गिरीश उपाध्याय
मध्यप्रदेश के लिए यह संतोष का विषय है कि कोरोना की दूसरी लहर का जो कहर राज्य पर टूटा था, उसका असर धीरे धीरे कम हो रहा है। सरकार की ओर से किए गए उपायों और लोगों में फैली चिंता के साथ-साथ, कोरोना कर्फ्यू जैसे कदमों ने भी इसमें बडी भूमिका निभाई है। स्थिति नियंत्रण में आती देख सरकार कोरोना कर्फ्यू को खत्म कर हालात सामान्य करने की बात करने लगी है। खुद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने संकेत दिए हैं कि एक जून से कोरोना कर्फ्यू की समाप्ति का दौर शुरू हो सकता है।
दरअसल पिछले एक महीने से अधिक की अवधि में कोरोना कर्फ्यू जैसे उपायों के कारण संक्रमण की चेन थोड़ी टूटी है और यही कारण है कि मरीजों की संख्या कम हुई है। मरीज कम होने का असर स्वास्थ्य सेवाओं पर भी दिखने लगा है, जहां अब ऑक्सीजन और रेमडेसिविर जैसे इंजेक्शन की वैसी मारामारी नहीं है। अस्पतालों में भी बेड खाली होने की खबरें आने लगी हैं, वरना एक समय वो आ गया था जब मरीज को अस्पताल में एक बेड दिलाने के लिए उच्चतम स्तर की सिफारिशें भी नाकाम हो रही थीं।
निश्चित रूप से ये सारी बातें प्रदेश के लिए राहत देने वाली हैं। लेकिन इस राहत को बहुत ही चिंता और सावधानी के साथ ग्रहण किया जाना चाहिए। यह मान लेना बहुत बड़ी गलती होगी कि खतरा टल गया है। दरअसल खतरा टला नहीं बल्कि ताबड़तोड़ किए गए उपायों के कारण थोड़ा कम हो गया है। ऐसे में जब भी कोरोना कर्फ्यू खत्म करने का फैसला हो, वह सारी बातों का आगापीछा सोचकर ही किया जाना चाहिए। ऐसा न हो कि हम जल्दबाजी में या दबाव में आकर कोई कदम उठा लें और कोरोना एक बार फिर प्रभावी हो जाए।
यह शंका इसलिए भी है क्योंकि अभी तक जो राहत वाली सूचनाएं आ रही हैं, उनका ज्यादातर आधार शहरों से आने वाली सूचनाएं हैं। इसके विपरीत ग्रामीण क्षेत्र में स्थितियां अब भी संभली नहीं हैं। वहां हालात बदतर हैं। मीडिया में लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि इलाज की समुचित व्यवस्था न होने और जागरूकता के अभाव के चलते लोग अभी भी कोरोना से निपटने के लिए या तो झाड़फूंक जैसे अंधविश्वासी उपायों का सहारा ले रहे हैं या फिर झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज करवाकर अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
कोरोना कर्फ्यू खोले जाते समय एक पुख्ता प्रबंध इस बात का भी करना होगा कि गांव और शहर के बीच आवाजाही की पूरी निगरानी और संक्रमण को एक जगह से दूसरी जगह फैलने से रोकने के प्रभावी इंतजाम हों। अभी चूंकि कोरोना कर्फ्यू है इसलिए गांवों से शहरों की ओर आवाजाही उतनी नहीं है। कर्फ्यू खुलने के बाद यह आवाजाही बढ़ेगी। ऐसे में संक्रमण का खतरा भी निश्चित रूप से बढ़ेगा। इसलिए जरूरी है कि कर्फ्यू खत्म करने से पहले गांवों में बीमारों की पहचान, उनके परीक्षण और इलाज की समुचित व्यवस्था की जाए।
इस पूरी प्रक्रिया में सबसे बड़ी जरूरत जागरूकता की है। वैसे तो यह समस्या शहरों में भी रही है लेकिन गांवों में इसका असर और भी ज्यादा देखा गय है कि लोग सरदी, जुकाम, खांसी और बुखार जैसे लक्षणों को बहुत सामान्य तौर पर ले रहे हैं। डॉक्टरों के पास भी वे तभी जा रहे हैं जब हालात बिगड़ जाते हैं। ऐसे में एक तो डॉक्टरों के लिए इलाज करना मुश्किल हो जाता है, दूसरे ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में डॉक्टर और चिकित्सा सुविधाएं न होने के कारण मरीज इधर उधर के उपाय करने या झोलाछाप डॉक्टरों की शरण में जाने को मजबूर हो जाते हैं।
कोरोना के प्रति लोगों को जागरूक करके बीमारी के असर को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्र में इस मामले में प्रशासनिक ढांचे से ज्यादा सामाजिक ढांचा असरकारी साबित हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि जागरूकता के लिए सामाजिक, जातिगत और धार्मिक संगठनों को सक्रिय किया जाए। उनकी जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करते हुए उन्हें अलग अलग टास्क दिए जाएं। गांवों में कोरोना के फैलने के पीछे सामाजिक और धार्मिक आयोजनों का बहुत बड़ा हाथ है क्योंकि ऐसे आयोजनों में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं हो पाता। न सोशल डिस्टेंसिंग का और न ही मास्क पहनने जैसी अनिवार्यता का।
ऐसे में पंचायत राज व्यवस्था को धुरी बनाकर गांव गांव में सामाजिक, जातिगत और धार्मिक संगठनों से जुड़े लोगों की गैर राजनीतिक स्तर पर समितियां बनाकर उन्हें यह काम सौंपा जाना चाहिए। यदि ये संगठन तय कर लें कि वे कोरोना प्रोटोकॉल का अपने गांव में पालन करवाकर रहेंगे तो कोरोना के फैलाव पर बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है। जैसे विवाह समारोह के लिए पंडितों की संस्था ही तय कर दे कि जिस आयोजन में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं होगा वहां कोई पंडित विवाह आदि की रस्म निभाने नहीं जाएगा तो इसका बहुत फर्क पड़ेगा।
इसी तरह सामाजिक संगठन मृतकों का अंतिम संस्कार पूरी सावधानी से किए जाने के काम की बेहतर निगरानी कर सकते हैं। बीच में मध्यप्रदेश के भी कुछ इलाकों से शवों को नदी में बहाने की खबरें आई थीं। इस तरह की घटनाओं को सामाजिक जागरूकता और सहयोग के जरिये ही रोका जा सकता है। यदि कोई परिवार अंतिम संस्कार करने की स्थिति में नहीं है, तो समाज इस काम में उसके सहयोग के लिए आगे आए।
ऐसे ही उपाय लोगों को बीमारी के प्रति जागरूक करने से लेकर उनके स्वास्थ्य परीक्षण और इलाज तक में किए जा सकते हैं। इन उपायों में लोगों को झाड़फूंक जैसे अवैज्ञानिक कदमों से लेकर झोलाछाप डॉक्टरों के हानिकारक इलाज से बचाना तक शामिल है। ऐसे मामलों को राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से दूर रखा जाना चाहिए। हाल ही में इंदौर जिले में भाजपा और कांग्रेस के दो नेताओं ने राजनीतिक मतभेद दरकिनार करते हुए, अपने क्षेत्र में मिलकर कोरोना से लड़ने व लोगों की मदद करने की पहल करके मिसाल पेश की है। जब यह काम इंदौर में हो सकता है तो पूरे प्रदेश में क्यों नहीं हो सकता?(मध्यमत)
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