‘पापा’ सब कुछ सहते हैं…

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Mayank_1मयंक मिश्रा

रात के 10 बजे थे। नई दिल्ली से इलाहाबाद के लिए ट्रेन प्रस्थान कर चुकी थी। ट्रेन चलने के कुछ देर बाद ही कोच नंबर एस-7 में लोगों ने लाइट बंद कर सोना शुरू कर दिया था। लेकिन, सीट नबंर 23 पर मुल्क राज अपने एक साल के बेटे सुमित को गोदी में लिए बैठे थे। मुल्क राज की पत्नी दीपा ऊपर की बर्थ पर सो रहीं थी। लेकिन, मुल्क राज की आंखों से नींद कोसों दूर थी। वह अपनी गोदी में सो रहे सुमित को लगातार धीरे धीरे थपकी देते हुए कुछ गुनगुना रहे थे।

ट्रेन अलीगढ़ से आगे बढ़ चुकी थी। सुमित को सोते सोते भूख लगी तो वह रोने लगा। मुल्क राज ने दीपा को धीरे से आवाज दी और उसे सुमित को दूध पिलाने को कहा। दूध पीकर सुमित फिर सो गया। दीपा ने मुल्क राज से कहा कि वह भी कुछ देर सो जाएं। सुमित को बर्थ पर वह अपने पास सुला लेंगी। लेकिन, मुल्कराज कहां मानने वाले थे। उन्होंने कहा, ‘बर्थ पर सुमित आराम से नहीं सो पाएगा। इसे मुझे पकड़ा दो। मेरी गोदी में यह आराम से सोया रहेगा। तुम भी आराम से सो जाओ।‘ दीपा को मालूम था कि मुल्क राज को समझाना बेकार है। उन्होंने सुमित को गोदी में लिया और फिर से लगातार धीरे धीरे थपकी देते रहे। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। इससे पहले भी दो बार जब वह ट्रेन से गए थे, वह सुमित को इसी तरह से रात भर अपनी गोदी में लिए बैठे रहे थे। घर में भी अकसर जब सुमित रात में सोता नहीं था या बीमार हो जाता था तब भी वह उसे रात भर गोदी में लिए बैठे रहते थे।

सुमित ने अपने पिता की उंगली पकड़ कर चलना शुरू कर दिया था। साथ ही वह बोलने भी लगा था। वह जब ढाई साल का हुआ तब दीपा ने एक और बेटे को जन्म दिया। उन्होंने उसका नाम अमित रखा। जिस तरह से मुल्क राज का लगाव सुमित से रहा उसी तरह से उन्होंने अमित के पालन पोषण के दौरान भी कई रातें ऐसे ही बिताईं। सुमित और अमित मुल्क राज की जान थे। वह उनकी हर फरमाइश को पूरा करते थे। ऑफिस से थक कर आने के बाद भी वह उनके साथ एक घंटा रोज खेलते थे। जितना प्यार मुल्क राज दोनों बच्चों को करते थे उतना ही दोनों बेटे भी उनसे करते थे और मुल्क राज के घर आने के बाद वह उनसे ही चिपके रहते थे।

सुमित के नौवें जन्मदिन पर दीपा घर में पार्टी की तैयारी कर रही थी। पार्टी के लिए उन्हें कुछ सामान लेने बाजार जाना था। दोपहर का खाना बनाकर उसने बाजार जाने के लिए घर के बाहर से रिक्शा लिया। रिक्शा घर से कुछ ही दूर गया होगा कि एक तेज रफ्तार टेंपो ने पीछे से टक्कर मारी और दीपा गिरी और टेंपो उसके दाएं पैर पर चढ़ गया। दीपा सडक़ पर बेसुध पड़ी थी। राहगीर उसे तुरंत पास के अस्पताल ले गए। उसके पर्स से उन्हें पुराना बिजली का बिल मिला जिससे घर का पता चला। किसी तरह से मुल्क राज तक दीपा के एक्सीडेंट की सूचना पहुंचाई गई।

