अजय बोकिल
अपने अनुपम रूप सौंदर्य, नृत्य और अभिनय प्रतिभा से लोगों के दिलों पर बरसों राज करने वाली बाॅलीवुड की चार श्रेष्ठ रूपसियों मधुबाला, हेमामालिनी, श्रीदेवी और माधुरी दीक्षित में से हरेक की अलग मार्किंग करनी पड़े तो आप किस आधार पर करेंगे? चारों रूपवान, चारों भावपूर्ण अभिनेत्रियां, चारों कुशल नर्तकियां यानी चारों बेमिसाल। फिर भी एक फर्क है और वह यह कि मधुबाला का सौंदर्य खिलखिलाता सौंदर्य था तो हेमामालिनी का सौंदर्य राजसी है, माधुरी की ब्यूटी एक मिडिल क्लास ब्यूटी है।
लेकिन श्रीदेवी का सौंदर्य भारतीय मापदंडों के अनुरूप एक अप्सरा का मूर्तिमंत सौंदर्य था। श्रीदेवी के मां बाप ने जन्म के बाद उनका एक अनगढ़ सा नाम श्रीअम्मा यंगर रखा था। लेकिन फिल्मो में वो श्रीदेवी के नाम से उतरीं। ऐसी देवी जो श्रीयुक्त हो। ऐसी अप्सरा जो, विश्वामित्र की तपस्या भी भंग कर दे। ऐसी नृत्यांगना, जिसके हाव भाव पर दुनिया थिरक उठे, ऐसी अदाकारा जिसकी बड़ी-बड़ी आंखें आपके जिगर को घायल कर दे।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में श्रीदेवी का उदय तब हुआ, जब फिल्माकाश में हेमामालिनी का जलवा मंद हो रहा था। रेखा की दीवानगी एक मील के पत्थर तक आते-आते ठहर गई थी। तभी दक्षिण की फिल्मों से एक और नए सितारे श्रीदेवी का अवतरण हुआ। श्रीदेवी नृत्य लय और भावाभिनय का खूबसूरत काॅकटेल थीं। अधेड़ हो रहे जीतेन्द्र के साथ उन्होने अपने नयनाभिराम नृत्यों से धूम मचा दी। इस फिल्म का गीत ‘नैनो में सपना’ आज तक हिट है।
श्रीदेवी की शानदार पोशाकें, शरीर सौष्ठव और दिल को छू लेने वाले नृत्य के कारण समीक्षकों ने उन्हें ‘थंडर थाई’ ( जादुई जंघा) का खिताब दिया था। बात सही भी थी, ऊंचा कद, सुघड़ और चपल शरीर, बोलती आंखें, सुगठित नाक-नक्श मानों किसी मंदिर में उकेरी गई अप्सरा स्वर्ग से उतर कर आपसे सीधे चैट करने आ गई हो!
हेमामालिनी, श्रीदेवी और माधुरी को यह श्रेय बेहिचक दिया जा सकता है कि फिल्मो में नृत्यों की भारतीयता को उन्होने सहेजे रखा। इसमें भी श्रीदेवी को नंबर एक पर इसलिए रखा जा सकता है, क्योंकि इसके जरिए वे हर किरदार को परीकथा का टच दे देती थीं। याद करें कि फिल्म ‘नगीना’ का नागिन डांस, जिसने वैजयंती माला के नागिन डांस को भी कुछ समय के लिए भुला दिया था। ‘चालबाज’ का ‘ना जाने कहां से आई है, ना जाने कहां को जाएगी’ गाने में डांस का एक बेहद शोख और शातिर अंदाज। फिल्म ‘ मिस्टर इंडिया’ के मशहूर गाने ‘हवा हवाई’ में श्रीदेवी के जलवे ने हावडा ब्रिज में हेलन के अमर डांस ‘मेरा नाम चिन चिन चू’ की याद दिला दी थी।
श्रीदेवी को अपने यादगार अभिनय के लिए 5 फिल्म फेयर अवाॅर्ड और पद्मश्री सम्मान सहित कई पुरस्कार मिले। इससे उनके अभिनय की रेंज और विविधता का पता चलता है। सुपरस्टार का सिंहासन छिन जाने और अपना घर बसा लेने के बाद भी श्रीदेवी ने अभिनय से नाता नहीं तोड़ा। एक्टिंग की दूसरी पारी में वे और ज्यादा परिपक्व नजर आईं। इस मायने में इंग्लिश-विंग्लिश उनकी आखिरी यादगार फिल्म थी। खुद काफी मेहनत से हिंदी सीखने वाली श्रीदेवी ने इस फिल्म के जरिए संदेश दिया था कि अंग्रेजी जानना ही सब कुछ नहीं है।
