मध्यप्रदेश के सत्ता सिंहासन पर 11 साल पूरे करने वाले शिवराजसिंह चौहान मंगलवार को जब मीडिया से मुखातिब हुए तो उनका रूप बदला हुआ था। हालांकि प्रदेश में वे सबसे लंबी अवधि तक राज करने वाले मुख्यमंत्री बन गए हैं, लेकिन मीडिया से उनका रिश्ता अभी तक सहज नहीं रहा है। ऐसा नहीं है कि शिवराज मीडिया की उपेक्षा या अवहेलना करते हों, लेकिन आज के मुहावरे में जिसे ‘मीडिया फ्रेंडली’ होना कहते हैं, शिवराज उस श्रेणी में नहीं आते। इस मामले में वे थोड़ा रिजर्व रहते हैं। हां, कुछ खास घटनाओं या अवसरों को लेकर वे औपचारिक या अनौपचारिक रूप से मीडिया से बात जरूर करते रहे हैं,लेकिन उनके कार्यकाल के 11 सालों में शायद 11 बार भी ऐसे अवसर नहीं आए होंगे जब उन्होंने खुद आगे रहकर अपने स्तर पर विधिवत कोई प्रेस कान्फ्रेंस बुलाकर मीडिया से विस्तार से बात की हो।
इस लिहाज से देखें तो मंगलवार को मीडिया से उनका मुखातिब होना भी उनके इसी स्वभाव की कड़ी था, क्योंकि 11 साला राज की उपलब्धि पर पत्रकारों से यह बातचीत भी शिवराज ने नहीं बल्कि सेंट्रल प्रेस क्लब भोपाल ने ‘मीट द प्रेस’ के रूप में आयोजित की थी। एक घंटे से भी अधिक समय तक चली इस मीडिया मुलाकात में शिवराज ने हर तरह के सवालों के जवाब दिए और अधिकांश पत्रकारों ने 11 साल का कार्यकाल पूरे होने की बधाई के साथ शिवराज से हर तरह के सवाल किए।
संवाद के मामले में शिवराज को आप ‘विस्तारवादी’ कह सकते हैं। वे दर्शनशास्त्र में गोल्ड मैडल के साथ पोस्ट ग्रेजुएट हैं और उनके भाषणों में उनका फलसफाना अंदाज साफ दिखाई देता है। वे बिना थके डेढ़ दो घंटे तक बोल सकते हैं। उनकी शैली बातों और तथ्यों की जुगाली वाली है।
लेकिन मंगलवार को शिवराज का अंदाज बदला हुआ था। बगैर किसी दुहराव या तथ्यों की जुगाली के, उन्होंने जिस तरह अपनी बात समेटी वह ताज्जुब में डालने वाला था। उन्होंने सवालों के जवाब भी बहुत संक्षिप्त और दो टूक दिए।
इस ‘मीट द प्रेस’ से लगा कि 11 साल पूरे करने वाले शिवराज ने अपनी संवाद शैली को अच्छा खासा बदला है। मुश्किल या उलझा देने वाले सवालों पर पहले शिवराज के जवाब ऐसे होते थे मानो वे किसी ‘ऑब्जेक्टिव टाइप’ सवाल का जवाब निंबध शैली में दे रहे हों। सवालों को ‘स्नब’ करने या मुसकुराकर उन्हें टाल देने की अदा उनमें कम ही दिखाई देती थी। लेकिन इस बार लगा कि उन्होंने इस मामले में खुद को मांजने की दिशा में अच्छा खासा होमवर्क किया है। असहज सवालों पर उखड़ते तो शिवराज को बहुत कम ही देखा गया है, लेकिन अब तक ऐसे सवालों पर वे सफाई देते लगते थे। इस बार वे ऐसे सवालों पर बड़ी सफाई से बचकर निकल गए।
जैसे उनसे पूछा गया कि 11 साल होने के बाद भी ऐसा क्यूं है कि हर छोटे मोटे चुनाव में उन्हें ही मोर्चा संभालना पड़ता है, पार्टी में सेकंड लाइन तैयार क्यों नहीं हुई? शिवराज का जवाब था- ‘’सेकंड लाइन तैयार है, लेकिन चुनाव मेरे लिए सिर्फ हार जीत का ही जरिया नहीं हैं, वे मुझे जनता से सीधे संवाद का मौका देते हैं और मैं ऐसा कोई मौका छोड़ना नहीं चाहता।‘’ एक और सवाल दागा गया कि इन 11 सालों में क्या आपको कभी ऐसा लगा कि कोई घटना व्यक्तिगत चूक के कारण हुई हो? शिवराज ने दो टूक इनकार करते हुए कहा- ‘’घटनाएं उद्वेलित या दुखी जरूर करती हैं लेकिन व्यक्तिगत चूक के कारण कोई घटना दुर्घटना नहीं हुई।‘’ जब यह सवाल हुआ कि भोपाल की सेंट्रल जेल से भागे सिमी के विचाराधीन कैदियों को उन्होंने कोर्ट के फैसले के बगैर ही ‘कुख्यात आतंकवादी’ कैसे बता दिया, तो शिवराज का जवाब था- ‘’उनका इतिहास और आपराधिक घटनाओं में लिप्तता के कारण समाज में उनकी जो छवि थी मैंने उसी को सामने रखा।‘’ किसी ने जब शिक्षा की दुरवस्था का जिक्र करते हुए प्रदेश में चार हजार स्कूल ‘जीरो टीचर’ के होने वाली बात कही, तो शिवराज ने तत्काल बात काटते हुए कहा कि ‘’प्रदेश में कोई स्कूल जीरो टीचर वाला नहीं है।‘’
प्रदेश में नौकरशाही के बेलगाम होने सबंधी सवाल पर मुख्यमंत्री ने पूरी दृढ़ता से कहा- ‘’मुझ पर कोई हावी नहीं है। सरकार ने जो चाहा वैसी नीति बनाई और उसका क्रियान्वयन करवाया।‘’ जवाब देते समय उन्होंने नौकरशाही का यह कहते हुए बचाव भी किया कि हरेक के काम करने की अपनी स्टाइल होती है।
सवाल जवाब की इस पूरी श्रृंखला में बस एक जगह शिवराज की जबान फिसली, जो हो सकता है आगे चलकर उन्हें मुश्किल में डाले या जिस पर उन्हें कुछ और सफाई देनी पड़े। उनसे सवाल पूछा गया कि आखिर क्या वजह है कि प्रदेश के राजनेता और अफसरों के बच्चे राज्य के सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते? शिवराज का जवाब था- ‘’यदि इनके बच्चे भी वहां जाने लगें तो सरकारी स्कूलों पर बोझ बढ़ जाएगा…’’ हालांकि उन्होंने लगे लगे ही व्यवस्था में सुधार का दावा भी किया, लेकिन जो तीर कमान से छूट चुका था, शायद उसका अहसास उन्हें भी हो गया था।
कुल मिलाकर 11 साल के मुख्यमंत्री की यह ‘मीट द प्रेस’ एक ऐसे राजनेता के साथ संवाद था जिसने असहज सवालों और असहज स्थितियों दोनों से बाहर निकलने का हुनर सीख लिया है।