मुल्क राज तत्‍काल अस्पताल पहुंचे। अस्पताल आने से पहले उन्होंने अपने एक साथी को घर भेज दिया ताकि स्कूल से घर आने पर बच्चे परेशान न हों। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि दीपा का दायां पैर काटना पड़ेगा। यह सुनकर मुल्क राज के होश उड़ गए। अगले दिन जब दीपा को होश आया तो उसे अपने दाएं पैर के न होने का अहसास हुआ। वह फूट फूट कर रोती रही। मुल्क राज ने उसे हौसला दिया और कहा, ‘तुम क्यों रो रही हो? तुम्हारा सबसे बड़ा सहारा जब तुम्हारे सामने बैठा है तो तुम्हें घबराने की क्या जरूरत है?’

लगभग दो सप्ताह बाद दीपा घर आई। डॉक्टरों ने स्पष्ट कर दिया था कि वह तीन-चार महीने बेड पर ही रहेगी। मुल्क राज रोज सुबह जल्दी उठते। बच्चों के लिए नाश्ता बनाकर उन्हें स्कूल भेजते। फिर दोपहर का खाना बनाते और अपना टिफिन तैयार करते। ऑफिस जाने से पहले दीपा को तैयार करते और नाश्ता करवाते। सुमित जब स्कूल से आता था तो खुद खाना गर्म करता और मां व छोटे भाई को खाना परोसता था। यह सब देखकर दीपा बहुत परेशान रहने लगी और धीरे धीरे डिप्रेशन में चली गईं। हालांकि बैसाखी और व्हील चेयर के जरिए वह घर में चलने फिरने लगी थी, लेकिन डिप्रेशन की वजह से उसे कई तरह की बीमारियां लग गर्इं जिससे वह बच्चों पर बिलकुल ध्यान नहीं दे पाती थी। पूरा दिन सोई रहती। बच्चों को मां का प्यार भी मुल्क राज ने ही दिया और उन्हें मां की ममता कमी महसूस ही नहीं दी।

दीपा की हालत मुल्क राज से देखी न गई और उन्होंने नौकरी छोड़ दी। उन्हें लगा कि अगर वह दिन भर दीपा के साथ रहेंगे तो उसे डिप्रेशन नहीं होगा और वह बच्चों की देखभाल भी ठीक से कर पाएंगे। नौकरी छोडऩे के बाद मुल्क राज ने किसी तरह अपनी जमा पूंजी से घर चलाया। वह घर का सारा काम करते थे। कपड़े धोने से लेकर बरतन धोने तक। दोनों टाइम का खाना भी बनाते। बच्चों की पसंद की सब्जी अलग बनाते और दीपा व अपने लिए खाना अलग बनाते। शाम को दोनों बच्चों को पढ़ाते। साथ ही आस पड़ोस के कुछ बच्चों को भी ट्यूशन पढ़ाते जिससे उन्हें थोड़े बहुत पैसे मिल जाते थे।

समय बीतता गया और धीरे धीरे मुल्क राज की जमा पूंजी खत्म होने लगी। दीपा भी पहले की तुलना में कुछ बेहतर हो गई थी। मुल्क राज को लगा कि अब उन्हें दोबारा से नौकरी करनी चाहिए। लेकिन, जैसे ही दोबारा नौकरी करने की बात उन्होंने दीपा से की वह अजीब हरकतें करनी लगीं जिससे मुल्क राज को लग गया कि दीपा नहीं चाहती है कि वह उससे दूर रहें। मुल्क राज के समझ में नहीं आ रहा था कि वह घर कैसे चलाएं?

