गिरीश उपाध्याय
देश में इन दिनों धार्मिक स्थलों पर लगे लाउड स्पीकर से होने वाले ध्वनि प्रदूषण का मामला चर्चा में है। खासतौर से उत्तरप्रदेश में तो इसको लेकर बड़ा अभियान चल रहा है और वहां मस्जिदों और मंदिरों से बड़ी संख्या में लाउड स्पीकर हटाए भी जा चुके हैं। लेकिन इस बीच मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले से आई एक खबर ने सबको चौंकाया है और शोर से होने वाले नुकसान के एक नए आयाम पर सोचने को मजबूर किया है।
मीडिया में आई खबरों के अनुसार 6 मई को उज्जैन के इंगोरिया कस्बे में निकल रही बारात में बज रहे डीजे पर डांस करते-करते एक युवक अचानक बेहोश हो गया। जैसे ही वह गिरा आसपास अफरा-तफरी मच गई और साथ के लोग उसे तत्काल अस्पताल ले गए। उसकी हालत खराब होने पर उसे उज्जैन जिला अस्पताल रेफर किया गया लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। डॉक्टरों का कहना है कि डीजे की तेज आवाज के कारण युवक के दिल पर घातक असर हुआ और उसकी मौत हो गई।
घटना से जुड़ा जो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है उसमें दिख रहा है कि करीब 18 साल का यह युवक बारात में डीजे की धुन पर नाचते-नाचते खुद ही अपना वीडियो बना रहा था। वह अपने दोस्तों के साथ पूरी मस्ती में था। कुछ सेकंड के इस वीडियो में उसके चेहरे पर थकान या अन्य किसी परेशानी के लक्षण नहीं दिख रहे हैं। बताया जाता है कि इसके तत्काल बाद वह सड़क पर गिर पड़ा। साथ में नाच रहे दोस्तों ने उसे उठाने और पानी पिलाने की कोशिश की पर उसे होश नहीं आया।
यह घटना बताती है कि शादी ब्याह में बजने वाले डीजे की तेज आवाज हमारे लिए कितनी घातक हो सकती है। डॉक्टर बताते हैं कि डीजे या और किसी भी तेज आवाज के चलते दिल पर बहुत गहरा असर होता है। अचानक तेज आवाज का होना या आवाज में बहुत तेजी से उतार चढ़ाव होना दिल की धड़कनों को बुरी तरह प्रभावित करता है और यह स्थिति हृदयाघात का कारण बन सकती है। तेज आवाज दिल और दिमाग दोनों पर बुरा असर डालती है और उसका इन दोनों अंगों पर घातक असर होता है, जो जानलेवा भी बन सकता है। एक सामान्य मनुष्य 60 डेसीबल तक की आवाज को सहन कर सकता है, उससे अधिक आवाज कानों के साथ-साथ शरीर के अन्य अंगों के लिए खतरनाक होती है।
डॉक्टरों के अनुसार शादी ब्याह और अन्य सार्वजनिक कार्यक्रमों में बजने वाले डीजे से निकलने वाली ध्वनि कई बार 100 से 150 डेसीबल तक हो जाती है। शादी ब्याह के आयोजनों के अलावा चाहे राजनीतिक रैलियां और जुलूस हों या फिर धार्मिक चल समारोह या कि बड़े स्तर पर होने वाले संगीत समारोह, कहीं भी इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता कि वहां लगने वाले स्पीकर आदि से जो शोर पैदा होगा वह लोगों की सेहत के लिए कितना घातक हो सकता है। यह शोर जब सामान्य मनुष्य के लिए हानिकारक हो सकता है तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि दिल और दिमाग के मरीजों, वृद्धों और बच्चों के लिए यह कितना खतरनाक होता होगा, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार हमारी सामान्य सांसों से पैदा होने वाली आवाज 10 डेसीबल होती है जबकि घड़ी की टिकटिक 20 और फ्रिज का चलना 40 डेसीबल की आवाज पैदा करता है। हम जो सामान्य बातचीत करते हैं उसका ध्वनि स्तर 60 डेसीबल तक होता है। इसके बाद होने वाली तमाम ध्वनियां हमारी सुनने की शक्ति पर विपरीत असर डालती हैं। बहुत तेज आवाज में बजने वाले रेडियो या टेलीविजन आदि से 105 से 110 डेसीबल की ध्वनि निकलती है और लगातार पांच मिनिट इसे सुनने के बाद हमारी सुनने की शक्ति कमजोर हो सकती है।
इन दिनों मोटरसाइकल आदि में अलग-अलग तरीके के मोडिफाइड साइलेंसर लगाने का चलन तेजी से बढ़ रहा है। शहरों में युवकों की टोलियां देर रात ऐसी मोटरसाइकलें लेकर कानफोड़ू शोर मचाते हुए निकलती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार मोटरसाइकल की सामान्य आवाज ही 95 डेसीबल होती है और इसे लगातार 50 मिनिट सुनने पर हमारी सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। भोपाल में हाल ही में इस तरह की मोटरसाइकलों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करते हुए उनसे लाखों रुपये का जुर्माना वसूला गया है। ऐसे प्रत्येक मामले पर 6 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा रहा है। लेकिन इसके बावजूद सड़कों पर होने वाला इस तरह का शोर थमने का नाम नहीं ले रहा।
एक और मामला शहरों में चलने वाले या शहरों से होकर गुजरने वाले भारी वाहनों में लगे प्रेशर हॉर्न का भी है। राष्ट्रीय राजमार्गों पर तो इनका उपयोग एक बार समझ में आता है, हालांकि वहां भी इनके इस्तेमाल पर कई तरह की पाबंदिया हैं, लेकिन इस तरह के हॉर्न लगे वाहन शहरों में भी धड़ल्ले से चल रहे हैं। और तो और स्कूली बच्चों को ले जाने वाले वाहनों तक में इस तरह का खतरनाक शोर करने वाले हॉर्न लगे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2019 में ऐसे ही एक मामले में सुनवाई के दौरान चार पहिया और दोपहिया वाहनों में प्रेशर हॉर्न या मोडिफाइड साइलेंसर के उपयोग पर गहरी नाराजी जाहिर करते हुए पुलिस को ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे।
बाकी लोगों की तो छोड़ दे खुद देश के परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी ऐसे वाहनों से परेशान हैं। उन्होंने कुछ समय पूर्व मीडिया से बातचीत में कहा था कि वे काफी ऊपरी मंजिल में रहने के बावजूद वे सड़क पर निकलने वाले वाहनों के हॉर्न के शोर से परेशान होते हैं। गडकरी ने तो यहां तक कहा था कि वे सोच रहे हैं कि गाडि़यों के हॉर्न भी तबला, बांसुरी, हारमोनियम या वायलिन जैसे किसी वाद्य पर आधारित करवा दिए जाएं ताकि लोगों को इस कानफोडू शोर से मुक्ति मिले और सड़क चलते समय उन्हें कुछ अच्छा सुनाई दे।
कुल मिलाकर हमें सिर्फ धार्मिक स्थलों पर लगने वाले लाउड स्पीकर के ही नहीं, हर तरह के शोर को कम करने की पहल करनी होगी। ध्वनि प्रदूषण जिस तरह लगातार बढ़ता जा रहा है उसका सिर्फ एक नहीं बल्कि कई कारण हैं। धार्मिक स्थलों के बहाने से शुरू हुई पहल यदि समग्रता में ध्वनि प्रदूषण को कम करने की किसी मुहिम में तब्दील हो तो वह अधिक सार्थक होगी। (मध्यमत)
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