खबर पाकिस्तान की है लेकिन दहला देने वाली है। हम भारत और पाकिस्तान को लेकर अकसर सीमा पर होने वाली गतिविधियों और आतंकवाद के संदर्भ में ही बात करते हैं। विकास के मामले पर या फिर सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर बात कम ही होती है। लेकिन दोनों देशों में कई मामले ऐसे हैं जो समाज के लिए समान महत्व रखते हैं।
ऐसा ही एक मामला बुधवार को दिल दहला देने वाली खबर के रूप में सामने आया। खबर कहती है कि पाकिस्तान में पिछले एक साल में कचरे के ढेर से सैकड़ों नवजात बच्चियों के शव बरामद किए गए हैं। प्रसिद्ध व्यापारिक शहर कराची में कचरों में ही 345 नवजातों के शव मिले हैं, जिनमें से 99 प्रतिशत लड़कियों के हैं। इस घटना ने पाकिस्तान में लड़कियों की सामाजिक स्थिति की भयावह तस्वीर पेश की है।
पर बच्चियों का गला घोटने के मामले में भारत-पाकिस्तान एक ही जैसे हैं। हमारे यहां भी नवजातों की हत्या के मामलों में आपको ऐसी ही प्रवृत्ति दिखाई देगी। बच्ची पैदा होने पर उसका गला घोट देना हमारे यहां भी कई इलाकों में सामान्य लोकाचार या फिर पुरुष प्रधान समाज की शूरवीरता की निशानी है।
पाकिस्तान की खबर पढ़ने के बाद मुझे एक पुराना किस्सा याद आ गया। इस किस्से में सामाजिक अभिशाप का खुलासा तो है ही, साथ ही मीडिया की भूमिका को लेकर भी कई सवाल छिपे हैं। जैसा मैंने पिछले दो दिनों में शिक्षा के मामले में हो रही रिपोर्टिंग के बारे में कहा वैसा ही क्राइम रिपोर्टिंग के मामले में भी हो रहा है।
क्राइम रिपोर्टिंग भी अपराधी और पुलिस एंगल तक ही सीमित होकर रह गई है। किसी अपराध का सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक दृष्टि से सोसायटी पर क्या इम्पैक्ट हो सकता है इस बारे में अकसर हमारा ध्यान ही नहीं जाता। अमूमन हम पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर ही ऐसी घटनाओं को रिपोर्ट कर अपनी भूमिका को खत्म मान लेते हैं। लेकिन अपराध तो एक सूत्र है जो समाज में मौजूद या उसमें पनप रही आपराधिक प्रवृत्तियों को उजागर करता है।
खैर… यह बात 2006 यानी करीब 12 साल पुरानी है। मैं उन दिनों राजस्थान पत्रिका जयपुर में काम करता था। अखबार की दुनिया में करीब करीब रोज ही इस बात को लेकर मारामारी होती है कि आज की लीड यानी मुख्य खबर क्या होगी? आप किसी भी अखबार में चले जाइए, शाम होते होते खबर विभाग का हर प्रभारी इस समस्या से जूझता मिलेगा।
लेकिन उस दिन हमारे पास लीड का कोई संकट ही नहीं था। देश के जाने माने एनजीओ सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट के हवाले से एक खबर आई थी कि भारत में बिकने वाले तमाम सॉफ्ट ड्रिंक्स में तुलनात्मक रूप से कीटनाशकों की मात्रा बहुत ज्यादा पाई गई है।
इन सॉफ्ट ड्रिंक्स में पेप्सी और कोकाकोला जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नाम वाले उत्पाद भी शामिल थे। सीएसई की डायरेक्टर सुनीता नारायण के मुताबिक उन्होंने अपनी प्रयोगशालाओं में 12 प्रमुख सॉफ्ट ड्रिंक्स की जांच की थी और उनमें लिन्डेन, डीडीटी, मेलाथियान और क्लोरपायरीफॉस जैसे घातक कीटनाशक के अंश पाए गए थे।
निश्चित रूप से यह खबर पूरे देश में तहलका मचा देने वाली थी और यह भी तय था कि अगले दिन शायद ही कोई अखबार हो जो इस जानकारी को लीड खबर के रूप में न छापे। हमने भी अपनी उस दिन की संपादकीय मीटिंग में उसी खबर को अच्छी तरह प्रकाशित करने का प्लान बनाया। उसके लिए ग्राफिक्स आदि भी बनाने को कह दिया गया।
आमतौर पर अखबार की लीड तय हो जाने के बाद लोग थोड़ा रिलेक्स हो जाते हैं। मैं भी वैसे ही रिलेक्स होकर दूसरा काम देखने लगा। थोड़ी ही देर में मेरे रीजनल डेस्क प्रभारी ने आकर सूचना दी कि उदयपुर से एक खबर आई है कि वहां झील के किनारे कुछ मानव भ्रूण मिले हैं।
आज हम जिस समाज में जी रहे हैं वहां ऐसी खबरें आना कोई असामान्य बात नहीं है। लिहाजा मैंने कहा ठीक है उसे उदयपुर संस्करण में हम प्रमुखता से ले लेंगे और जयपुर के संस्करण में प्रदेश की खबरों वाले पेज पर इसे ले लें। रीजनल डेस्क प्रभारी मुझसे बात करके जाने ही लगे कि अचानक जैसे बिजली सी कौंधी, मैंने पूछा क्या कहा आपने, मानव भ्रूण मिले हैं? उन्होंने कहा जी सर… मैंने पूछा कितने, उन्होंने कोई संख्या बताई, जो अभी मुझे ठीक से याद नहीं…
बस, उसके बाद से सारा सीन ही बदल गया। मुझे कुछ और खुटका हुआ और मैंने उदयपुर प्रभारी से तत्काल बात कर पूछा कि ये इतने भ्रूण एकसाथ कैसे मिले और क्या आपने यह पता किया कि ये बालक भ्रूण हैं या कन्या भ्रूण। उन्होंने तब तक इस एंगल पर ध्यान नहीं दिया था। बाद में पता चला कि उनमें से ज्यादातर कन्या भ्रूण हैं।
फिर क्या था… हमारी पूरी प्लानिंग बदल गई। हमने तय किया कि हम इसी खबर को लीड लेंगे। उदयपुर से पूरा इनपुट मंगवाकर हमने वैसा ही किया। अगले दिन बाकी अखबारों में पेप्सी और कोक में कीटनाशक की खबर लीड थी लेकिन हमारे यहां कन्या भ्रूण हत्या की खबर। जाहिर है राजस्थान भर में हमारी खबर की ही ज्यादा चर्चा हुई।
किस्सा लंबा है, लेकिन इस पूरी मशक्कत का नतीजा यह हुआ कि हमारे फॉलोअप से, राजस्थान में गुजरात से आकर गर्भ में कन्या भ्रूण का पता करने और ऐसे केसेस का गर्भपात करवाने वाले रैकेट का भंडाफोड़ हुआ और कई सारे लोगों पर बड़ी कार्रवाई हुई।
कहने का तात्पर्य इतना ही है कि हम ये जो ‘भाइयों और बहनों’ की रैलियों और भाषणों में से कुरेद कुरेद कर कचरा बीनते रहते हैं, उसके बजाय कभी असली कचरे के ढेर को भी कुरेद कर देख लिया करें,‘असली खबरें’ तो वहां छुपी होती हैं…