गिरीश उपाध्याय
भारत सरकार की ओर से 14 जून को सेना में भरती की नई प्रक्रिया की शुरुआत करते हुए घोषित की गई ‘अग्निपथ’ योजना के सामने आने के चंद घंटों बाद ही उसका विरोध शुरू हो गया। वह विरोध कहां तक जा पहुंचा है यह पिछले तीन दिनों से पूरे देश के सामने है। विरोध के नाम पर हो रही जबरदस्त हिंसा और आगजनी की लपटें और धुंआ इतना अधिक गहरा गया है कि उसने ‘अग्निपथ’ योजना को ठीक से समझने समझाने की प्रक्रिया को ही बाधित कर दिया है। योजना अभी लांच हुई ही थी और देश का जनमानस इसे समझने की कोशिश कर ही रहा था कि बिहार से शुरू हुई हिंसा की आग ने लगभग पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया। और इसका नुकसान यह हुआ कि कई बड़े लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए लाई गई इस योजना पर ठीक से बात भी नहीं हो सकी।
अग्निपथ को लेकर हो रही हिंसा की वजह और योजना को लेकर तमाम तरह की शंकाएं, कुशंकाएं अपनी जगह हैं, विरोध कर रहे युवाओं के सवाल भी अपनी जगह हैं, लेकिन वक्त का तकाजा है कि उन सारी शंकाओं और सवालों पर, बिना बात किए, हाथ में पत्थर या पेट्रोल लेकर तोड़फोड व आगजनी करने से पहले, जरा योजना के बारे में ठीक से समझ लिया जाए।
दरअसल भारतीय सेना के आधुनिकीकरण और रक्षा बजट पर लगातार बढ़ रहे दबाव के चलते सैन्य अधिकारियों के साथ-साथ रक्षा विशेषज्ञ भी इस बात पर लंबे समय से जोर देते रहे हैं कि भारतीय सेना का परंपरागत ढांचा हमें बदलना होगा। मानव संसाधनों पर केंद्रित इस इतने बड़े फोर्स को आधुनिक बनाकर सैन्य संसाधनों और तकनीक को अधिक से अधिक अपनाना होगा। इस विचार के पीछे दो बड़े कारण माने गए थे। इनमें से पहला और महत्वपूर्ण कारण था मानव संसाधन केंद्रित फोर्स के चलते, युद्ध अथवा देश की रक्षा जैसी गतिविधियों के दौरान हो रही कार्रवाइयों में होने वाली जनहानि को कम से कम करना। और दूसरा, पूरी दुनिया में युद्ध की रणनीति और उसके कौशल को अधिक से अधिक तकनीक एवं सैन्य संसाधनों पर केंद्रित करने की कवायद को देखते हुए भारत में भी ऐसा ही करना ताकि ऐसे किसी भी अभियान में विजय या वांछित परिणाम पाए जा सकें।
भारत आज विश्व में न सिर्फ एक बड़ी आर्थिक ताकत है बल्कि सैन्य बल के हिसाब से भी दुनिया में उसका स्थान महत्वपूर्ण है। भारत के आसपास अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर होने वाली गतिविधियों, पड़ोसी मुल्कों द्वारा की जानी वाली हरकतों और शक्ति-संतुलन या विस्तारवादी शक्तियों के अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य के चलते भी यह आवश्यक है कि हम अपनी सेनाओं का आधुनिकीकरण करें। जाहिर है नई तकनीक और संसाधन जुटाने के लिए और अधिक धन की आवश्यकता होती है। ऐसे में रक्षा बजट का युक्तियुक्तकरण अनिवार्य हो जाता है।
एक और बात है जो इस योजना को मजबूत रणनीतिक आधार देती है और वो है बगैर नियमित आर्थिक दबाव के देश में ऐसा फोर्स उपलब्ध रखना जो किसी भी संकटकाल में देश के लिए काम आ सके। इन अर्थों में सेना के आधुनिकीकरण की नींव पूर्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत के समय ही रखी जा चुकी थी और वे इस योजना पर बहुत गंभीरता और तेजी के साथ काम कर भी रहे थे। लेकिन असमय हुए उनके निधन ने भारतीय सेना की शक्ल बदलने के अभियान को बडा धक्का पहुंचाया। उस धक्के से उबरते हुए अब सरकार ने फैसला किया कि एक ऐसी योजना लागू की जाए जो भारत के युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण भी दे और उसके साथ ही उन्हें रोजगार भी उपलब्ध कराए। यह योजना अल्पावधि (चार साल) की इसलिए रखी गई ताकि अधिक से अधिक युवाओं को इससे जोड कर सैन्य प्रशिक्षण देते हुए, संकट काल की परिस्थिति के लिए तैयार कराया जा सके।
