कई बार तो समझ में ही नहीं आता कि आखिर देश में हो क्या रहा है। हम आखिर कौनसी व्यवस्था चाहते हैं, कानून से चलने वाली, अपनी मर्जी से चलने वाली या कानून को अपनी मर्जी से चलाने वाली? देश में जब भी अपराध बढ़ते हैं या किसी खास तरह के अपराध में बढ़ोतरी होती है तो समाज, राजनीति और मीडिया तीनों क्षेत्रों से मांग उठती है कि ऐसी घटनाओं या अपराधों को रोकने के लिए सख्त कानून बनने चाहिए ताकि अपराधियों को कड़ी सजा मिले। लेकिन जब सख्त कानून बनता है तो वे ही लोग इसके विरोध में उतर आते हैं जो कुछ समय पहले तक सख्ती और कड़ी सजा की मांग कर रहे होते हैं।
देश में नए मोटर व्हीकल एक्ट 2019 की जो फजीहत हो रही है वैसा शायद ही किसी कानून के साथ हुआ होगा। सड़कों पर आए दिन होने वाली मौतों और दुर्घटनाओं पर कई सालों से चिंता जताई जाती रही है। समाज में इस बात पर भी लंबी बहस चली है कि जिस तरह देश में सड़कों का जाल बिछा है और जिस तरह वाहनों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है उसे देखते हुए मोटर व्हीकल एक्ट में आवश्यक संशोधन करना बहुत जरूरी है।
लगातार होती चर्चाओं और सड़कों पर होने वाली मौतों ने सरकारों को मजबूर किया और आखिरकार 1988 यानी तीस साल पहले बने मोटर व्हीकल कानून को बदलने पर काम शुरू हुआ। पॉलिसी रिसर्च स्टडी इंडिया (पीआरएस इंडिया) के अनुसार इसके लिए केंद्र सरकार ने एस. सुंदर की अध्यक्षता में 2007 में सड़क सुरक्षा पर केंद्रित एक कमेटी का गठन किया। इस कमेटी ने सुझाव दिया कि केंद्र व राज्य दोनों स्तरों पर सड़क सुरक्षा अधिकरणों का गठन किया जाना चाहिए।
अप्रैल 2016 में मोदी सरकार ने राजस्थान के परिवहन मंत्री यूनुस खान की अध्यक्षता में राज्यों के परिवहन मंत्रियों की एक समिति बनाकर उसे सड़क परिवहन क्षेत्र में सुधार के लिए सुझाव देने का काम सौंपा। इस कमेटी ने सुझाव दिया कि सड़क सुरक्षा और यातायात से जुड़े विभिन्न मसलों से निपटने के लिए मोटर व्हीकल एक्ट 1988 में संशोधन किया जाना चाहिए।
पीआरएस के मुताबिक इसके बाद कानून में संशोधन का मसौदा तैयार किया गया जिसका लोकसभा में परिवहन, पर्यटन और संस्कृति मंत्रालयों की स्टैंडिंग कमेटी के अलावा राज्य सभा की सिलेक्ट कमेटी ने भी परीक्षण किया। उसके बाद इसे 16 वीं लोकसभा के समक्ष प्रस्तुत भी किया गया लेकिन उसका कार्यकाल समाप्त हो जाने के कारण यह पारित नहीं हो सका।
17 वीं लोकसभा के गठन के बाद परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 15 जुलाई 2019 को इसे फिर संसद के समक्ष रखा और संसद ने अंतत: नया मोटर व्हीकल एक्ट 2019 पारित कर दिया। संसद से पास होने के बाद इसे एक सितंबर 2019 से लागू किया गया। तब से लेकर अब तक यानी पिछले 18 दिनों में इस बिल के प्रावधानों और क्रियान्वयन को लेकर जो दृश्य देखने को मिल रहे हैं वे हैरान कर देने वाले हैं। एक तरफ नए कानून के तहत बहुत ही भारी भरकम जुर्माने की खबरें आ रही हैं तो दूसरी तरफ बेसिर पैर के चालान काटे जाने की।
