अजय बोकिल
‘हिंदी पत्रकारिता दिवस’ पर 30 मई को सोशल मीडिया में मीडिया और गैर मीडिया क्षेत्रों से एक आवाज जोरों से सुनने को मिली कि पत्रकार अपने बारे में, अपनी परेशानियों और मजबूरियों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहते या कह पाते, तो स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का गाया पुराना गीत याद आया-’उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते। अपनी तो ये आदत है कि हम कुछ नहीं कहते।’
ऐसा क्यों है? वो पत्रकार जो जमाने की पीड़ा, अन्याय और विसंगतियों के बारे में तो जोर-शोर से लिखते-बोलते हैं, लेकिन अपने संघर्ष के बारे में अक्सर मौन ही रहते हैं। कौन-सी विवशता, अंतर्विरोध, दबाव अथवा प्रतिबद्धता उन्हें स्वयं के बारे में मुखर होने से रोकती है? यह सवाल बेहद नाजुक और त्रासद भी है। लेकिन इन सवालों का एक सटीक लेकिन मन सुन्न कर देने वाला जवाब माइक्रोसॉफ्ट कंपनी से हाल में निकाले गए एक पत्रकार ने दिया। उसने कहा कि जिस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम दिमाग और रोबोट) यानी एआई की रिपोर्टिंग मैं अब तक करता रहा, आज उसी एआई ने मेरी नौकरी खा ली है।
अब इसे क्या कहें? किस्मत का क्रूर न्याय? पूंजीवादी निर्ममता? या प्रौद्योगिकी का वो चेहरा, जिसे हम कभी नहीं देखना चाहते फिर भी देखने पर मजबूर हैं अथवा मनुष्य की बनाई मशीन का खुद मनुष्य पर ही अतिक्रमण? जब रोबोट ही पत्रकार बन जाएंगे तो मानव पत्रकार क्या करेंगे? कैसे अपना पेट भरेंगे? कैसे अपनी तड़प, संवेदनाओं और जुगाड़ों को जिंदा रख पाएंगे? अब उन्हें क्या करना चाहिए?
यह सवाल सचमुच बेहद जटिल और डरावना है। बावजूद इसके कि मीडिया में काम करने के अपने तकाजे, लाभ, पूर्वाग्रह, शोषण और लाचारियां हैं। कृत्रिम दिमाग यानी रोबोट की घुसपैठ अब उन क्षेत्रों में तेजी से हो रही है, जो मनुष्य की संवेदना, विचार, मनन, सूचना और चिंतन से जुड़े हैं।
अभी तक यह मुगालता था कि रोबोट केवल अलादीन के चिराग से निकले जिन्न की तरह मनुष्य के आदेशों का पालक है। लेकिन अब जो खबरें आ रही है, वो इसलिए विचलित करने वाली हैं, क्योंकि मीडिया में भी रोबोट ने अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी है। वह पत्रकारों की जगह लेता जा रहा है। खुद संपादक बन रहा है। वह ऐसी मशीन है, जो इंसान को ही रिप्लेस कर रही है।
वैसे मीडिया के क्षेत्र में एआई का प्रवेश काफी पहले हो गया था। पिछले साल चीन की सरकारी समाचार एजेंसी ‘शिन्हुआ’ ने अपने पहले एआई एंकर ‘शिन जाओमेंग’ को एक मिनट का वीडियो बुलेटिन प्रजेंट करने के लिए चुना। इस आई एंकर ने उन दो वरिष्ठ एंकरों की जगह ले ली, जो बरसों से न्यूज एंकरिंग करते हुए हजारों रिपोर्ट्स पेश कर चुके थे। ‘शिन्हुआ’ से पहले एआई के प्रयोग की शुरुआत मीडिया जायंट्स न्यूयॉर्क टाइम्स, रॉयटर, वाशिंगटन पोस्ट आदि अखबारों और संवाद एजेंसियों ने कर दी थी।
यहां सवाल किया जा सकता है कि रोबोट पत्रकार कैसे हो सकता है? मीडिया में उसकी भूमिका कहां-कहां और किस रूप में हो सकती है? फिलहाल एआई का मीडिया में ज्यादातर उपयोग संदर्भ डाटा संचित करने तथा रिसर्च वर्क को तेज करने के काम में हो रहा है। लेकिन इसके साथ ही इसका उपयोग न्यूजरूम में तथा पत्रकारीय प्रक्रिया को तेज करने में किस तरह से हो रहा है, यह भी समझने की बात है। क्योंकि यही वह मुख्यय बिंदु है, जो पत्रकारों की नौकरियों का काल बन रहा है।
एआई के माध्यम से मोटे तौर पर मीडिया वर्कफ्लो को स्ट्रीमलाइन करना अर्थात पत्रकारों की इस बात में मदद करना कि वो अपना काम उत्कृष्ट ढंग से कर सकें, दूसरे वैश्विक खबरों का स्वचलन (ऑटोमेशन) अर्थात जैसे ब्रेकिंग न्यूज को ट्रेस करना, उपलब्ध डाटा पर बहुत तेजी से शोध करना, प्राप्त सूचनाओं को तेजी से को-रिलेट करना तथा फेक न्यूज की फैक्ट चैक के साथ तुरंत छंटाई करना भी शामिल है।
न्यूयॉर्क टाइम्स तो एआई का इस्तेमाल पाठकों के कमेंट्स को शालीन बनाने, रचनात्मक चर्चाओं को बढ़ावा देने और गाली गलौज तथा प्रताड़ना को रोकने के लिए कर रहा है। यानी एक एआई 10 लोगों का काम अकेले ही करने में सक्षम है। कुछ अखबारों में तो संपादकीय पृष्ठ पर छपने वाले आलेखों का चयन और संपादन भी एआई के ही जिम्मे कर दिया गया है।
