पांच राज्यों के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी जिस तरह से ताकतवर होकर उभरी है, उसे लेकर मध्यप्रदेश (आप छत्तीसगढ़ को भी शामिल करते हुए इसे संयुक्त मध्यप्रदेश मानिए) की राजनीति में कुछ ज्यादा ही हलचल है। खासतौर से पिछले 13 सालों से राज्य में सत्ता से बेदखल कांग्रेस में उबाल ज्यादा है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं इसके लिए कुछ उदाहरण देख लें-
ताजा चुनावों में पार्टी की करारी हार के बाद कांग्रेस में विरोध का स्वर मध्यप्रदेश के ही सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी के मुंह से फूटा। उन्होंने परोक्ष रूप से नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए कहा- ‘’अब पार्टी की सर्जरी करने से कोई फायदा नहीं होने वाला। अब बदलाव से कोई फायदा नहीं होगा। जब बदलाव करना था तब तो किया नहीं। राहुल गांधी को पार्टी के लिए खुद फैसला लेना चाहिए।‘’
चतुर्वेदी के बाद दूसरा हमला 15 मार्च को पार्टी के राष्ट्रीय सचिव सज्जन वर्मा ने सोनिया गांधी व राहुल गांधी के नाम चिट्ठी लिखकर किया। किसी का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि ‘’कुछ लोगों ने कांग्रेस को कमजोर करने की सुपारी ले रखी है। ये लोग उन जगहों पर भी कांग्रेस को कमजोर कर रहे हैं, जहाँ पार्टी मजबूत है। वे कांग्रेस को मधुमक्खी की तरह डंक मारकर कमजोर कर रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी किसी भी प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष अथवा मुख्यमंत्री को हटाने या बदलने में चंद सेकंड का समय भी नहीं लेती थीं। उन्होंने देशहित में राजा-महाराजाओं की रियासत खत्म कर दी थी। तब कई लोगों ने हल्ला किया था, वे ही अब राजनीतिक शोर मचा रहे हैं।‘’
वर्मा ने आलाकमान से गुजारिश की है कि ‘’इंदिराजी की तरह अब आपको भी कुछ राजनीतिक परिवारों को पार्टी से बाहर करना होगा, तभी कांग्रेस फिर देश में खड़ी हो सकती है।‘’ हालांकि वर्मा ने कोई नाम नहीं लिया,लेकिन माना जा रहा है कि उनका यह हमला गोवा के पार्टी प्रभारी,मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह पर है।
इस बीच मध्यप्रदेश के ही सहोदर छत्तीसगढ़ में वहां के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का बयान आया कि राहुल पप्पू की छवि से उबर नहीं पा रहे हैं। जोगी बोले- ‘’राहुल गांधी कितनी भी मेहनत कर लें, लेकिन सोशल मीडिया पर उनकी छवि पप्पू की ही बनी हुई है।‘’
हालांकि मैं पुष्टि नहीं कर पाया लेकिन बताया गया कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और छिंदवाड़ा से सांसद कमलनाथ ने भी ताजा चुनाव परिणामों के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ की। सोशल मीडिया पर चल रही ऐसी खबरों को मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने हाथों हाथ लिया। मीडिया से बातचीत में वे नाथ को एक तरह से भाजपा में आने का ऑफर देते हुए बोले- ‘’जिनको प्रधानमंत्री मोदी के साथ चलना है, वे भाजपा में आएं और कमल को थामें… वैसे भी वे ‘कमलनाथ’हैं..’’
इन चुनावों में मध्यप्रदेश की भूमिका कितनी अहम थी इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि वह गोवा जहां कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी, वहां के प्रभारी अपने राज्य के ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह थे और मणिपुर जहां भाजपा ने अंतत: अपनी सरकार बना ही ली, वहां भाजपा के प्रभारी मध्यप्रदेश के ही सांसद प्रहलाद पटेल थे।
अब सवाल यह है कि मध्यप्रदेश सहित देश के कई राज्यों से उठी नेतृत्व के प्रति असंतोष की इन आवाजों पर कांग्रेस आलाकमान कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। मध्यप्रदेश में अगले साल चुनाव हैं। तब तक कांग्रेस को सत्ता का विरह झेलते झेलते डेढ़ दशक हो जाएगा। इस बार माना जा रहा था कि कांग्रेस खुद को खड़ा करके, अपनी खोई हुई ताकत फिर से जुटाने की कोशिश करेगी। लेकिन पार्टी में जैसा घमासान मचा है, उसे देखते हुए लगता नहीं कि ज्यादा कुछ होने वाला है।
कांग्रेस को लहूलुहान कर देने वाले उत्तरप्रदेश के चुनावी फैसले से पहले चर्चाएं चल रही थीं कि मध्यप्रदेश में पार्टी कुछ कड़े कदम उठा सकती है। इन कदमों में नए नेताओं को कमान सौंपकर पार्टी को सक्रिय बनाने की कवायद भी शामिल थी। कहा जा रहा था कि आलाकमान मध्यप्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को अहम भूमिकाएं दे सकता है। पर यूपी के चुनाव ने अब पार्टी की स्थिति और प्राथमिकताएं दोनों ही बदल दी हैं।
मध्यप्रदेश तो अब नेपथ्य में चला गया है। कांग्रेस में अब चिंता और चिंतन इस बात को लेकर है कि केंद्रीय नेतृत्व का क्या करें? क्या राहुल गांधी को ही जारी रखा जाए या उनके स्थान पर किसी और को लाया जाए। लगातार हार और रणनीतिक चूकों के कारण एक बड़ा वर्ग मानने लगा है कि लीडरी करना राहुल के बस में नहीं है। ऐसे में मध्यप्रदेश के बजाय अब पार्टी में ज्यादा उठापटक केंद्रीय स्तर पर होगी। अब तक दिल्ली में बैठकर राजनीति कर रहे प्रदेश के नेताओं की नजर भी भोपाल के शिवाजी नगर के बजाय दस जनपथ पर रहेगी
दूसरी ओर गोवा और दिल्ली से लेकर मध्यप्रदेश तक में जिस तरह से दिग्विजयसिंह पर हमला बोला जा रहा है उसका असर मध्यप्रदेश कांग्रेस की राजनीति पर भी होगा। यानी दिल्ली से लेकर भोपाल तक, कांग्रेस में उठापटक के दिन आ गए हैं… लगता है उसके लिए यह पतझड़ का मौसम है।