्रीय कंपनी यूनियन कारबाइड ने वह मांग कभी मंजूर नहीं की। क्‍योंकि यदि वह वैसा करती तो उसे इतनी बड़ी राशि मुआवजे के रूप में देनी पड़ती कि उसका दिवाला निकल सकता था। इसीलिये उसने भारतीय कानूनों के हिसाब से ही मुआवजे का फैसला करवाने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। पर आज स्थिति बिलकुल उलट है। आज भारत सरकार अमेरिका की ही एक दूसरी बहुराष्‍ट्रीय कंपनी से कह रही है कि वह भारत के कानूनों के हिसाब से चले तो वह कंपनी इस बात पर अड़ी हुई है कि वह अमेरिकी नियमों और कानून कायदों से ही संचालित होगी।

यूनियन कारबाइड की घटना और आज के समय में 37 साल का अंतर है। इस बीच पूरी दुनिया के हालात बदल चुके हैं और जाहिर है बाजार का परिदृश्‍य भी। लेकिन सवाल तब भी एक लोकतांत्रिक देश के नागरिकों का था और आज भी एक लोकतांत्रिक देश के सार्वभौमिक अधिकारों का है। बस फर्क सिर्फ इतना है कि तब की सरकार ने उस समय उस बहुराष्‍ट्रीय कंपनी को बच निकलने का रास्‍ता दे दिया था और आज की सरकार ने इस मामले में एक स्‍टैंड लिया है। यहां सवाल किसी दल विशेष की सरकार का नहीं बल्कि भारत और उसकी सार्वभौमिकता का है और इस मामले में राजनीतिक दल के नजरिये से सोचने विचारने के बजाय हमें एक देश के रूप में सोचना होगा।

अच्‍छी बात ये है कि कांग्रेस के सांसद शशि थरूर की अध्‍यक्षता वाली संसदीय समिति ने भी ट्विटर को सख्‍त संदेश देते हुए साफ कर दिया है कि उसे चलना तो भारतीय कानून के हिसाब से ही होगा। रविशंकर प्रसाद का अकाउंट एक घंटे के लिए बंद कर देने के मामले को लेकर भी शशि थरूर ने लिखा कि एक बार उनके साथ भी ट्विटर ने ऐसा ही बर्ताव किया था। रविशंकर प्रसाद वाला मामला तो इसलिए भी हैरान करता है कि उनका उकाउंट ब्‍लॉक करने वाली कार्रवाई जिस ट्वीट को लेकर की गई वो कथित रूप से तीन साल पुराना है। इससे साफ जाहिर होता है कि ट्विटर जानबूझकर भारत सरकार से टकराव मोल लेने वाली कार्रवाई कर रहा है। इसीलिए यह मामला सिर्फ रविशंकर प्रसाद या भारत सरकार का नहीं बल्कि भारत, उसके नागरिकों और देश के लोकतंत्र बनाम ट्विटर का हो जाता है।

लेकिन इस मामले के एक पेंच की ओर भी हमें भविष्‍य में गंभीरता से ध्‍यान देना होगा। ट्विटर ने जिस मामले में रविशंकर प्रसाद के अकाउंट को होल्‍ड किया या शशि थरूर के ही अनुसार जिस मामले में उनका अकाउंट ब्‍लॉक किया गया था ये दोनों ही मामले कॉपीराइट एक्‍ट के हैं। यानी इस लड़ाई में यदि कोई बीच का रास्‍ता निकालते हुए फिलहाल समाधान हो भी जाता है तो भविष्‍य में एक तलवार सारे सोशल मीडिया यूजर्स पर लटकी रहेगी। यह बात न तो नई है और न ही किसी से छिपी है कि कानून कायदों से अनजान और आंखमूद कर कॉपी पेस्‍ट करने और फॉरवर्ड करने के आदी हो चुके भारतीय सोशल मीडिया यूजर्स धड़ल्‍ले से ऐसा बहुत सारा कंटेंट इधर उधर बांटते रहते हैं जो कॉपीराइट एक्‍ट के उल्‍लंघन के दायरे में आता है।

सरकार के दबाव के चलते सोशल मीडिया के क्षेत्र में ऑपरेट करने वाली दिग्‍गज बहुराष्‍ट्रीय कंपनियां यदि झुक भी गईं तो भी उनके पास ऐसे कई रास्‍ते होंगे जिनसे वे जब चाहें भारतीय नागरिकों (जिनमें हर वर्ग और हर हैसियत का नागरिक शामिल होगा) के खिलाफ कानूनी दांव खेल सकती हैं। ऐसे में सरकारों को यह भी सुनिश्चित करना होगा या इस बात के भी रास्‍ते निकालने होंगे कि इन दिग्‍गज कंपनियों द्वारा भारतीय कानूनों को मानने और भारत में उसी हिसाब से खुद के संचालन की सहमति देने के बाद भी इनके भारतीय उपयोगकर्ताओं के हित कैसे सुरक्षित रहें। साथ ही भारतीय उपयोगकर्ताओं को भी सोशल मीडिया उपयोग की कानूनी साक्षरता हासिल करनी होगी ताकि वे कानूनी पचड़ों से बच सकें। (मध्‍यमत)
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नोट- मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्‍यमत की क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।संपादक

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