पीड़ा के इस ‘क्‍लाइमेक्‍स’ ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा

एक पखवाड़ा मौत के साथ- 13 (इसे जरूर पढ़ें)

अब कुछ नहीं बचा था। न उम्‍मीद और न ही नाउम्‍मीदी। व्‍यक्ति जब तक जीवित था, उसके बचे रहने की उम्‍मीद बंधी रहती थी। अब जब वो नहीं रहा तो उम्‍मीद भी खत्‍म हो गई। नाउम्‍मीदी भी तो तभी तक रहती है ना जब तक उम्‍मीद के विपरीत कुछ होने की आशंका हो। यानी हम बिलकुल खाली हाथ थे।

जैसाकि मैं पहले ही बता चुका हूं, ममता जब अस्‍पताल के आईसीयू में थी तब भी हम न चाहते हुए भी आगे की बहुत सी बातें सोच रहे थे। डॉक्‍टरों ने हमें इतना डरा दिया था कि कुछ भी समझ नहीं आता था। मुझे याद है ऐसे ही एक दिन परिवार के एक सदस्‍य ने मुझे अलग से ले जाकर पूछा था, यदि कोई अनहोनी हो गई तो क्‍या अंतिम संस्‍कार का भी कोई प्रोटोकॉल होगा?

मैंने यही सवाल अपने परिचित डॉक्‍टरों से किया था और उनका जवाब था कि रेबीज के पेशेंट में इस तरह का कोई अलग से तो प्रोटोकॉल नहीं होता। फिर भी आप सावधानी जरूर बरतिएगा। 21 मार्च की सुबह हम अस्‍ताल में थे और वहीं सारी औपचारिकताएं पूरी कर रहे थे। इसी दौरान अंतिम संस्‍कार को लेकर फिर बात उठी और एक सुझाव यह आया कि हम बजाय परंपरागत रूप से अंत्‍येष्टि करने के विद्युत शवदाह गृह का विकल्‍प चुनें।

इस बारे में परिवार के सदस्‍यों से बात हुई तो उन्‍हें भी कोई आपत्ति नहीं थी। भोपाल में केवल सुभाष नगर विश्राम घाट पर ही विद्युत शवदाह की व्‍यवस्‍था है। हालांकि घर के नजदीक वाला विश्राम घाट भदभदा है, लेकिन हमने तय किया कि हम सुभाष नगर ही जाएंगे। यह पता करने के लिए कि वो चालू है या नहीं, मैंने अपने वरिष्‍ठ सहयोगी रहे नगीन बारकिया जी को फोन लगाया।

बारकिया जी की पत्‍नी स्‍थानीय पार्षद भी हैं सो मुझे लगा कि यदि किसी मदद की जरूरत होगी तो हमें वह भी मिल जाएगी। लेकिन ऐसा लगा कि ममता के मामले में किस्‍मत किसी सूरत में हमारा साथ देने को तैयार नहीं थी। नगीन जी ने बताया कि सुभाष नगर विद्युत शवदाहगृह तो बंद पड़ा है। उसे चालू कराए जा सकने की स्थिति भी फिलहाल नहीं है।

हारकर हमने भदभदा विश्राम घाट पर ही अंतिम संस्‍कार करने का फैसला किया। परिवार के कुछ नौजवान लड़कों ने हमसे कहा आप लोग घर पहुंचें, हम लोग बॉडी लेकर वहां आते हैं। डॉक्‍टरों ने सावधानी बरतने की सलाह दी थी, इसलिए सारे बच्‍चों ने हाथ में दस्‍ताने और मुंह पर मॉस्‍क लगाकर बॉडी को हैंडल किया। यह सब दिल को कचोटने वाला था, लेकिन एहतियात भी जरूरी थी।

हिंदू रीति रिवाज में अंतिम संस्‍कार से पहले दिवंगत शरीर को नहलाने और उसे नए कपड़े पहनाने से लेकर और भी कई रस्‍में होती हैं। लेकिन ममता के मामले में परिवार के सदस्‍यों को इन सबसे बचने की सलाह दी गई थी। जो भी रस्‍में थीं वे इन्‍हीं एहतियात के साथ पूरी की गईं। आप सोच सकते हैं कि परिवार के एक आत्‍मीय सदस्‍य के दिवंगत शरीर के साथ होने वाला यह व्‍यवहार कितना पीड़ादायी रहा होगा।

लेकिन हमारी परीक्षा की घडि़यां अभी खत्‍म नहीं हुई थीं। इधर ममता को विश्राम घाट ले जाने की तैयारियां हो रही थीं और इसी बीच अंत्‍येष्टि में आए एक व्‍यक्ति ने सवाल उठा दिया कि रेबीज के मरीज का शवदाह नहीं किया जाता। उसने यह बात दो तीन और लोगों से कही। परिवार के एक सदस्‍य ने मुझे आकर इसकी जानकारी दी और पूछा कि क्‍या ऐसा है?

