मोदी सरकार की ऊंची सोच की प्रतीक ‘स्मार्ट सिटी’ योजना को लेकर देश के किसी भी हिस्से में उतनी चर्चा संभवत: नहीं हो रही होगी जितनी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हो रही है। मीडिया में जितनी खबरें पढ़ने, सुनने और देखने में आई हैं उनके मुताबिक देश में स्मार्ट सिटी की प्लानिंग और उसके भावी स्वरूप को लेकर भोपाल जितना विवाद कहीं नहीं हो रहा हो होगा। और देश में जहां जहां भी स्मार्ट सिटी योजना लागू की जानी है, वहां कहीं भी जनता को वैसा बेवकूफ नहीं बनाया जा रहा होगा जैसा भोपाल के लोगों को बनाया जा रहा है।
केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटीज की सूची में जब से भोपाल के नाम का ऐलान किया है तब से यह विवाद गरमाया हुआ है। लोगों का मुख्य विरोध इस बात पर है कि इस योजना से राजधानी के ठीक बीचोंबीच मौजूद हरियाली खत्म हो जाएगी। लेकिन अभी तो ठीक से यह भी तय नहीं हुआ कि जिस इलाके को स्मार्ट बनाया जाना है उसमें कितने पेड़ हैं और उनमें से कितने पेड़ काटे जाएंगे। कोई यह संख्या पांच हजार बताता है तो कोई पचास हजार। जितने मुंह उतनी बातें। वास्तविकता का पता लगाने के लिए कुछ लोग पूरे इलाके में घूम घूम कर एक एक पेड़ गिन रहे हैं। इधर बेचारी जनता पेड़ गिनने में लगी है और उधर भाई लोगों ने आम तोड़ने की तैयारी कर रखी है। बुद्धिमानों और नादानों में यही फर्क होता है। बुद्धिमान आम खाते हैं और नादान पेड़ गिनते हैं। लिहाजा उधर धड़ल्ले से काम चालू आहे और इधर हम सिर्फ स्यापा कर रहे हैं। जिन्हें हम पेड़ के तनों और जड़ों में ढूंढ रहे हैं, वे डालियों, पत्तों और पेड़ की फुनगियों से होते हुए कभी के फुर्र हो चुके हैं।
सरकार बड़ी चालाकी से चाल चल रही है। कुछ दिन पहले एक अफसर ने बयान देकर ऐलान कर दिया कि फलां तारीख से शिवाजी नगर और तुलसी नगर के मकानों को खाली कराने का काम शुरू कर दिया जाएगा। इस पर बहुत हो हल्ला हुआ। किस्मत या बदकिस्मती से जिस इलाके में स्मार्ट सिटी बननी है, वहां का विधायक प्रदेश मंत्रिमंडल में मंत्री भी है। अफसर के ऐलान ने मंत्री के होश उड़ा दिए। आनन फानन में एक मीटिंग बुलाने का दिखावा हुआ और खबर छपवाई गई कि नहीं.. नहीं.. कोई तारीख तय नहीं हुई है। जब तक वैकल्पिक इंतजाम नहीं हो जाता किसी को बेदखल नहीं किया जाएगा। वैसे यह वैकल्पिक इंतजाम की बात भी नौ मन तेल की तरह है। सरकार के पास यदि स्पेयर में दो तीन हजार मकान बनाने का पैसा ही होता तो फिर बात ही क्या थी। यहां पानी पिलाने को तो पैसा है नहीं, मकान कहां से बनाएंगे।
खैर… मंत्री के यहां हुई अफसरों की बैठक के बाद शहर के कुछ विधायकों ने भी मिलजुल कर बयान दिया कि अफसर कौन होते हैं स्मार्ट सिटी का स्थान तय करने वाले। उन्हें तो इस मामले में विश्वास में ही नहीं लिया गया। जनता की राय लिए बिना ऐसा कुछ नहीं होने दिया जाएगा। और ‘जनता की राय’ का भी अजब झमेला है। उधर भोपाल नगर निगम और सरकार के नुमाइंदे दावा करते हैं कि उन्होंने ‘जनता की राय’ लेकर ही तुलसी नगर और शिवाजी नगर का चयन स्मार्ट सिटी के लिए किया था। उसी आधार पर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया, जिसे मंजूरी मिली।
दूसरी तरफ जनता की आवाज उठाने के लिए इकट्ठे हुए लोगों का, जिनमें पूर्व मुख्य सचिव से लेकर समाज के विभिन्न वर्गों और संगठनों के लोग शामिल हैं, कहना है कि जनता की राय की जो बात कही जा रही है वह केवल दिखावा है, टोटल फर्जीवाड़ा है। सरकार की योजना का विरोध करने वाले इन समूहों की मांग है कि स्मार्ट सिटी की लोकेशन पर फिर से रायशुमारी हो और वह भी किसी निष्पक्ष एजेंसी की निगरानी में।
ऐसी तमाम उठापटक के बीच मामला आज भी जहां का तहां है। गुरुवार को फिर एक अफसर का बयान आया है, और बयान क्या आया है, एक तरह से धमकी आई है कि यदि स्मार्ट सिटी की जगह बदली गई तो पूरा प्रोजेक्ट ही निरस्त हो जाएगा। यानी नौकरशाही ने अब नया पैंतरा चल दिया है। और आप यकीन जानिए, अंतत: चलेगी उन्हीं लोगों की। ये जो लोग इधर उधर अफसरों को बुलाकर डांट फटकार का दिखावा कर रहे हैं, उनके बारे में भी जान लीजिए कि उन्हें ‘प्राकृतिक हरियाली’ की नहीं अपने वोटों की हरियाली की चिंता है। और यदि ऐसा नहीं है तो क्यों नहीं भोपाल के सारे विधायक और मंत्री मुख्यमंत्री से दो टूक कह देते कि या तो स्मार्ट सिटी रहेगी या हम रहेंगे। यदि शहर की इतनी ही चिंता है तो दे दीजिए मंत्रिमंडल से इस्तीफा। या जो बात आप कह रहे हैं वह मुख्यमंत्री के मुंह से कहलवा दीजिए। ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने झुग्गियों के बारे में ऐलानिया कहा था कि मेरे जीते जी इन बस्तियों को कोई नहीं हटा सकता। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होने वाला, हम सिर्फ गलतफहमी पाले हुए हैं। कुछ तो वे हमें बेवकूफ समझते हैं और कुछ हम हैं भी सही….
गिरीश उपाध्याय (सुबह सवेरे)