उन्होंने शाम को ट्यूशन पर ज्यादा बच्चे बुलाने शुरू किए और रात में एक ऑफिस में पार्ट टाइम टाइपिंग का काम पकड़ लिया। रात को दस बजे दीपा और बच्चों को सुलाने के बाद वह काम पर जाते और रात में दो बजे घर लौटते। फिर सुबह 6 बजे उठ कर घर के काम काज में जुट जाते। दिन में वक्त मिलने पर भी वह घर पर ही टाइपिंग का काम करते थे। इतना सब कुछ करने के बाद भी वह किसी से कुछ नहीं कहते, हमेशा हंसते रहते थे। मुल्क राज का यह संघर्ष देखकर सुमित उनसे अकसर कहता था, ‘पापा आप इतना कुछ अकेले कैसे सह लेते हो? कितने अच्छे पापा हो आप। यू आर द बेस्ट फादर’।

सुमित और अमित बड़े हो रहे थे और उनकी जरूरतें भी बढ़ रही थीं। सुमित पढ़ाई में काफी होशियार था। वह इंजीनियर बनना चाहता था। उसकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए मुल्क राज ने गांव की जमीन बेच दी। इस जमीन से मुल्क राज को बहुत लगाव था। लेकिन, बेटे को उसकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए उन्होंने उसे भी बेच दिया। साथ ही घर पर टिफिन सप्लाई करने का काम भी शुरू किया। वह दिन में टिफिन बनाते, शाम को ट्यूशन पढ़ाते थे और रात में टाइपिंग का काम करने जाते थे। साथ साथ घर और बाहर के सारे काम भी अकेले करते थे।

मुल्क राज इतनी मेहनत इसलिए कर रहे थे कि उनके बेटे अपने लक्ष्य तक पहुंच सकें। घर पर रहते हुए काम करने से वह दीपा की देखभाल भी कर पाते थे। सुमित ने बारहवीं के बाद इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग की। सुमित की तरह अमित भी इंजीनियर बनना चाहता था। उसे इंजीनियर बनाने के लिए मुल्क राज ने दीपा के वह गहने बेच दिए जो उनकी मां ने शादी के समय दीपा को दिए थे। अमित ने उसी कालेज से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की जिस कालेज से सुमित ने इंजीनियरिंग की थी।

इंजीनियरिंग करने के बाद सुमित की नौकरी नोएडा में लग गई थी। वह इलाहाबाद से नोएडा चला गया। लगभग तीन साल बाद अमित ने भी इंजीनियरिंग कर ली और उसे विदेश में एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई। दोनों अपने काम में इतना व्यस्त होते गए कि उन्हें घर आने की न तो फुरसत मिली और न ही उनकी कभी इच्छा हुई। मुल्क राज ने समय से अपनी जिम्मेदारी पूरी की और दोनों की शादी उनकी पसंद की लडक़ी से कर दी। शादी के बाद दोनों बेटे अपनी पारिवारिक जिंदगी में ऐसे व्यस्त हुए कि मां-बाप से दूरियां बढ़ती गईं।

उम्र बढ़ती जा रही थी लेकिन मुल्क राज का संघर्ष उसी तरह से चल रहा था जैसा वह पहले करते थे। सुमित तो फिर में साल में एक दो बार इलाहाबाद चला जाता था। लेकिन, अमित ने तो इलाहाबाद आना ही छोड़ दिया था। हां, दोनों बेटे और उनकी पत्नियां नियमित तौर पर फोन पर मुल्क राज और दीपा से बात करते थे और उनके अकाउंट में पैसे भी डालते रहते थे ताकि उन्हें किसी चीज की कमी न हो।

दीपा लगातार बीमार रहने लगी। उसने खाना पीना छोड़ दिया। दिन में वह एक दो बार ही आंख खोलती थीं। लेकिन, उसकी आंखों से दिन में कई बार आंसू टपकते थे। वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कह नहीं पा रही थी। मुल्क राज को लगा कि वह बेटों से मिलना चाहती है। उन्होंने सुमित और अमित को कई बार बुलाने की कोशिश भी की। लेकिन, वे नहीं आए।