जहां तक सेना की सेवा का प्रश्न है, यह वैसी सरकारी नौकरी नहीं है जैसी आमतौर पर दूसरी सरकारी सेवाएं होती हैं। सेना में जाने वाले लोग नौकरी के भाव से कम और देश सेवा के भाव से ज्यादा जाते हैं या कि जाने चाहिए। अपनी मातृभूमि की रक्षा का काम कोई सिर्फ पैसों के लिए ही करेगा या उसे करने के एवज में अपने पारिश्रमिक के लिए मोल भाव करेगा यह सोच ही अपने आप में नकारात्मक है। अपने जीते जी जनरल बिपिन रावत ने भी इस बारे में अपने विचार खुलकर सार्वजनिक किए थे।
अग्निपथ योजना को लेकर हो रहे विरोध के दौरान जनरल रावत का जो एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है उसमें वे कहते हैं- ‘’अकसर मेरे पास कई नौजवान आते हैं और मुझसे कहते हैं कि सर मुझे भारतीय सेना में नौकरी चाहिए, मैं उनसे कहता हूं कि भारतीय सेना नौकरी का साधन नहीं है, नौकरी चाहिए तो रेलवे में जाइये, पीएंडटी में जाइये। बहुत से जरिये हैं, अपना खुद का बिजनेस खोल लीजिये। अगर भारतीय सेना में आना है तो कठिनाइयों का सामना करने के लिए आपको काबिल होना पड़ेगा, मानसिक और शारीरिक दोनों तरीके से सक्षम बनना पड़ेगा। अकसर देखा गया है कि लोग भारतीय सेना को एक रोजगार का जरिया मानते हैं, नौकरी हासिल करने का जरिया, मैं आपको चेतावनी देना चाहूंगा कि यह गलतफहमी अपने दिमाग से निकाल दीजिये। भारतीय सेना नौकरी का जरिया नहीं है।‘’
आज जो युवा सेना में नौकरी के नाम पर प्रदर्शन और हिंसा कर रहे हैं उन्हें देश में सेना के इस सबसे बड़े अफसर रहे व्यक्ति को गंभीरता से सुनना चाहिए और उसकी बात पर विचार करना चाहिए। जो लोग इन युवाओं को भड़का रहे हैं या उनके दिमाग में इस बात को बैठा रहे हैं कि सेना में नौकरी कर लो, जिंदगी आराम से कट जाएगी, वे इन युवाओं का ही नहीं बल्कि देश का भी बहुत बडा नुकसान कर रहे हैं।
और फिर सरकार ने तो अग्निपथ योजना में युवाओं के लिए अवसर ही उपलब्ध कराए हैं। साढ़े सत्रह वर्ष से 21 वर्ष की आयु के वे नौजवान जो सेना में भरती होने की इच्छा रखते हैं उनके लिए यह योजना न सिर्फ कॅरियर के लिहाज से बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी एक अच्छा मौका लेकर आई है। सबसे पहले योजना के आर्थिक पक्ष की बात कर लें। इसमें चयनित अग्निवीर को 30 हजार रुपये प्रतिमाह का आरंभिक वेतन मिलेगा जो चार साल की सेवा के अंत तक 40 हजार रुपये प्रतिमाह हो जाएगा। इसके अलावा कुछ विशिष्ट भत्ते भी होंगे और अन्य स्थायी सैनिकों की तरह अग्निवीर भी अवार्ड, मैडल और इंश्योरेंस कवर के हकदार होंगे। उन्हें योजना के दौरान 48 लाख रुपये का जीवन बीमा कवर मिलेगा। सेवा काल के दौरान अग्निवीर की मृत्यु हो जाने पर बचे हुए कार्यकाल के वेतन सहित करीब एक करोड़ रुपये की राशि परिवार को दी जाएगी। इसी तरह अग्निवीर के अपंग हो जाने पर उसे 44 लाख रुपये की सहायता के अलावा बचे हुए कार्यकाल का वेतन भी मिलेगा।
