भोपाल/ आप गुरुत्व पैदा करेंगे तो ही अच्छे और सफल गुरु बन सकेंगे। तभी विद्यार्थी आपसे जुड़ेंगे। भारत की जीवन शैली ही भारत का गुरुत्व है, जिसे बचाया जाना चाहिए। आज देश में ऊर्जावान गुरुओं की आवश्यकता है। यह विचार मध्यप्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय भोपाल के प्रो. जयंत सोनवलकर ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (एमसीयू) में शिक्षक दिवस के प्रसंग पर आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किये। एमसीयू के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि शिक्षक दिवस सिर्फ उत्सव का दिन नहीं है बल्कि यह दिन शिक्षकों के लिए आत्मावलोकन का भी है। वर्तमान में शिक्षकों का ध्यान शोध और नवाचार पर होना चाहिए। इस अवसर पर एमसीयू में कुलपति के रूप में एक वर्ष पूर्ण होने पर शिक्षकों की ओर से प्रो. केजी सुरेश का स्वागत एवं सम्मान भी किया गया।
‘स्वतंत्र भारत के 75 वर्ष और शिक्षकों की भूमिका’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रो. जयंत सोनवलकर ने कहा कि भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था आज भी सार्थक और प्रभावी है, जिसे पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है। हमारे शिक्षक ज्ञान के सागर में यदि एक बूंद का भी योगदान दे सकें तो उनकी सार्थकता है। भारत के शिक्षकों को अंतरराष्ट्रीय शोध में योगदान देना है तो उन्हें अपने शोध को अंतरराष्ट्रीय मानकों एवं भाषाओं में उपलब्ध कराना होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस दिशा में भारत को आगे ले जाने वाली साबित होगी।
एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाली मध्यप्रदेश की बेटी सुश्री मेघा परमार कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थीं। इस अवसर पर उन्होंने अपने गुरुओं से जुड़े संस्मरण साझा किए। सुश्री मेघा ने कहा कि बेटी बचाओ अभियान या महिला सशक्तिकरण केवल औपचारिक कार्यक्रमों या आयोजनों से नहीं हो सकता है, इसके लिए वास्तव में स्त्री के हाथ में शिक्षा एवं अवसर देने होंगे और उसकी शक्ति को जगाना होगा। एक शिक्षक का दायित्व है कि वह अपने जैसे और लोगों को तैयार करे। शिक्षक को विद्यार्थियों में यह हौसला पैदा करना चाहिए कि विद्यार्थी हनुमान हैं, वे अपनी शक्ति को पहचानें और अपने जीवन में कुछ सार्थक करें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि किसी भी शैक्षणिक संस्थान की पहचान उसके शिक्षकों से होती है। यानी किसी संस्थान को गढ़ने का कार्य शिक्षक ही करते हैं। इसके साथ ही यह भी सत्य है कि संस्थान के कारण शिक्षकों की भी पहचान होती है। यानी शिक्षक और संस्थान दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के समय में भी शिक्षकों ने अपना सम्पूर्ण योगदान देने का काम किया है। श्री सुरेश ने कोरोना के कारण अपनी जान गंवाने वाले शिक्षकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की।
इससे पूर्व विषय प्रवर्तन करते हुए सहायक प्राध्यापक एवं जनसंपर्क अधिकारी लोकेन्द्र सिंह ने कहा कि भारत विश्वगुरु के गौरवमयी पद पर सुशोभित था, तो शिक्षकों के कारण था। विक्रमशिला, तक्षशिला और नालंदा में ज्ञान प्राप्ति के लिए दुनियाभर के लोग आते थे। भारत में शिक्षा के केंद्र सिर्फ ये विश्वविद्यालय ही नहीं थे बल्कि गाँव-गाँव शिक्षा का केंद्र था। इस संबंध में महात्मा गांधी के वास्तविक अनुयायी धर्मपाल जी द्वारा लिखे शोधपूर्ण ग्रंथ ‘रमणीय वृक्ष/अ ब्यूटीफुल ट्री’ को पढऩा चाहिए। महात्मा गांधी ने इस बात पर अंग्रेज अधिकारी से लंबे समय तक जिरह की था कि भारत शिक्षा के क्षेत्र में शीर्ष पर था, जिसे अंग्रेजों ने ध्वस्त किया।
एमसीयू में गठित स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव आयोजन समिति के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के सभी शिक्षकों को पुस्तक और कलम देकर सम्मानित किया गया। आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रो. श्रीकांत सिंह ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किये। कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी ने विगत एक वर्ष में विश्वविद्यालय की उपलब्धियों एवं गतिविधियों की जानकारी साझा की। कार्यक्रम का संचालन पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थी सौरभ कुमार ने और आभार ज्ञापन छात्रा मुक्ति गुप्ता ने किया।