सरयूसुत मिश्रा
ग्रोथ के तिमाही और छमाही आंकड़े आते हैं लेकिन सियासत में कालेधन के उपयोग के आंकड़े चुनाव के समय ही सामने आते हैं। पांच राज्यों के चुनाव में अब तक 1760 करोड़ रुपए से ज्यादा की नगदी-शराब और मुफ्त दिए जाने वाले सामान जब्त किए जा चुके हैं।
भारत निर्वाचन आयोग द्वारा बताया गया है कि यह जब्ती प्रवर्तन एजेंसियों के सहयोग और समन्वय के साथ की गई है। इन कार्रवाइयों में सबसे अधिक नगदी तेलंगाना में पकड़ी गई है। राजस्थान दूसरे नंबर पर मध्यप्रदेश तीसरे, छत्तीसगढ़ चौथे और सबसे कम नगदी मिजोरम में पकड़ी गई है। इन्हीं राज्यों में पांच साल पहले हुए चुनाव के तुलना में इस बार नगदी और सामानों की जब्ती में 7 गुना की वृद्धि हुई है।
चुनाव में काले धन के उपयोग की गंभीरता इस जब्ती से समझी जा सकती है। जब पकड़ी गई राशि सात गुना ज्यादा है तो जो नहीं पकड़ा जा सका है उसके बारे में तो कल्पना ही की जा सकती है। जांच एजेंसियां नगदी या दूसरी अवैध सामग्री की जब्ती करती हैं तब सबसे ज्यादा हो-हल्ला राजनीतिक क्षेत्र में ही मचाया जाता है लेकिन चुनाव के दौरान इन पांचो राज्यों में राजनीतिक क्षेत्र से नगदी और दूसरे सामानों की जब्ती पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया गया है।
राज्यों के चुनाव में मध्यप्रदेश एक अकेला राज्य है जहां चुनाव अभियान के दौरान ED और इनकम टैक्स के छापों का राजनीतिक कनेक्शन सामने नहीं आया है। छत्तीसगढ़ में तो महादेव एप के प्रमोटर्स से जुड़े केरियर से नगद राशि की जब्ती की गई है। राजस्थान में भी कांग्रेस नेताओं के ठिकानों और उनसे जुड़े लोगों पर छापे पड़े हैं। इस पर राजनीतिक विवाद भी हुए हैं। कांग्रेस जहां इन छापों को भाजपा का राजनीतिक हथकंडा बताती रही है वहीं भाजपा की ओर से इसे कांग्रेस की सरकारों का भ्रष्टाचार बताया जा रहा है।
राज्यों के चुनाव अभियान के दौरान नेशनल हेराल्ड के मामले में संपत्तियों की कुर्की का मामला भी सामने आया है। चुनाव में कालेधन का उपयोग राजनीतिक भ्रष्टाचार का कारण और कारक माना जा सकता है। जनप्रतिनिधि पांच साल तक इसी उधेड़बुन और प्रबंधन में जुटे रहते हैं कि अगले चुनाव में प्रबंधन के लिए समुचित धन जुटाया जा सके। चुनावों में मनी मैनेजमेंट को सक्सेस का सबसे बड़ा मंत्र माना जाता है। आजकल तो यह भी देखा जा रहा है कि राजनीतिक दलों में नेतृत्व की कमान अक्सर ऐसे हाथों में ही सौंपी जाती है जिन्हें मनी मैनेजमेंट का सिद्धहस्त माना जाता है।
चुनाव आयोग और जांच एजेंसियों द्वारा चुनाव के दौरान कालेधन के प्रवाह पर पैनी नजर रखी जाती है। इसी कारण नगदी और दूसरे सामानों की जब्ती हर चुनाव में पहले की तुलना में बढ़ती ही जा रही है। इसके बावजूद हर राज्य में ऐसे अनेक चेहरे जाने पहचाने जा सकते हैं जिनके चुनाव में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है। पब्लिक सेंटीमेंट में यह महसूस करने में कोई गफलत नहीं होती कि कहां चुनाव पैसे के दम पर प्रभावित किया जा रहा है।
