यह समय रावण से नहीं कबरबिज्‍जुओं से निपटने का है

 

रविवार को मीडिया समूह इंडिया टुडे/आज तक ने उड़ी हमले के बाद जवाबी कार्रवाई के रूप में भारतीय सेना द्वारा पीओके में की गई ‘सर्जिकल स्‍ट्राइक’ का ब्‍योरा जारी किया। इसमें तफसील से बताया गया है कि किस तरह भारतीय सेना ने इस ‘सर्जिकल स्‍ट्राइक’ की रणनीति तैयार की और किस तरह सेना के जांबाज जवानों ने पीओके में घुसकर आतंकवादियों और उनके शिविरों को ठिकाने लगाया।

जब से भारतीय सेना ने यह ‘सर्जिकल स्‍ट्राइक’ किया है तब से इसके बारे में लगातार विवाद हो रहा है। राजनीतिक विवाद और बयानबाजी को एकतरफ कर दें,तो भी कुछ कबरबिज्‍जू टाइप के नेताओं ने इस शौर्य अभियान की सचाई पर सवाल उठाते हुए उसके सबूत मांगे थे। इसी केटेगरी में आने वाले मुंबई कांग्रेस के अध्‍यक्ष संजय निरुपम ने तो इस कार्रवाई को ही फर्जी बता दिया था। ऐसी ही मंशा पिछले दिनों अपनी जबान छोटी करवाकर लौटे देश के सबसे महान आम आदमी अरविंद केजरीवाल ने भी जाहिर की थी।

मीडिया में ‘सर्जिकल स्‍ट्राइक’ का ब्‍योरा जारी होने के बाद मैं उम्‍मीद कर रहा था कि इन दोनों बयानवीरों में से कोई तो कुछ जरूर कहेगा। अपने मुंह से जो परनाला उन्‍होंने बहाया था उस पर ये लोग माफी मांगेंगे यह उम्‍मीद न तो देश की जनता ने न कभी रखी और न उसे रखनी चाहिए। लेकिन इतनी उम्‍मीद तो मुझे थी कि ये दोनों वक्‍तव्‍यवीर अपने मुंह का ढक्‍कन जरूर खोलेंगे। जैसी कि इनकी फितरत है, उसके चलते ये और कुछ नहीं तो इतना जरूर कहेंगे कि मीडिया बिका हुआ है…, सरकार के हाथों में खेल रहा है…, मीडिया में सर्जिकल स्‍ट्राइक का जो ब्‍योरा जारी हुआ है वह भी पूरा फर्जी है। लेकिन ऐसा इन्‍होंने नहीं कहा।

इस मीडिया खुलासे पर इनका दूसरा पैंतरा यह हो सकता था कि एक बार फिर नरेंद्र मोदी को घेरा जाता और यह आरोप लगाया जाता कि सरकार ने देश के सामने कार्रवाई का खुलासा करने के बजाय सेना की गुप्‍त कार्रवाई को मीडिया में लीक किया। यह सरकार खुद सैन्‍य दस्‍तावेजों की गोपनीयता भंग कर रही है। सरकार के स्‍तर पर मीडिया को ढाल बनाकर आगे किया जा रहा है… वगैरह,लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।

तो क्‍या यह माना जाए कि मीडिया में जो रिपोर्ट आई है उससे संजय निरुपम और अरविंद केजरीवाल जैसे सारे विघ्‍नसंतोषी संतुष्‍ट हैं। क्‍या अब उन्‍हें यकीन हो गया है कि ‘सर्जिकल स्‍ट्राइक’ वाली कार्रवाई फर्जी नहीं थी? अपनी संतुष्टि के लिए वे जिस तरह के सबूत चाहते थे क्‍या मीडिया रिपोर्ट से उन्‍हें वे सबूत मिल गए हैं और वे उन्‍हें स्‍वीकार्य हैं? या फिर यह मानें कि मीडिया की रिपोर्ट पर उंगली उठाकर वे मीडिया से कोई पंगा नहीं लेना चाहते। वे राजनीतिक दल के तौर पर भाजपा से पंगा ले सकते हैं, विरोधी दल की होने के कारण वे देश की सरकार पर चाहे जब उंगली उठा सकते हैं। सरकार पर उंगली उठाने या सरकार को कठघरे में खड़ा करने पर उन्‍हें पॉलिटिकल एडवांटेज मिलता है। मीडिया पर उंगली उठाने या उससे पंगा लेने पर पॉलिटिकल डिसएडवांटेज का खतरा है, क्‍या इसलिए इन दोनों नेताओं की बोलती बंद है? क्‍या इसलिए इनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई क्‍योंकि इनका धंधा (जी हां, मैं तो इसे राजनीति नहीं ‘धंधा’ ही कहूंगा) ही मीडिया के जरिए चलता है? यदि मीडिया से पंगा लेंगे तो अगले दिन कौन इनको पूछेगा और जब मीडिया नहीं पूछेगा तो सारी दुकानदारी चलेगी ही कैसे?

कैसी विडंबना है, हमें देश की चुनी हुई सरकार पर भरोसा नहीं है, हमें दिन रात हमारी हिफाजत में लगी हुई सेना पर भरोसा नहीं है। उड़ी की घटना के बाद पूरे देश से दबाव बनता है, राजनेता सरकार से मांग करते हैं कि वह जवाबी कार्रवाइ करे, दुश्‍मन को माकूल जवाब दे, मोदी अपनी 56 इंच की छाती के दावे को सच साबित करते हुए पाकिस्‍तान का मुंह तोड़ दें… जब कार्रवाई होती है तो कहा जाता है सबूत बताओ… और जब सबूत आता है तो आप में इतनी हिम्‍मत भी नहीं कि आप उस पर कुछ बोलें, उसे सही या गलत कुछ तो बताएं।

यदि आपके पास जमीर नामकी चीज बची हो और आपको लगता है कि आपसे गलतबयानी हो गई, तो कम से कम इस देश से माफी तो मांगें… सेना के शौर्य को फर्जी बताने वाला अपना बयान वापस तो लें, जिस जबान से आपने सबूत मांगा उसे थोड़ी और कटवा तो लें… लेकिन इतनी हिम्‍मत आप में नहीं है। इसलिए मैंने शुरुआत में ऐसे लोगों को कबरबिज्‍जू कहा।

दरअसल देश को असली खतरा सीमा पार से आने वाले भेडि़यों से नहीं है। वे तो घोषित हैं, उजागर हैं… खतरा तो इन कबरबिज्‍जुओं से है जो लाशों को कब्र से निकालकर ही अपना पेट भरते हैं। क्‍या आज विजयदशमी के दिन यह संकल्‍प नहीं बनता कि देश के भीतर मौजूद ऐसे तत्‍वों का नाश करना भी हमारा कर्तव्‍य है। फिर चाहे वो किसी राजनीतिक मुखौटे के पीछे छिपे हों या नक्‍सलियों के रूप में हमारे जंगलों में, या फिर सीमा पार से आने वाले आतंकवादियों के मददगारस्‍लीपर सेल के रूप में…

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