‘वाशिंगटन पोस्ट’ तो काफी समय से स्वचलित खबर लेखन (ऑटोमेटेड न्यूज राइटिंग) पर काम कर रहा है। इसे रोबोट जर्नलिज्म अथवा ऑटोमेटेड जर्नलिज्म कहा जाता है। रियो ओलिम्पिक के दौरान ऐसे ही एक हेलियोग्राफ स्मार्ट सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल ओलिम्पिक की न्यूज स्टोरीज तैयार करने में किया गया था।
संवाद एजेंसी ‘एसोसिएटेड प्रेस’ ने एआई का प्रयोग समाचार सामग्री तैयार करने के लिए जरूरी डाटा जुटाने तथा खेल व रोजगार की न्यूज रिपोर्ट्स तैयार करने में 2013 से ही शुरू कर दिया था। ‘वर्ल्ड इकानॉमिक फोरम’ ने 2018 में चेताया था कि एआई, रोबोटिक्स और न्यूज ऑटोमेशन दुनिया भर में 7.5 करोड़ नौकरियां खा जाएगा, लेकिन इसी के साथ 13.3 करोड़ नई नौकरियां भी सृजित होंगी। हालांकि अब कोरोना वायरस ने इस अनुमान को भी ध्वस्त कर दिया है।
मीडिया में एआई के पक्ष में वही तर्क दिए जा रहे हैं, जो किसी कंपनी का मुनाफा बढ़ाने और आधुनिक प्रौद्योगिकी अपनाने के पक्ष में दिए जाते रहे हैं। हालांकि अभी भी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि एआई पूरी तरह पत्रकारों की जगह ले ही लेगा। लेकिन एआई समकालीन मुद्दों का एजेंडा सेट करने, समयानुरूप खबर को सूंघने, वैचारिक घमासान, वार-प्रतिवार, प्रतिक्रियाओं संवेदनाओं को सही मौके पर और किस तरह व्यक्त करेगा, समझना मुश्किल है।
डाटा छंटाई, एक तयशुदा फार्मेट में सूचनाएं देना आदि तो संभव है, लेकिन मानव मस्तिष्क की खुराफात, चुहल, चुभन, कटाक्ष और मजे लेने के मनोभावों को एआई किस रूप में अभिव्यक्त करेगा? कहा नहीं जा सकता। बावजूद इन सब बातों के, यह माना जा रहा है कि सभी प्रमुख मीडिया संस्थानों के न्यूजरूम 2025 तक एआई से संचालित होने लगेंगे। मानव पत्रकारों की भूमिका इसमे सहायक के रूप में ही होगी।
हालांकि भारत में मीडिया की स्थिति काफी अलग है। वह एआई के मामले में तो काफी पीछे है। लेकिन कई दूसरे कारणों से पत्रकारों का ‘वाटरलू’ तो यहां भी हो रहा है। इसी कड़ी में महा टेक कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने अपने 27 पत्रकारों को अलविदा कह दिया। ये पत्रकार माइक्रोसॉफ्ट की मीडिया कंपनी पीए मीडिया में काम करते थे।
इन पत्रकारों की जगह अब एआई लेगा। इसी तरह एक अग्रणी मीडिया प्रकाशन समूह ‘ब्लूमबर्ग न्यूज’ के प्रधान संपादक का कहना है कि ऑटोमेशन भविष्य में मीडिया की अनिवार्यता है। मशीनें ही न्यूज ट्रेंड तय करेंगी। मानव पत्रकारों और संपादकों की माफिक वो खबरों का संपादन करेंगी, सुर्खियां तय करेंगी। ‘द गार्जियन’ ने तो अपने ऑस्ट्रेलियाई संस्करण में खास खबरों के शीर्षक रोबोट से बनवाना शुरू कर दिये हैं। क्योंकि रोबोट जर्नलिज्म (या एआई) खर्चे की दृष्टि से भी काफी सस्ता पड़ता है। गूगल तो ‘रोबोट जर्नलिज्म’ की फ्री ट्रेनिंग देने को भी तैयार है।
लेकिन लाख टके का सवाल ये कि क्या एआई पत्रकारों की तरह आलोचनात्मक लेखन भी कर सकता है? (गुणगान के लिए तो वह ठीक है) विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में प्रगत रोबोटों के माध्यम से यह भी संभव हो सकेगा। इन रोबोटों की भाषा पर अच्छी पकड़ होगी। ये रिपोर्टिंग भी कर सकेंगे।
हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि खोजी रिपोर्टिंग और मौलिक लेखन एआई के बस की बात नहीं है। वे मानव मन और मस्तिष्क की बराबरी नहीं कर सकते। अलबत्ता शोधपूर्ण तथा गहरी विश्लेषणात्मक रिपोर्ट्स तैयार करने में एआई मददगार भी हो सकते हैं।
लुब्बो-लुआब ये कि पत्रकारों की हालत उस डॉक्टर या पुलिसकर्मी-सी हो गई है, जो अपना दर्द बताए भी तो किसको और बता भी दे तो इलाज किसके पास है? शायद उससे ऐसा करना अपेक्षित भी नहीं है। क्योंकि समाज उसे अलग नजर से देखता है। शायद इसलिए भी कि ये पेशा ‘भस्मासुरी’ है।
यानी जो पत्रकार रोबोट की जी-जान से रिपोर्टिंग करता है, उसे मानव सभ्यता की उड़ान बताता है, लेकिन वही ‘एआई’ पत्रकार को सड़क पर ला देता है और पेशे से इस निर्वासन का कोई पुरसाने हाल भी नहीं होता। शायद इसीलिए पत्रकार अपने बारे में कुछ नहीं कहते…!
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टीम मध्यमत