यह दलों के भीतरी प्रजातंत्र का इम्तिहान है

राकेश दुबे

कोई कुछ भी कहे, यह भारत की राजनीति में एक नया मोड़ है। यह मोड़ इस बात का इम्तिहान भी है, कि क्‍या भारत के राजनीतिक दलों में कोई ‘भीतरी प्रजातंत्र’ मौजूद है? कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर पार्टी के अंदर और बाहर चर्चा-परिचर्चा बहुत चल रही है। चर्चा में भाजपा भी है, जहाँ ‘बराएनाम अध्यक्ष बनाये जाते हैं।’ अध्यक्ष बनने और बनाने की परम्परा पारदर्शिता की मांग करती है। चाहे वो कोई भी दल क्यों न हो।

आज यानि 22 सितंबर को कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव की अधिसूचना जारी करेगी, 24 सितंबर से नामांकन दाखिल किए जा सकते हैं और यदि एक से ज्यादा उम्मीदवार हुए तो 17 अक्टूबर को मतदान होगा। इस दौरान कांग्रेस का भाजपा पर कटाक्ष करते हुए यह पूछना गलत नहीं है कि, ‘‘हमारे यहां तो ऐसा नहीं है कि डेढ़ लोग’’ नियुक्ति करें… भाजपा में चुनाव कब हुए थे? नड्डा जी ने कौन सा चुनाव लड़ा था? नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह ने कौन से चुनाव लड़ा था?’’

नेपथ्य में गूंजता सवाल भाजपा और उसके मार्गदर्शी संगठन के बीच उस अदृश्य रिश्ते का भी है जो भाजपा के हर कदम पर दृष्टिगोचर होता है। लेकिन अभी बात कांग्रेस की। अभी तक कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का मसला कयासबाजी से आगे नहीं बढ़ा है। हालांकि चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की तारीख 24 से 30 सितंबर है, इसलिए प्रत्याशियों के नामों की औपचारिक घोषणा अभी न होना कोई खास बात नहीं है।

खास बात यह है कि प्रत्याशियों को तो छोड़िए चुनावों को लेकर भी असमंजस की स्थिति मिट नहीं पा रही। अब तक जिस एक प्रत्याशी को लेकर तस्वीर कुछ हद तक साफ हुई है वह हैं पार्टी के कथित असंतुष्ट गुट जी-23 के सदस्य माने जाने वाले शशि थरूर। किंतु-परंतु के साथ ही सही, लेकिन उन्होंने यह बात सार्वजनिक तौर पर कह दी है कि वह पार्टी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की सोच रहे हैं।

इसी सिलसिले में दो दिन पहले थरूर पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मिले। कहते हैं, सोनिया ने उनसे कहा कि “वह इन चुनावों में निरपेक्ष रहेंगी और शशि चाहते हैं तो चुनाव जरूर लड़ें|” क्या यह संभव है? शायद नहीं। और अगर है तो इससे पार्टी हलकों का असमंजस कम हो सकता है। इस असमंजस के पीछे एक बड़ी वजह तो यह अपुष्ट खबर या अफवाह है कि पार्टी का मौजूदा नेतृत्व राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत को अगला अध्यक्ष बनाना चाहता है और वह इसके लिए राजी भी हो गए हैं।

अगर इस बात में थोड़ी बहुत सचाई हो भी तो सोनिया के ताजा रुख से इतना साफ है कि गांधी परिवार किसी खास उम्मीदवार के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन घोषित नहीं करेगा। पार्टी में असमंजस की दूसरी और ज्यादा बड़ी वजह है एक के बाद एक प्रदेश इकाइयों का राहुल गांधी से अगला अध्यक्ष बनने की अपील करते हुए प्रस्ताव पास करना। गहलोत के ही राज्य राजस्थान से यह प्रक्रिया शुरू हुई और अब तक छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र समेत छह प्रदेश इकाइयां सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित कर चुकी हैं।

अब जब नामांकन दाखिल करने की तिथि करीब है, तो दूसरी तरफ प्रदेश इकाइयों का यह प्रस्ताव सहज ही सवाल पैदा करता है कि आखिर पार्टी में चल क्या रहा है और पार्टी नेतृत्व की असली मंशा क्या है? कांग्रेस की अब तक की रीति नीति को देखते हुए यह राय बनना अस्वाभाविक नहीं है कि राहुल गांधी को अपना मन बदलने का बहाना मुहैया कराने के लिए यह पूरी कवायद कराई जा रही है। दूसरी संभावना यह है कि खुद को अति वफादार साबित करने के लिए क्षेत्रीय नेता अपने मन से यह करवा रहे हों।

सचाई जो भी हो और प्रत्याशी चाहे जैसे भी हों जितने भी हों, अध्यक्ष का चुनाव घोषित कार्यक्रम के मुताबिक और निष्पक्ष, पारदर्शी तथा विश्वसनीय तरीके से हो, यही भीतरी प्रजातंत्र का उदहारण बनेगा। यही पार्टी के हित में भी है। कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनावी हलचल के बीच ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के तहत राहुल गांधी करीब 250 किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं|

उधर सूत्रों के मुताबिक शशि थरूर कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। उन्होंने मलयालम दैनिक अखबार मातृभूमि में एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने ‘स्वतंत्र एवं निष्पक्ष’ चुनाव कराने का आह्वान किया है। इस लेख में उन्होंने कहा कि कांग्रेस कार्यसमिति की दर्जन भर सीटों के लिए भी पार्टी को चुनाव की घोषणा करनी चाहिए। देश में कांग्रेस और भाजपा दो ही बड़े राजनीतिक दल है, प्रजातंत्र की मांग है कि ये दोनों अपने दल के भीतर प्रजातांत्रिक माहौल बनायें।
(मध्यमत)
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