दीपा एक दिन सुबह जब काफी देर तक नहीं उठी तो मुल्क राज उसे उठाने गए। जैसे ही उन्होंने दीपा का हाथ पकड़ा उन्हें लग गया कि दीपा अब इस दुनिया में नहीं रही। फिर भी खुद की तसल्ली के लिए उन्होंने डॉक्टर बुलाया। डॉक्टर ने दीपा को देखते ही मृत घोषित कर दिया। दीपा चाह कर भी मरने से पहले दोनों बेटों से न तो मिल पाई और न ही मन में दबी अपनी इच्छा को बता पार्इं।

मुल्क राज ने पहले अमित को फोन किया। कंपकपाती आवाज में वह बोले, ‘बेटा तुम्हारी मां नहीं रहीं। जितना जल्दी हो सके आ जाओ।’ उन्हें लगा था कि मां को खोने की खबर सुनकर अमित को धक्का लगेगा। पर ऐसा नहीं हुआ। अमित ने कहा, ‘क्या डैड मां को आज ही मरना था। आज और कल मेरी कंपनी की सालाना कांफ्रेंस है। मैं इसकी तैयारी में बहुत बिजी हूं। मैं आपसे परसों बात करता हूं। हां आप अंतिम संस्कार के लिए मेरा इंतजार न करना और इसके लिए मैं कुछ पैसे आपके अकाउंट में डलवा रहा हूं। टेक केयर डैड।‘ यह कहते हुए अमित ने फोन काट दिया।

मुल्क राज काफी देर तक फोन को पकड़े खड़े रहे। कुछ देर बाद जब उन्होंने खुद को संभाल लिया तो उन्होंने सुमित को फोन किया। सुमित ने फोन उठाते ही कहा ‘डैड मैं मीटिंग में हूं। बाद में बात करता हूं।’ यह कहते हुए उसने फोन काट दिया। मुल्क राज के शब्द उनकी जुबान के अंदर ही रह गए। कुछ देर के बाद उन्होंने सुमित को दोबारा फोन किया। सुमित ने गुस्से से कहा, ‘आप क्यों बार बार फोन करके मुझे परेशान कर रहे हैं। कहा न मीटिंग में हूं। बाद में बात करता हूं।’

मुल्क राज फूट फूट कर रोने लगे। उन्हें लग गया कि दोनों बेटे दीपा के अंतिम संस्कार में नहीं आएंगे। इसलिए उनका इंतजार करना बेकार है। उन्होंने कुछ परिचितों और रिश्तेदारों की मदद से अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू की। वह दीपा की अर्थी लेकर जाने की वाले थे कि तभी सुमित का फोन आया। ‘हां…मुझे पता है आप मुझे क्यों फोन कर रहे थे। अमित ने मुझे बता दिया है कि मॉम इज नो मोर। व्हाट्स बिग डील। एक न एक दिन तो सबको जाना ही है। वैसे भी जिंदा रह कर मॉम ने करना ही क्या था? कई सालों से बीमार थीं वह। मेरे बच्चों के कल फाइनल एग्जाम हैं। मैं अभी नहीं आ सकता। आप अंतिम संस्कार कर दीजिए। अमित और मैं आपके अकाउंट में पैसे डाल रहे हैं। यू टेक केयर। एग्जाम खत्म होने के बाद आने की कोशिश करूंगा।’  सुमित ने मुल्क राज को झूठी दिलासा देने की कोशिश की। मुल्क राज काफी देर तक फोन के पास खड़े रहे। सुमित के शब्द उनके कानों में बार बार गूंज रहे थे।

