‘’अध्यक्ष महोदय, हमारी सरकार ने स्वास्थ्य संरक्षण को और अधिक आकांक्षा वाला स्तर प्रदान करने का निर्णय लिया है। हम 10 करोड़ से अधिक गरीब और कमजोर परिवारों (लगभग 50 करोड़ लाभार्थी) को दायरे में लाने के लिए एक फ्लेगशिप राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना प्रारम्भ करेंगे जिसके तहत द्वितीयक और तृतीयक देख-रेख अस्पताल में भर्ती होने के लिए प्रति परिवार 5 लाख रुपये प्रतिवर्ष तक का कवरेज प्रदान किया जाएगा। यह विश्व का सबसे बड़ा सरकारी वित्तपोषित स्वास्थ्य देखरेख कार्यक्रम होगा। इस कार्यक्रम के सुचारु कार्यान्वयन हेतु पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराई जाएगी।‘’
देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी 2018 को संसद में वर्ष 2018-19 का बजट पेश करते हुए जब भारत की करीब 40 फीसदी आबादी को स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने वाली इस क्रांतिकारी योजना की घोषणा कर रहे थे तब शायद उन्हें अनुमान भी नहीं होगा कि इस घोषणा के महज 20 दिन बाद सरकार की ही एक एजेंसी ऐसा रहस्योद्घाटन करेगी जिससे ‘आयुष्मान राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना’ में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की आशंका का खतरा महसूस होने लगेगा।
दरअसल यह खतरा नैशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) की एक रिपोर्ट के बाद और गंभीर रूप से सामने आया है। एनपीपीए ने दिल्ली और एनसीआर के चार प्रतिष्ठित निजी अस्पतालों के बिलों के विश्लेषण के बाद मंगलवार को खुलासा किया है कि ये अस्पताल दवाओं और विभिन्न जांचों के नाम पर 1737 प्रतिशत तक मुनाफा कमा रहे हैं।
एजेंसी के विश्लेषण से यह भी पता चला है कि अस्पताल में भर्ती हुए किसी मरीज का जो कुल बिल बनता है उसमें 46 प्रतिशत खर्च दवा और विभिन्न जांचों का होता है। रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादा फायदा दवा बनाने वाली कंपनी को नहीं, बल्कि अस्पतालों का होता है, क्योंकि निजी अस्पताल खुद दवाओं पर दाम बढ़ा चढ़ाकर छपवाते हैं।
रिपोर्ट कहती है कि अस्पताल ज्यादातर ऐसी दवाइयां लिखते हैं जो कि उनकी खुद की या पहचान वाली दवा कंपनियों द्वारा ही बनाई जाती है। ऐसे में मरीज और उसका परिवार वे दवाइयां कहीं और से ले ही नहीं पाते। अस्पताल दवा बनाने वाली कंपनियों पर दबाव बनाते हैं कि वे दवाओं की असली कीमत से ज्यादा की एमआरपी प्रिंट करें तभी वे थोक में दवाओं का स्टॉक खरीदेंगे।
ऐसे में दवा कंपनियां अपनी दवाओं की बिक्री बढ़ाने के लिए उन पर मूल कीमत से कई गुना अधिक कीमत प्रिंट करती हैं। दवा खरीदते समय अस्पतालों की ओर से कंपनियों को उनकी मूल कीमत का ही भुगतान किया जाता है। लेकिन जब वही दवा मरीज को दी जाती है तो उससे बढ़ा चढ़ाकर प्रिंट की गई कीमत वसूली जाती है। इस तरह अस्पतालों को एक मोटा मुनाफा बैठे बिठाए ही प्राप्त हो जाता है।
एनपीपीए ने यह जांच इसलिए की क्योंकि पिछले दिनों प्राइवेट अस्पतालों पर कई बार ज्यादा बिल वसूलने के आरोप लगे। रिपोर्ट में बताया गया है कि कोई सुई अगर अस्पताल को 5.77 रुपए की पड़ रही होती है तो वही सुई अस्पताल द्वारा मरीज को 106 रुपए में बेची जाती है। इस तरह उसका मुनाफा 1,737 प्रतिशत तक हो जाता है।
दरअसल, पिछले दिनों डेंगू और अन्य बीमारियों से मरने वाले मरीजों के परिजनों ने निजी अस्पतालों द्वारा अधिक बिल वसूले जाने का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि इलाज के पहले बताया गया खर्च, बाद में तीन-चार गुना बढ़ गया। जब ऐसी कई शिकायतें मिलीं तो एनपीपीए ने उनकी पड़ताल की।
रिपोर्ट में बताया गया है कि कंज्यूमेबल्स पर अस्पतालों के मुनाफे का मार्जिन 350 से लेकर 1700 प्रतिशत तक है। कीमत नियंत्रण के दायरे से बाहर वाली दवाओं पर यह 160 से 1200 प्रतिशत तक है। कीमत नियंत्रण के दायरे में आने वाली दवाओं पर मार्जिन का प्रतिशत 115 से 360 तक है। जबकि गैर-सूचीबद्ध उपकरणों जैसे कैथेटर, कैनुला और सीरिंज पर तो अस्पताल भारी मुनाफा कूट रहे हैं।
अस्पतालों में इलाज के अनाप शनाप बिल की शिकायतें न तो नई हैं और न ही ये दिल्ली अथवा एनसीआर तक सीमित हैं। देश में पिछले कुछ सालों में छोटे छोटे शहरों में भी निजी अस्पताल और नर्सिंग होम खोलने का चलन बढ़ा है। चूंकि सरकारी अस्पतालों में समुचित सुविधाएं नहीं मिलती इसलिए निजी अस्पतालों की ओर लोगों का रुझान भी बढ़ा है। लेकिन ऐसे अस्पतालों में जाने वाले अधिकांश मरीजों या उनके परिजनों में यह शिकायत आम है कि अस्पताल वाले लूट रहे हैं।
भोपाल में ही पिछले एक सप्ताह के दौरान मीडिया में दो निजी अस्पतालों को लेकर ऐसी खबरें छपी हैं। एक नामीगिरामी अस्पताल के बारे में कहा गया कि उसने मरीज की मौत हो जाने के बाद भी, बिल बढ़ाने के लिए, मृतक को दो दिन तक वेंटीलेटर पर रखा। जबकि दूसरे अस्पताल के बारे में परिजनों का आरोप है कि जानबूझकर भारी भरकम बिल बनाया गया और भुगतान न करने की दशा में मरीज की छुट्टी न करने की धमकी दी गई।
यह सही है कि अस्पतालों या नर्सिंग होम्स की स्थापना करने और वहां जांच की अत्याधुनिक मशीनें लगाने में भारी भरकम राशि खर्च होती है। लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि इलाज के नाम पर जायज राशि लेने के बजाय मनमानी वसूली की जाए। और एनपीपीए ने दवाओं व कंज्यूमरेबल्स की कीमत का जो गोरखधंधा उजागर किया है वह तो बहुत ही गंभीर है।
ऐसे में इस बात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि केंद्र सरकार की नई ‘आयुष्मान योजना’ भी गरीबों के इलाज के नाम पर कहीं बड़े अस्पतालों की भारी मुनाफाखोरी का जरिया न बन जाए। लोगों की सेहत सुधारने के नाम पर लाई गई एक अच्छी योजना कहीं भ्रष्टाचार का एक और कीर्तिमान न बना डाले। एनपीपीए की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए हजारों करोड़ की आयुष्मान योजना के अमल में अभी से पूरी एहतियात बरतने और जनधन का दुरुपयोग रोकने के बहुत ही पुख्ता इंतजाम करने की जरूरत है।