बजट के बहाने भाजपा ने बिछाई नई चुनावी बिसात

वैसे तो गुरुवार को संसद में पेश बजट केंद्र सरकार का है लेकिन मैं बात अपने मध्‍यप्रदेश से शुरू करना चाहूंगा क्‍योंकि इस बजट ने हमारे प्रदेश को अपनी पीठ थपथपाने का अवसर दिया है। वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में मध्‍यप्रदेश में किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्‍य दिलाने के लिए शुरू की गई भावांतर भुगतान योजना के प्रयोग पर एक तरह से मुहर लगा दी है।

वित्‍त मंत्री ने संसद में कहा- ‘’खाली न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य बढ़ा देना पर्याप्‍त नहीं है। यह अधिक महत्‍वपूर्ण है कि घोषित एमएसपी का पूरा लाभ किसानों को मिले। इसके लिए यह आवश्‍यक है कि यदि बाजार में दाम एमएसपी से कम हो तो सरकार एमएसपी पर खरीदी करे या किसी अन्‍य व्‍यवस्‍था के अंतर्गत किसान को पूरी एमएसपी मिले। नीति आयोग, केंद्र एवं राज्‍य सरकारों के साथ चर्चा कर एक पुख्‍ता व्‍यवस्‍था तैयार करेगा जिससे किसानों को उनकी फसल का उचित दाम दिलाया जा सके।‘’

यानी मध्‍यप्रदेश का प्रयोग अब राष्‍ट्रीय स्‍तर पर आकार लेने जा रहा है। जिस योजना को लेकर मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की काफी आलोचना हुई थी, उसी योजना को और परिष्‍कृत स्‍वरूप में भाजपा का केंद्रीय नेतृत्‍व अब राष्‍ट्रीय स्‍तर पर क्रियान्वित करेगा। वैसे पहले भी राज्‍य की कई योजनाओं को केंद्र या अन्‍य राज्‍यों ने किसी न किसी रूप में अंगीकार किया है जिनमें लाड़ली लक्ष्‍मी योजना, तीर्थ दर्शन योजना और डॉयल 100 जैसी योजनाएं शामिल हैं।

अब बात बजट के दूसरे मुद्दों पर… बजट पेश किए जाने से पूर्व गुरुवार को आए सारे अखबार और सुबह सारे टीवी चैनल इस बात को लेकर चीख रहे थे कि सरकार पर जनता को राहत देने का भारी दबाव है और इसके चलते आयकर सीमा की छूट बढ़ाई जा सकती है। अलग अलग चैनल इस बारे में अपने अलग अनुमान प्रस्‍तुत कर रहे थे, और कमोबेश सभी का कयास यह था कि चुनाव पूर्व का आखिरी पूर्ण बजट होने के कारण सरकार मध्‍यवर्ग को लुभाने के लिए आयकर में कोई न कोई राहत जरूर देगी।

लेकिन मैंने अपने फेसबुक कमेंट में यह विश्‍वास व्‍यक्‍त किया था कि ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा। मेरा कहना था कि- ‘’ज्‍यादा उछलने या उत्‍साहित होने की जरूरत नहीं है। इस सरकार ने वो कभी नहीं किया जो लोगों या मीडिया ने चाहा। इसी फितरत के चलते बजट में ‘जीरा’ भी मिल जाए तो बहुत समझिएगा…’’ और वैसा ही हुआ, मध्‍यवर्ग को तो जीरा भी नहीं मिला…

दरअसल इस बार भी सरकार ने लोक धारणाओं और उससे भी अधिक मीडिया की कयासबाजियों को दरकिनार करने की अपनी पुरानी आदत के अनुकूल ही आचरण किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यही खासियत है, इस मामले में उन्‍हें हद दर्जे का जिद्दी कहा जा सकता है, वे वैसा कतई नहीं करते जैसा लोग अटकलें लगाते हैं। लीक या कयासों पर चलना उनकी फितरत में ही नहीं है। बजट भी यही कहता है…