दीपा की मौत को दो साल बीत चुके थे। लेकिन, एक बार भी न तो अमित उनसे मिलने आया और न ही सुमित। उम्र बढऩे के साथ मुल्क राज की तबियत लगातार खराब रहने लगी। उनमें अब इतनी शक्ति भी नहीं रही थी कि वे खुद के लिए एक कप चाय बना दें। बड़ी हिम्मत करके उन्होंने एक दिन सुमित को अपनी परेशानी बताई। सुमित ने एक फुल टाइम नौकर का इंतजाम कर दिया। नौकर नंदू बहुत ही अच्छा था। वह खाना बनाने के साथ साथ मुल्क राज की सेवा भी करता था और उन्हें अस्पताल भी ले जाता था।

वक्त बीतता गया और मुल्क राज धीरे धीरे और बीमार होते गए। उन्हें लग गया कि उनका अंतिम समय आने वाला है। एक दिन अमित का फोन आया तो उन्होंने कहा ‘बेटा अब मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है। एक बार तो आकर मिल ले।‘  यह सुनकर अमित ने कहा ‘क्या डैड आप इतने भावुक क्यों हो रहे हो। आपको भी यही समय मिला। मॉम भी गलत दिन मरी थीं। मैं कल कंपनी के काम से जर्मनी जा रहा हूं। आपको तो पता ही है, मैं कितना बिजी हूं। मैं नंदू को कहता हूं वह आपको अस्पताल में भर्ती करवा देगा। पैसे की चिंता मत कीजिएगा।‘

मुल्क राज को लग गया कि वह भी दीपा की तरह अमित को देखे बिना ही दुनिया से चले जाएंगे। थोड़ी देर बाद उन्होंने सुमित को फोन किया और उसे भी वही कहा जो अमित से कहा था। सुमित ने कहा ‘ठीक है। मैं कल रात की ट्रेन से आता हूं। आप अपना ध्यान रखिए।‘  सुमित का इतना कहना था कि मुल्क राज खुशी से उछल पड़े। नंदू से कहा, ‘आज तो मैं कचौड़ी जलेबी खाऊंगा।‘  जेब से सौ रुपये का नोट निकालते हुए उन्होंने नंदू को कहा ‘जा मेरे लिए और अपने लिए कचौड़ी और जलेबी ले आ। मेरा बेटा मुझसे मिलने आ रहा है। मैं आज बहुत खुश हूं। अब मैं मर भी जाऊं तो कोई गम नहीं। कम से कम एक बेटे से तो मरने से पहले मिल लूंगा।’

सुमित अपने वायदे के मुताबिक इलाहाबाद आ गया। घर आकर उसने पिता के पैर छुए और उनके पास आकर बैठ गया। ‘क्या हुआ है आपको? अच्छे भले तो हैं आप। मुझे क्यो बेवजह बुला लिया? पता है कितनी जरूरी मीटिंग छोडक़र आया हूं।‘ सुमित की आवाज में गुस्सा था।

‘अरे बेटा तुझे एक बार देखने के लिए बुलाया है। पता नहीं कब मेरा ऊपर से बुलावा आ जाए? मेरे लिए एक मीटिंग नहीं छोड़ सकता है तू’, मुल्क राज ने सुमित के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। ‘तो आप क्या चाहते हो। मैं यहां आपने सामने बैठकर आपके मरने का इंतजार करता रहूं? आपको देखकर तो कहीं से भी यह नहीं लगता है कि आप इतनी जल्दी मरने वाले हो? आपने मुझे देख लिया। अब मैं शाम की ट्रेन से दिल्ली वापस जा रहा हूं।‘, सुमित का गुस्सा लगातार बढ़ रहा था।

‘अरे बेटा इतने समय बाद आया है। दो तीन दिन मेरे पास रुक जा। मुझे अच्छा लगेगा।‘, मुल्क राज बहुत दुखी होकर बोले। ‘नहीं डैड। सवाल ही नहीं उठता। गलती मेरी ही है। मुझे भावुक नहीं होना चाहिए था और समझ जाना चाहिए था कि मुझे बुलाने के लिए आपने झूठ बोला है कि आपका अंतिम समय नजदीक है। अमित ठीक ही कहता था कि आप बहाने बनाने में एक्सपर्ट हैं। इस उम्र में भी नौटंकी करने से बाज नहीं आते हैं।‘, सुमित मुल्क राज को घूरते हुए बोला।

