बाबा कोई भी हो ऐसा संरक्षण उचित नहीं

राकेश अचल

बीते आठ महीने से प्रदेश की सरकार काम करते दिखाई नहीं दी थी। लेकिन बीते रोज इंदौर में कम्प्यूटर बाबा के आश्रम पर बुलडोजर चलकर सरकार ने संकेत दिया है कि सब हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठे हैं। कम्प्यूटर बाबा के खिलाफ कार्रवाई को भले ही प्रतिशोध पूर्वक उजाड़ा गया है किन्तु मुझे ये कार्रवाई साहसिक लगी। सरकार को ये साहस बहुत पहले दिखाना चाहिए था। पर साहस तो आते-आते ही आता है।

प्रदेश में बाबा-बैरागियों को संरक्षण देने वाली सरकारें ही होती हैं। वे ही बाबाओं की समानांतर सरकारें स्थापित करती हैं और फिर उनके जरिये अपना उल्लू सीधा करती हैं। बाबाओं को सरकारों के शपथ ग्रहण समारोहों में मंच प्रदान करने वालों को सब जानते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से पहले एक ज़माने में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बाबाओं को खुला सांरक्षण दिया था। वे बाबा देखते ही घुटनों पर बैठ जाते थे। बाबाओं के हर अतिक्रमण पर उन्होंने आँखें बंद कर रखी थीं। हमारे ग्वालियर में एक महिला बाबा को उन्होंने रामसिया सरकार के रूप में मान्यता दे दी थी। इस महिला बाबा ने मप्र विद्युत मंडल की करोड़ों की जमीन घेर ली थी।

मौजूदा मुख्यमंत्री भी दिग्विजय सिंह के अनुयायी हैं, उनका बाबा प्रेम भी जगजाहिर है। कल उनकी सरकार ने जिस कम्प्यूटर बाबा के आश्रम को जमींदोज किया है उसे भी माननीय की सरकार ने पूर्व में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था, लेकिन जब इस कम्प्यूटर बाबा ने पाला बदलकर दिग्विजय सिंह का दामन थाम लिया तो उसे उसका नतीजा भुगतना ही पड़ा। प्रदेश में एक कम्प्यूटर बाबा ही नहीं है जो सरकारी या वन भूमि पर अवैध रूप से कब्जा कर अपने आश्रम बनाकर रह रहे हैं, ऐसे सैकड़ों बाबा हैं। लेकिन उन पर अभी सरकार की कुदृष्टि नहीं पड़ी है, क्योंकि वे सरकार के खिलाफ खड़े नहीं हुए हैं।

बाबाओं को लेकर सरकार का रवैया संदिग्ध है। सरकार जिस बाबा पर फ़िदा होती है उसे तार देती है और जिससे खफा हो जाती है उसे बर्बाद कर देती है। देश के एक नामचीन्‍ह बाबा को चौहान साहब की सरकार पीथमपुर के पास नंबर एक में सैकड़ों बीघा जमीन देकर उपकृत कर चुकी है, लेकिन चूंकि ये बाबा आज भी सरकारी बाबा हैं, इसलिए किसी ने उससे नहीं पूछा कि उसने उस जमीन पर किसी ऋषि-मुनि के नाम से दवा कारखाना या विश्व विद्यालय बनाया या नहीं?

दरअसल प्रदेश में बाबाओं के प्रति जब से सरकार का प्रेम उमड़ना शुरू हुआ है तब से ही सारी गड़बड़ हुई है। भाजपा की पिछली सरकार ने बाबाओं की एक संस्‍था बनाकर उसके प्रमुख को भी राज्य मंत्री का दर्जा देने का पाप किया था। सवाल ये है कि बाबाओं को वजीर बनाने की जरूरत क्या है? अगर वे सचमुच बाबा हैं तो वजीर का दर्जा उनके सामने क्या मायने रखता है? मुझे दुःख होता है कि बाबाप्रेमी सरकार प्रदेश में पुराने मठ-मंदिरों की जमीनों से अतिक्रमण हटाने के मामले में तो मौन साध लेती है, लेकिन जब किसी बाबा का कम्प्यूटर सरकार के खिलाफ काम करने लगता है तो उसे सबक सिखा दिया जाता है।