चुनाव में कालेधन के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए लगातार कोशिशें होती रही हैं लेकिन दुर्भाग्य से इस पर रोक लगने की बजाय यह चुनाव दर चुनाव बढ़ता ही जा रहा है। हर चुनाव में चुनाव आयोग की तरफ से ऐसी विज्ञप्तियां आती हैं कि इस चुनाव में इतनी नगद राशि और अन्य सामान जप्त किए गए हैं। पांच राज्यों के मामले में भी भारत निर्वाचन आयोग द्वारा विज्ञप्ति जारी की गई है। इसके अनुसार पांच साल पहले इन्हीं राज्यों में चुनाव के समय जितनी राशि और कीमत के सामान जब्त किए गए थे उनकी तुलना में इस चुनाव में सात गुना अधिक नगदी और कीमती सामान जब्त किए गए हैं।
इसका मतलब है कि पांच साल में कालेधन के उपयोग की ग्रोथ घटने की बजाय बढ़ी है। चुनाव में कालेधन के उपयोग से निष्पक्षता और स्वतंत्रता प्रभावित होती है। मतदाताओं को पैसे देकर या कीमती सामान देकर लुभाना राजनीतिक भ्रष्टाचार के अलावा कुछ भी नहीं है। कालाधन जहां भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है वहीं राज्य के राजस्व को भी प्रभावित करता है। चुनाव में अगर कालेधन का उपयोग ना हो तो कई लोगों के तो चुनाव लड़ने की संभावना ही समाप्त हो जाएगी।
कालेधन के बेतहाशा उपयोग से निर्वाचन की प्रक्रिया को शुद्ध करने की सर्वाधिक जरूरत है। कालेधन के कारण चुनावी प्रक्रिया में समान प्लेग्राउंड भी नहीं होता। कालेधन से धनाढ्य प्रत्याशी सामान्य प्रत्याशियों को अपने धन की ताकत से ही हरा देते हैं। जनादेश को कालेधन से प्रभावित कर दिया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय और भारत सरकार भी इस दिशा में चिंतनशील है कि चुनाव में धन के उपयोग की पारदर्शिता बढ़ाई जाए। राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को भी पारदर्शी बनाने की जरूरत है। चुनावी बांड को लेकर भी सवाल खड़े किए जाते हैं। पूरी चुनावी प्रक्रिया को जब तक कालेधन से दूर नहीं रखा जाएगा तब तक निर्वाचन प्रक्रिया भले ही निष्पक्षता के साथ संपन्न हो जाए लेकिन वास्तविक अर्थों में निष्पक्षता स्थापित करने के लिए क्रांतिकारी कदम उठाने की जरूरत महसूस की ही जाती रहेगी।
समय-समय पर यह भी विचार आते रहे हैं कि चुनाव में फंडिंग सरकार की तरफ से की जाए। इसके लिए जो भी वैधानिक और प्रशासनिक व्यवस्था करने की आवश्यकता हो उस पर विचार जरूर किया जाना चाहिए। ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ भारत में चुनाव अगर कालेधन की प्रतियोगिता का माध्यम बन जाएंगे तो फिर डेमोक्रेसी की दिशा और दशा कैसे सुधरेगी?
जांच एजेंसियों द्वारा राजनीतिक लोगों से जुड़े मामलों में कार्रवाइयों पर एजेंसियों को कठघरे में खड़ा किया जाता है। सबसे ज्यादा विवाद राजनीति से जुड़े लोगों के मामलों में ही होता है। यद्यपि न्यायिक प्रक्रिया में कई बार जांच एजेंसियों की प्रक्रिया को मजबूती मिली है। सरकारी सिस्टम और डेवलपमेंट के स्ट्रक्चर में करप्शन के साथ ही पिछले वर्षों में पॉलीटिकल करप्शन पर कड़े कदम भारतीय नागरिकों को बेहतर भविष्य के लिए आश्वस्त कर रहे हैं।
पॉलीटिकल करप्शन की सबसे बड़ी जड़ चुनावी प्रक्रिया में कालेधन का उपयोग ही है। इन पांच राज्यों के चुनाव में भी सात गुना ज्यादा नगदी और सामान की जब्ती इसी ओर इशारा कर रही है। यह चुनाव सुधार का सबसे उपयुक्त समय है। इस दिशा में उठाया गया हर कदम भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करेगा। धूप बगैर ऊष्मा के क्या कभी महसूस की गई है?
(सोशल मीडिया से साभार)