डांस की दृष्टि से भी इस फिल्म के मराठी गाने ‘नवराई माझी लाडाची लाडाची ग’ पर श्रीदेवी के नृत्य ने फिर एक बार दर्शकों को झुमा दिया और यह बारातों की डांस लिस्ट में शामिल हो गया। वैसे बारात में पिछले कुछ सालों से अनिवार्यत: किए जाने वाले नृत्यों में नागिन डांस को भी शुमार किया जा सकता है। सड़कों पर मनमौजी तरीके से होने वाला यह डांस भी श्रीदेवी के जमाने में ही हर बारात के जरूरी संस्कार में शामिल हुआ माना जा सकता है, जिसमें पुरूष खुद को अमरीशपुरी मानकर थिरकते हैं।
लेकिन श्रीदेवी को जिस बात के लिए सबसे ज्यादा याद रखा जाना चाहिए, वह है भारतीय स्त्री सिंगार के एक जरूरी घटक और सुहाग की प्रती क चूडि़यों को उसकी अपेक्षित गरिमा और ऊंचाई प्रदान करना। श्रीदेवी से पहले फिल्मी डांस में चूडि़यों को इतनी अहमियत शायद ही मिली थी। कहने को ‘हरे कांच की चूडि़यां’ में हिरोइन नैना साहू मशहूर गीत ‘बज उठेंगी हरे कांच की चूडि़यां’ गाने पर सुहाग की हरी चूडि़यां पहन कर थिरकी थीं, लेकिन शैलेन्द्र रचित इस सुंदर भावपूर्ण गीत पर भी हिरोइन के हाव-भाव बेरंग थे।
इसके बाद मुमताज ने फिल्म ‘दो रास्ते’ में चूडि़यां खनकेगी’ पर खासे ठुमके लगाए और ‘आज का अर्जुन’ में जयाप्रदा ने ‘गोरी हैं कलाइयां’ डांस में प्रेमी से चूडि़यां पहनाने का मादक इसरार किया था। लेकिन स्त्री सौंदर्य उपकरणों में जो दर्जा फिल्मों में झुमके, पायल और बिंदी आदि को हासिल हो चुका था, चूडि़यां उसके आसपास भी नहीं पहुंची थीं। श्रीदेवी ने यह काम फिल्म ‘चांदनी’ में मेरे हाथों में नौ नौ चूडि़यां हैं’ और ‘लम्हे’ में छनक छन चूडि़यां छनक गई रात मा’ में कर दिखाया। इस दृष्टि से श्रीदेवी फिल्मों में चूडि़यों की चमक और खनक को नई सांस्कृतिक आभा प्रदान करने वाली ‘चांदनी’ थीं।
शायद इसी नृत्य के बाद विवाह समारोह में महिला संगीत के दौरान चूडि़यां छनकाने वाला डांस हमारी विवाह संस्कृति में अनिवार्य रूप से शामिल हो गया। श्रीदेवी ने चूडि़यां छनका कर, चमकाकर, इठलाकर उन्हें वो ग्लैमर बख्शा कि लोग आज भी इस नृत्य को देखकर चूडि़यों में उलझ कर रह जाते हैं। उसी तरह ‘लम्हे’ में रेगिस्तान की सर्द रात में चूडि़यां छनकाती श्रीदेवी मानो सातवें आसमान से उतरी बिंदास नाचती परी सी लगती है। यहां चूडि़यां एक सौंदर्य प्रसाधन की सीमा से परे जाकर स्वर्गिक आनंद का ऐसा माया जाल रचती है, जहां एक स्त्री संस्कारों के दायरों में रहकर भी मुक्ति का जश्न मनाती प्रतीत होती है। यह मानो चूड़ी नृत्य की इंतिहा थी, जिसे बाद में कोई दोहरा न सका। वो खनक भी श्रीदेवी अपने साथ ले गईं।
दर्शकों के दिलों में अतृप्त सी खनक पैदा करने वाली श्रीदेवी ने हिंदी फिल्मो में पदार्पण के समय एक अविस्मरणीय फिल्म ‘सदमा’ में मंदमति लड़की का कठिन और यादगार रोल किया था। उस फिल्म में गाना था-‘ऐ जिंदगी गले लगा ले, हमने भी तेरे हर इक गम को गले से लगाया है..है ना !‘ लेकिन ईश्वर की लीला देखिए कि प्रतिभा के नए प्रतिमान रचने वाली श्री देवी ने जिंदगी की पैडल बोट खेते-खेते अचानक मौत को गले लगा लिया। मेडिकल की भाषा में उनकी मौत की वजह कार्डियक अरेस्ट था। लेकिन श्रीदेवी रजतपट की ‘चांदनी’ थी और चांदनी को भला कोई अरेस्ट कर सका है क्या?
(सुबह सवेरे से साभार)