सुमित तो शाम की ट्रेन से दिल्ली लौट गया। लेकिन, मुल्क राज कई दिनों तक सुमित की इन बातों को याद कर रोते रहे। नंदू उन्हें तसल्ली देता रहा। लेकिन, उन्होंने सुमित की बातों को दिल से लगा लिया। सुमित के वापस जाने के लगभग एक महीने के बाद मुल्क राज को सुबह सुबह दिल का दौरा पड़ा। नंदू उन्हें तुरंत अस्पताल ले गया। लेकिन, डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। नंदू ने सुमित को फोन किया और कहा, ‘भइया जी, वो…वो…’ । ‘अरे क्या हुआ। बोलता क्यों नहीं है।’, सुमित ने नंदू से गुस्से में कहा। फिर नंदू बोला, ‘भइया जी मालिक नहीं रहे। आज सुबह उन्हें दिल का दौरा पड़ा। वह हम सबको छोडक़र चले गए।’,  यह कहते हुए नंदू रोने लगा।

‘ओफ्फो…क्या मुसीबत है। आज मुझे जरूरी काम से मुंबई जाना है। आज की मीटिंग मैं नहीं छोड़ सकता हूं। मुंबई की फ्लाइट का टाइम भी हो रहा है। मैं कल किसी तरह इलाहाबाद पहुंचता हूं। तू बर्फ वगैरह का इंतजाम कर ले। और परेशान न होना। मैं कल आऊंगा उसके बाद अंतिम संस्कार करेंगे।‘, यह कहते हुए सुमित ने जल्दी में फोन रख दिया। इसके बाद सुमित ने अमित को फोन किया और पिता के निधन की सूचना दी। अमित ने कहा,  ‘भाई,  मैं अभी नहीं आ सकता हूं। आप इलाहाबाद जाकर संस्कार कर दीजिए।‘

अगले दिन शाम को सुमित इलाहाबाद पहुंचा। वह भी अकेले। कुछ परिचित और रिश्तेदार घर पर बैठे थे। सुमित के आने के बाद वह भी चले गए। सुमित को समझ में नहीं आया कि वह क्या करे? कंधा देने के लिए भी उसे चार लोग नहीं मिल रहे थे। किसी तरह अंतिम संस्कार करने के बाद उसने पंडित जी से साफ कह दिया कि उसके पास समय का अभाव है। फिर पंडित जी को पैसे देते हुए कहा कि आगे की जो भी रस्में हैं आप मेरे नाम से कर दीजिएगा। सुमित ने घर आकर नंदू का हिसाब किताब किया और घर पर ताला लगाकर नई दिल्ली की ट्रेन पकडऩे के लिए स्टेशन आ गया। ताला लगाने के बाद एक बार भी उस घर की तरफ नहीं देखा जहां उसका बचपन बीता था। उधर, नंदू अपने घर आकर खूब रोया और अपने बेटे से कहा, ‘बेटा मैं तुझे कभी बड़ा आदमी नहीं बनाऊंगा। तू भी मेरी तरह नौकर ही बनना। नौकर बनेगा तो चार पैसे घर में कम आएंगे। कम से कम तू मुझे बेसहारा तो नहीं छोड़ेगा। जैसे मालिक के बेटों ने उन्हें छोड़ दिया था।‘

(मयंक मिश्रा वरिष्‍ठ पत्रकार हैं। वे दैनिक भास्कर और अमर उजाला जैसे अखबारों में काम कर चुके हैं। इन दिनों वे स्‍वतंत्र लेखन कर रहे हैं। उनके लेख कई अखबारों में प्रकाशित होते हैं। वे समाज सेवा से भी जुड़े हैं। मयंक की चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।)

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