यह सवाल भी उठा है कि चार साल के बाद अग्निवीरों का क्या होगा? तो चार साल बाद कुल संख्या के 75 फीसदी अग्निवीर सेवा मुक्त कर दिए जाएंगे और 25 फीसदी को सेना में आगे के लिए आवश्यकतानुसार, एक निश्चित प्रक्रिया का पालन करते हुए, समायोजित किया जाएगा। जो सेवा से मुक्त हो जाएंगे उन्हें 11.71 लाख रुपये का सेवा निधि पैकेज दिया जाएगा, जो कर मुक्त होगा। इसके अलावा ऐसे अग्निवीरों को अन्य सशस्त्र बलों और राज्यों के पुलिस बलों सहित अन्य सेवाओं में नौकरी के लिए प्राथमिकता दी जाएगी। मध्यप्रदेश, हरियाणा जैसे कई राज्य इस बात की बाकायदा घोषणा भी कर चुके हैं।
अग्निपथ योजना स्कूल की 10वीं या 12वी परीक्षा पास करके निकले युवाओं के लिए सीखने और कुछ अर्जित करने का अच्छा अवसर होगी। इसमें महिलाओं को भी समान अवसर दिए जाएंगे। चुने गए लोगों को लगभग छह माह का सेना का विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। सेना का विशेष प्रशिक्षण पाए युवा अपना चार साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद न सिर्फ एक बड़ी रकम लेकर, बल्कि एक अनुशासित फोर्स में काम करने का अनुभव लेकर लौटेंगे, जो उन्हें कोई भी अन्य नौकरी या रोजगार पाने में बहुत बड़ी मदद करेगा।
यह बात सही है कि अग्निपथ योजना का कार्यकाल सिर्फ चार साल का है, लेकिन ये चार साल किसी भी युवा को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में तैयार करेंगे जो जीवन में किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए सक्षम हो। हां, उसे पेंशन भले ही न मिले, लेकिन उसे जो प्रशिक्षण और अनुभव मिलेगा उसकी कीमत किसी भी पेंशन से कम नहीं होगी। इसलिए जो युवा योजना का विरोध करते हुए प्रदर्शन और हिंसा कर रहे हैं, उन्हें पहले इस योजना को अच्छी तरह जानना और समझना चाहिए। उन्हें यह भी तय करना होगा कि वे सेना में सिर्फ नौकरी या पेंशन के लिए भरती होना चाहते हैं या फिर देश की सेवा के लिए।
रहा सवाल योजना की कुछ विसंगतियों का, तो सरकार ने इस पर सकारात्मक रुख दिखाया है। विरोध या विसंगति सामने लाए जाने पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने खुद बयान जारी कर इस बात को कहा है कि जो लोग पिछले दो सालों में किसी भी कारण से सेना भरती की परीक्षा नहीं दे सके हैं उन्हें अवसर देने और उनकी मदद के लिए सरकार ने सिर्फ एक बार का एक और मौका देते हुए अग्निपथ योजना में भरती होने की आयु में दो साल की ढील देने का फैसला किया है। यानी ऐसी पहली भरती में अब 21 वर्ष के बजाय 23 वर्ष तक के युवा भी भाग ले सकेंगे। सरकार ने इस मामले में जिस तरह का लचीला रुख अपनाया है उससे लगता है कि वह कुछ और बातों पर भी विचार कर सकती है।
लेकिन दूसरी तरफ विचार उन युवाओं को भी करना होगा जो योजना पर गंभीरता से सोचने और बात करने के बजाय हिंसा और आगजनी पर उतर रहे हैं। युवाओं का यह रवैया किसी भी सूरत में देशहित में नहीं कहा जा सकता। और उन युवाओं से तो इसकी कतई उम्मीद नहीं की जाती जो देश की रक्षा के लिए सेना में जाना चाहते हैं। हिंसा करने वाले युवाओं को अपने तर्कों, सवालों और मांगों के साथ इस बात को भी याद रखना होगा कि वे जो कर रहे हैं उसे देखकर देश में समानांतर रूप से एक सवाल उनके खिलाफ भी खड़ा हो रहा है कि क्या ऐसे लोगों के हाथों में देश की सुरक्षा सौंपी जानी चाहिए जो खुद देश की संपत्ति को आग लगाने का काम कर रहे हों?
(मध्यमत)
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