आकाश शुक्ला
किसानों के साथ सरकार की वार्ता लगातार असफल हो रही है, लगातार बढ़ती ठंड और किसानों की मौत के कारण सरकार और किसान संगठनों के मध्य सामंजस्य से इन कानूनों में कुछ सुधार करके इन कानूनों पर गतिरोध खत्म कर किसान आंदोलन खत्म करने की आवश्यकता है।
किसान आंदोलन की मुख्य मांग एमएसपी पर कृषि उपज की खरीदी को मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह सरकार द्वारा लागू की गई भावांतर योजना जैसी योजनाओं को कानून का रूप देकर दूर किया जा सकता है। प्रत्येक कृषक के आधार को कृषि उपज की खरीदी के साथ लिंक करके एवं प्रत्येक हेक्टेयर में एक निश्चित फसल की मात्रा का निर्धारण कर फसल की खरीदी की जाए, फसल शासन द्वारा निर्धारित एजेंसियां खरीदें या निजी क्षेत्र द्वारा खरीदी जाए। फसल का मूल्य एवं फसल की मात्रा आधार से लिंक करके, फसल के क्रय-विक्रय की जानकारी दिया जाना कानूनी रूप से अनिवार्य किया जाए। क्रय मूल्य एवं एमएसपी के बीच के अंतर की राशि का भुगतान प्रति हेक्टेयर फसल की निश्चित मात्रा तक शासन द्वारा कृषकों को किया जाए या अन्य कोई कानून बनाकर अंतर की राशि के भुगतान को अनिवार्य किया जाए।
एमएसपी निर्धारण का कानून नहीं बनाने का सबसे प्रमुख कारण खाद्यान्नों की कीमत बढ़ जाने का डर बताया जाता है। खाद्यान्नों की कीमत न बढ़े इसलिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की किसान को गारंटी देने के साथ-साथ व्यापारियों के लिए भी अधिकतम विक्रय मूल्य निर्धारित किए जाने के प्रावधान करने संबंधी कानून बनाने की आवश्यकता है। इन दोनों पर कानून बनने से किसानों की मांग भी मानी जा सकती है और खाद्यान्न महंगे होने से जनता को भी बचाया जा सकता है।
आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर इसके दायरे से खाद्यान्नों को मुक्त करने से फसल क्रय करने वाले व्यापारियों और कंपनियों द्वारा खाद्यान्नों की जमाखोरी करने के कारण बढ़ने वाली कीमतों को भी खाद्यान्नों का अधिकतम विक्रय मूल्य तय करने संबंधी कानून बनाकर रोका जा सकता है।
कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम 2020 में आयकर अधिनियम के अंतर्गत स्थाई खाता संख्या (PAN Card) धारक व्यक्ति को कृषक उपज का व्यापार करने का अधिकार दिया गया, इसके साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य दस्तावेज होने पर भी कृषक को अपनी उपज का व्यापार देश में कहीं पर भी करने की छूट दी गई है। कृषक उपज के मूल्य का भुगतान 3 दिनों के अंदर करने का प्रावधान है।
अकेले पैन कार्ड के आधार पर खरीदी करने का अधिकार देना किसानों को फसल के मूल्य का भुगतान असुरक्षित करेगा, तीन कार्य दिवस में भुगतान करने की छूट देने के कारण किसी अन्य राज्य के व्यापारी भुगतान नहीं करते हैं, और विवाद की स्थिति होती है। ऐसे में केवल पैन कार्ड के आधार पर अनुविभागीय अधिकारी न्यायालय के माध्यम से व्यापारियों से भुगतान प्राप्त करना और विवाद का निपटारा करना आसान नहीं होगा। किसान द्वारा वाद दायर करने की स्थिति में व्यापारी पर सूचना पत्र की तामीली और उसे न्यायालय में उपस्थित कराने में पैन कार्ड की व्यवस्था असफल रहने की संभावना अधिक है। इसके चलते वाद अधिक समय तक लंबित रहेंगे और किसानों को न्याय प्राप्त करने में देरी होगी।
इस कमी को दूर करने के लिए फसल की खरीदी करने वाले व्यापारियों के लिए पैन कार्ड के साथ-साथ अन्य आवश्यक दस्तावेज अनिवार्य किया जाना जरूरी है जिसके अंतर्गत बैंक गारंटी, सॉल्वेंसी या जमानत संबंधी अन्य प्रावधान किए जाने चाहिए। किसानों को फसल खरीदते समय तुरंत भुगतान किए जाने के प्रावधान करके इस कमी को दूर किया जा सकता है।
उपखंड अधिकारी द्वारा कृषि उपज के भुगतान के संबंध में विवाद होने की स्थिति में विवादाधीन रकम की वसूली का आदेश पारित किए जाने के बावजूद, देश के किसी भी भाग से व्यापार करने आने वाले व्यापारी से विवाद की आधी रकम की वसूली करना किसान के लिए आसान नहीं होगा। जब तक व्यापारी की जमानतीय राशि सरकार या व्यापार करने वाले क्षेत्र के उपखंड अधिकारी के पास जमा न रहे।
इस कानून में कानून का उल्लंघन होने पर शास्ति 5000 से 500000 रुपये तक हो सकती है और जहां उल्लंघन जारी रहे वहां प्रत्येक दिन के लिए 5000 रुपये तक की शास्ति के प्रावधान है। वहीं इलेक्ट्रॉनिक व्यापारिक और समभारिक प्लेटफार्म के स्वामियों के लिए 50000 से लेकर 1000000 रुपये तक की शास्ति का प्रावधान है और उल्लंघन जारी रहने पर 10000 रुपये प्रतिदिन की शास्ति का प्रावधान है। इन प्रावधानों की शास्ति की ऊपरी सीमा विवादित रकम के अनुसार निर्धारित किए जाने की आवश्यकता है।
मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध अधिनियम 2020 कानून में कृषि उत्पाद के उत्पादन से पहले कृषि समझौता किये जाने का प्रावधान है। कृषि समझौता करने की कानूनी बाध्यता नहीं है, कृषक चाहे तो यह समझौता कर सकता है। इस कानून से कृषि समझौता करने वाले किसान ही प्रभावित होंगे।
दोनों कृषि कानूनों में सिविल न्यायालय को अधिकारिता नहीं होना इन कानूनों का सबसे कमजोर पहलू है। हमारे देश में कार्यपालक मजिस्ट्रेट की कार्यप्रणाली की विश्वसनीयता न्यायपालिका की तुलना में बहुत कम है। कार्यपालिक मजिस्ट्रेट के आदेशों के विरुद्ध न्याय प्राप्त करने के लिए न्यायपालिका के पास जाना आम बात है। इसीलिए इन दोनों अधिनियमों की समस्त कार्यवाहियों को सिविल न्यायालय की अधिकारिता में लाकर इस कमी को दूर किया जा सकता है। या इन कानूनों से संबंधित विवादों के निपटारे के लिए उपभोक्ता फोरम की तरह किसान फोरम या ट्रिब्यूनल का गठन कर, उनमें न्यायाधीशों की नियुक्ति कर, विवादों के निपटारे के लिए उनको अधिकृत करते हुए दोनों किसान कानूनों को मजबूत बनाया जा सकता है। इससे इन कानूनों के प्रति किसानों में विश्वास बढ़ेगा।(मध्यमत)