सरकार ने पिछले दिनों एक विधायक के अतिक्रमण के खिलाफ भी बुलडोजर का इस्तेमाल किया, मुझे अच्छा लगा, मैं ऐसी हर कार्रवाई का समर्थक हूँ, लेकिन ऐसी कार्रवाई करते समय सरकार को निष्पक्ष होना चाहिए। दुर्भाग्य ये है कि सरकारी बुलडोजर निष्पक्षता से परिचित नहीं है। प्रदेश की सरकार में ऐसे बहुत से विधायक और मंत्री हैं जो सरकारी जमीनें घेरकर बैठे हैं, किन्तु सरकार का बुलडोजर उन्हें न पहचानता है और न पहचानना चाहता है। ये गलत बात है। मैं तो कहता हूँ कि किसी बाबा-बैरागी या नेता को सरकारी जमीन न मुफ्त में और न रियायत से देना चाहिए। सबसे बाजार भाव लिया जाये। मुफ्त का माल खा-खाकर ये दोनों प्रजातियां गर्रा गई हैं।

प्रदेश में सरकारी जमीनें केवल आश्रमों के नाम पर ही नहीं हड़पी गयीं बल्कि गौशालाओं के नाम पर भी हड़पी गयी हैं, इन्हें भी मुक्त कराये जाने की जरूरत है। सरकार को भूमाफिया के खिलाफ ठीक वैसा ही अभियान चलाना चाहिए जैसा कि कमलनाथ की सरकार ने चलाया था। दुर्भाग्य ये है कि कमलनाथ का बुलडोजर भी शिवराज सिंह के बुलडोजर की रह निष्पक्ष नहीं था। कमलनाथ के निशाने पर जितने माफिया थे, दुर्भाग्य से वे सब अब नई सरकार के छाते के नीचे सुरक्षित खड़े हैं। ऐसे तो प्रदेश में माफियाराज का खात्मा नहीं हो सकता। इसके लिए साफ़ नीति और नीयत की जरूरत है। मुझे हंसी तब आती है जब कम्प्यूटर बाबा का आश्रम गिराने की कार्रवाई का समर्थन वे बड़े-बड़े बाबा करते हैं जो खुद भूमाफिया हैं।

आने वाले दिनों में बात तब बनेगी जब सरकार बाबाओं को वजीरों का दर्जा देना बंद करे, बाबाओं को बाबा रहने दे, बाबा यदि कोई समाजिक कार्य कर रहे हैं तो उन्हें गुण-दोष के आधार पर संरक्षण दे, उनका राजनीतिक इस्तेमाल न करे, उन्हें अपने समकक्ष न बैठाये, उनके सामने सार्वजनिक रूप से नतमस्तक न हो, उन्हें अतिविशिष्ट व्यक्ति का सम्मान न दे। लेकिन ऐसा हो नहीं सकता। क्योंकि बाबाओं के बिना किसी भी सरकार का काम चलता नहीं। जनता को मूर्ख बनाने के लिए बाबा ही अमोघ अस्त्र माने जाते हैं। हर दल के, हर सरकार के अपने-अपने बाबा हैं। कई बार तो बाबाओं के जलवे देखकर मेरे मन में भी आता है कि मैं भी लेखकीय कर्म छोड़कर बाबा बन जाऊं, फिर सोचता हूँ कि मुझे ईश्वर ने जिस काम के लिए चुना है, मुझे वो ही करना चाहिए।

मुझे पता है कि कम्प्यूटर बाबा के खिलाफ कार्रवाई से सरकार का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। कम्प्यूटर बाबा के पास श्राप देने की ताकत नहीं है। वे आह भी भरें तो भी सरकार का कुछ नहीं बिगड़ेगा। इसलिए सरकार बेफिक्र होकर अपनी बाबा विरोधी कार्रवाई जारी रखे और पुराने मठ-मंदिरों की सम्पत्ति को भी बचाने का अभियान चलाये तो उचित होगा। कोई बाबा किसी सरकार का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। ये शक्ति केवल सरकार के पास होती है। मैं तो कहूंगा कि सरकार में बैठे लोगों को बाबाओं का भगवा रंग भी त्याग देना चाहिए। सरकार का रंग भगवा होना भी नहीं चाहिए। सरकार सबरंग होना चाहिए, किसी इंद्रधनुष की तरह। सरकार का भगवा रंग देखकर केवल एक समाज ही खुश हो सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here