पर बात सिर्फ ऐसे चालानों तक ही सीमित नहीं रही है। मामले ने उस समय राजनीतिक मोड़ ले लिया जब भाजपा शासित राज्यों गुजरात, उत्तराखंड और महाराष्ट्र ने ही नए कानून के प्रावधानों का विरोध करते हुए इन्हें मूल स्वरूप में लागू करने से इनकार कर दिया। इनके अलावा छह राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, पंजाब और हिमाचल प्रदेश ने भी इसे अपने यहां लागू नहीं किया है। जबकि तीन केंद्र शासित राज्यों जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और दिल्ली में इसे लेकर स्थिति साफ नहीं हो पाई है। विरोध के पीछे राज्यों का सबसे बड़ा तर्क जुर्माने की राशि में भारी बढ़ोतरी है।
दरअसल नए नियमों के तहत सीट बेल्ट न लगाने पर जुर्माना 100 रुपए से बढ़ाकर 1000 रुपये कर दिया गया है। रेड लाइट तोड़ने पर जहां पहले 1000 रुपए जुर्माना लगता था वहीं अब दोषी को 5000 रुपये देने होंगे। शराब पीकर गाड़ी चलाने पर पहले अपराध के लिए अब 6 महीने की जेल और 10,000 रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है। जबकि दूसरी बार यही गलती की तो 2 साल तक की जेल और 15,000 रुपये तक का जुर्माना लगेगा। बिना लाइसेंस गाड़ी चलाने पर 500 रुपये की जगह अब 5,000 रुपये जुर्माना देना होगा।
इसी तरह अगर कोई नाबालिग गाड़ी चलाता है तो उसे 10,000 रुपये जुर्माना देना होगा जबकि पहले यह राशि 500 रुपये थी। इमरजेंसी वाहन जैसे एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड आदि को रास्ता न देने पर अब तक कोई जुर्माना नहीं था, लेकिन अब ऐसे वाहनों को रास्ता न देने पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भरना होगा। बिना हेलमेट गाड़ी चलाने पर 500 रुपये की बजाए 1000 रुपये का जुर्माना वसूला जाएगा।
जब राज्यों की ओर से विरोध की खबरें आने लगीं तो परिवहन मंत्री नितिन गड़करी नए बिल के बचाव में उतरे और उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि जुर्माने में बढ़ोतरी सरकार ने राजस्व जुटाने के लिहाज से की है। सरकार का एकमात्र लक्ष्य सड़क पर चलने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और यातायात को सुगम बनाना है। राज्य सरकारें जुर्माने की राशि में संशोधन के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन उन्हें नियमों का उल्लंघन करने वालों को रियायत देते समय यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि हर साल डेढ़ लाख लोग सड़क हादसों में मारे जाते हैं और तीन से चार लाख लोग विकलांग हो जाते हैं।
इसी बीच 18 सितंबर को खबर आई है कि 19 सितंबर को नए मोटर व्हीकल एक्ट के प्रावधानों के विरोध में व्यावसायिक वाहन मालिकों ने देश भर में हड़ताल का ऐलान किया है। ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस ने एक्ट में हाल में किए गए बदलाव वापस लेने की मांग की है। उन्होंने निजी वाहन मालिकों, वैन और ऑटो रिक्शा चालकों से भी हड़ताल के लिए समर्थन मांगा है।
सवाल सिर्फ इतना है कि विचार विमर्श की इतनी लंबी प्रक्रिया और संसद द्वारा पास किए जाने के बाद भी क्या कोई कानून देश में लागू हो पाएगा या नहीं। और उससे भी बड़ा सवाल यह कि जब कानून बनाया जा रहा था तो तमाम विशेषज्ञ समितियों और ससंद तक ने क्या उन सारी बातों पर आंख मूंद ली थी जिन्हें आज देश के कई राज्यों और जनता की ओर से उठाया जा रहा है। किसी कानून का इस तरह एक मजाक में तब्दील हो जाना किसी भी सूरत में अपराध और न्याय व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है।