मेरे लिए यह घटना अप्रत्‍याशित थी। लेकिन चूंकि बात उठी थी इसलिए मैंने परिवार के सदस्‍यों से कहा कि यदि ऐसी कोई बंदिश है तो डॉक्‍टरों से पूछ लेते हैं। मैंने सबसे पहले डॉ. अनिल गुप्‍ता को फोन लगाया, वे पूरे घटनाक्रम में हमारा बहुत बड़ा सहारा साबित हुए थे। डॉ. गुप्‍ता ने कहा- नहीं ऐसा तो कोई प्रोटोकॉल मेरी जानकारी में नहीं है। और यदि अंतिम संस्‍कार नहीं करेंगे तो फिर बॉडी का क्‍या करेंगे?

डॉ. गुप्‍ता से शंका का समाधान हो जाने के बाद भी मैंने सोचा कि क्‍यों न सिद्धांता रेडक्रॉस के डॉक्‍टर से भी पूछ लिया जाए। मैंने वहां के संचालक डॉ. सुबोध वार्ष्‍णेय से बात की। उन्‍होंने भी बताया कि रेबीज के पेशेंट के मामले में अंतिम संस्‍कार का ऐसा कोई प्रोटोकॉल नहीं है। बस इतना ध्‍यान रखें कि बॉडी को हैंडल करते समय आप लोग पार्थिव शरीर के किसी स्राव के संपर्क में न आएं।

उसके बाद हम लोग पार्थिव शरीर को लेकर भदभदा पहुंचे और वहां अंतिम क्रियाएं संपन्‍न कीं। उधर चिता आग पकड़ रही थी और मैं दूर से उसकी लपटों को देखता हुआ सोच रहा था कि हंसते खेलते जीवन का यह कैसा अंत है। देखते ही देखते एक सुखी परिवार की दुनिया उजड़ चुकी थी। रह गई थीं तो केवल यादें।

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लेकिन अभी इस दुखद कहानी का क्‍लाइमेक्‍स बाकी था।

ममता का अंतिम संस्‍कार हो चुकने के बाद हम लोग उत्‍तरक्रियाओं पर ध्‍यान दे रहे थे। परिवार के लोग एक दूसरे को ढाढस बंधाते हुए किसी तरह इस वज्रपात से उबरने की कोशिश कर रहे थे। सबसे ज्‍यादा चिंता ममता के पति राम को इस स्थिति से उबारने की थी। कोशिश रहती कि कोई न कोई उसके आसपास रहे और उसका ध्‍यान बंटाता रहे।

इसी बीच एक घटना ने पूरे परिवार को चेतनाशून्‍य कर दिया। 23 मार्च यानी ममता के अंतिम संस्‍कार के दो दिन बाद उसके पति राम के मोबाइल पर NIMHNS बेंगलुरू से एक संदेश आया। उस संदेश में सिद्धांता रेडक्रॉस में भरती रहने के दौरान लिए गए ममता की रीढ़ की हड्डी के पानी (सीएसएफ) की जांच रिपोर्ट थी। 16 और 19 मार्च यानी ममता की मौत से ठीक 24 घंटे पहले तक की यह रिपोर्ट कह रही थी कि ममता को रेबीज था ही नहीं…

एक नहीं दो दो सैम्‍पल की जांच के बाद देश के सबसे नामचीन संस्‍थान की रिपोर्ट में साफ लिखा था- “No significant rise in titre. Not suggestive of Rabies Encephalitis based on the above test.” यह रिपोर्ट NIMHNS में न्‍यूरोवायरोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रीता एस. मनि के हस्‍ताक्षरों से जारी हुई थी।

कल पढ़ें- अब पूरे परिवार का एक ही सवाल था, यदि रेबीज नहीं था तो फिर ममता को हुआ क्‍या था?

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