तो फिर इस बजट का संदेश क्‍या लिया जाए? हां, यह विशुद्ध चुनावी बजट है। पूरी तरह राजनीति के रंग में रंगा और पगा हुआ। आपको ऊपरी तौर पर यह भाजपा की रंगत उड़ाने वाला लगता हो लेकिन अंदरखाते इसमें राजनीतिक और चुनावी गणित का खालिस गाढ़ा रंग पोतने का ही उपक्रम हुआ है। ध्‍यान से देखें तो आपको थोड़ा बहुत अंदाज जरूर हो जाएगा कि इस बार भाजपा चुनाव मैदान में किसके भरोसे उतरने जा रही है या किस पर दांव लगा रही है।

इस गुत्‍थी को समझने के लिए याद कीजिए उत्‍तरप्रदेश के चुनाव। घोर सांप्रदायिक समीकरण वाली राजनीति के चक्रव्‍यूह में भाजपा ने ऐलानिया तौर पर यह फैसला किया था कि वह एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं देगी। उसने ऐसा ही किया और जिस यूपी की राजनीति अल्‍पसंख्‍यकों और ओबीसी के इर्दगिर्द घूमती थी, वहां खुलेआम यह बात दर्ज कराकर चुनाव जीत लिया कि हमें मुस्लिम वोटों की कतई परवाह नहीं है।

अब यही बात अगले लोकसभा चुनाव में शायद अलग ढंग से दोहराई जाएगी। इस बार सरकार की अनदेखी के निशाने पर मध्‍यवर्ग है। पिछले चार सालों के अनुभव में सरकार ने यह बात अच्‍छी तरह जान ली है कि चाहे कुछ कर लो यह मध्‍यवर्ग यूं ही चिल्‍लाता रहेगा। इसलिए उसे ज्‍यादा तवज्‍जो देने की जरूरत नहीं है। अपन तो अपना नया वोट वर्ग तैयार करें। इसीलिए इस बार दांव किसानों, ग्रामीण आबादी, आदिवासी, महिलाओं और बुजुर्गों पर खेला गया है।

इन सभी श्रेणियों को मिला लिया जाए तो यह इतना बड़ा वोट बैंक हो जाता है कि सरकार चुनाव आसानी से जीत सकती है। मेरी बात पर यकीन न आए तो जरा 10 करोड़ परिवार यानी 50 करोड़ लोगों की स्‍वास्‍थ्‍य एवं चिकित्‍सा देखभाल के लिए लाई गई राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य संरक्षण योजनाको ही ले लीजिए। यदि 50 करोड़ लोग किसी योजना से लाभान्वित हो जाएं तो क्‍या उस योजना का सुफल सरकार को नहीं मिलेगा? मेरे हिसाब से यह योजना भाजपा को वैसा ही राजनीतिक लाभ दे सकती है जैसा मनरेगा ने यूपीए सरकार को दिया था।

बजट में खटकने वाली बात यह है कि इसमें सरकार ने कालेधन और भ्रष्‍टाचार आदि को लेकर ज्‍यादा चर्चा नहीं की है। आश्‍चर्य इसलिए है कि ये मुद्दे तो सरकार के प्रमुख एजेंडे में शामिल रहे हैं। और तो और जिस नोटबंदी को भ्रष्‍टाचार और कालेधन पर अंकुश लगाने के फैसले के रूप में प्रचारित किया गया था, उसे भी वित्‍त मंत्री ने सिर्फ देश में कैशलेस इकॉनामी का वाहक भर बताकर इतिश्री कर दी।

नोटंबदी के बारे में जेटली ने सिर्फ इतना कहा- ‘’उच्‍च मूल्‍य की मुद्रा के विमुद्रीकरण से भारत में नकद मुद्रा एवं परिचालन की मात्रा में कमी आई है। इससे कराधान का आधार व्‍यापक हुआ है तथा देश में अर्थव्‍यवस्‍था के डिजिटाइजेशन में तेजी आई है।‘’ यानी चुनाव से पहले सरकार अब बिना वजह किसी भी जुमलेबाजी में फंसने से बच रही है।

देखना बस यह होगा कि बजट के जरिए की गई इस चुनावी पैंतरेबाजी की धार चुनाव आते आते और तेज होती है या फिर और ज्‍यादा भोथरी…। वैसे शेयर मार्केट की धड़ाम और राजस्‍थान उपचुनाव परिणामों से आए संकेत कुछ तो कह ही रहे हैं…

 

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