निनौरा (उज्जैन) मई 2016/ सिंहस्थ में वैचारिक महाकुंभ का शुभारंभ करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने देश में समसरता की नई व्याख्या करते हुए कहा कि सिंहस्थ दासता से मुक्ति का संदेश देता है। व्यवस्था समतायुक्त और शोषणमुक्त होनी चाहिए। जब तक सभी को सुख प्राप्त नहीं होता तब तक शाश्वत सुख दिवास्वप्न है। आज विज्ञान जितना प्रगट हो रहा है, उतना अध्यात्म के निकट आ रहा है। इस वैचारिक महाकुंभ की थीम है- ‘रहने का तरीका सिखाएगा वैचारिक महाकुंभ।’

उद्घाटन सत्र में भागवत ने कहा कि भारत की परंपरा के अनुसार सारे जीव सृष्टि की संतानें हैं। मनुष्यता का संस्कार देने वाली सृष्टि है। मध्यप्रदेश में कुंभ की वैचारिक परंपरा को पुनर्जीवित किया जा रहा है। आज दुनियाभर के चिंतक, विचारक एक हो गए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा कहा गया है कि विकास करते समय प्रत्येक देश की प्रकृति का विचार करना चाहिए। ऐसा ही परिवर्तन दुनिया की वैचारिकता में दिखाई दे रहा है। संपूर्ण अस्तित्व की एकता को मानने की ओर दुनिया के निष्पक्ष चिंतकों की प्रवृत्ति हो रही है। विविधता को स्वीकार किया जा रहा है। संघर्ष के बजाय अब समन्वय की ओर जाना पड़ेगा। आज का विज्ञान भी इस परिवर्तन का एक कारण है। सनातन परंपरा में इन सत्यों की बहुत पहले से जानकारी है।

भागवत ने विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय पर जोर देते हुए कहा कि आज के परिप्रेक्ष्य में हमें सनातन मूल्यों के प्रकाश में विज्ञान के साथ जाना होगा। यह करके विश्व की नई रचना कैसी हो, इसका मॉडल अपने देश के जीवन में देना होगा। तत्व ज्ञान और विज्ञान दोनों के आधार चिंतन है। विज्ञान और अध्यात्म दोनों सत्य को जानने के दो तरीके हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि धर्म का मूल्यांकन विज्ञान की कसौटी पर करना चाहिए। आज की समस्याओं का समाधान विज्ञान और अध्यात्म दोनों के समन्वय से करना होगा। सुख तो बढ़े, पर नीति की हानि नहीं हो, इसका ध्यान रखना भी जरूरी है।

भागवत ने कहा कि मुक्ति के लिये ज्ञान, भक्ति और कर्म की त्रिवेणी जरूरी है। धर्म के चार आधार हैं सत्य, करुणा, स्वच्छता और तपस। मानव-कल्याण के बिना सृजनहीन अविष्कार व्यर्थ है। अध्‍यात्‍म और विज्ञान दोनों का सहारा लेकर चिंतन करना होगा। चिंतन के बाद आचरण करना होगा। चिंतन आचरण में आना चाहिए, तभी उसका अर्थ है। जिस विचार को व्यवहार में नहीं उतारा जा सके उसकी मान्यता नहीं होती। नीतियों के आधार पर मानक उदाहरण खड़े करना होगा।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वागत भाषण में विचार महाकुंभ के उद्देश्‍य के बारे में बताया कि कुंभ का संबंध ही विचार-मंथन से है। संतों की विचार प्रक्रिया से राज्य का कल्याण हो, यही उददेश्य है। भारत में सभी तरह के विचारों, विचार-पक्रियाओं और दर्शन का आदर किया गया है। आज सबसे बडी चिंता यह है कि मानव जीवन गुणवत्तापूर्ण कैसे हो। कौन से तरीके और व्यवहार हैं जिनसे मानव जीवन सुखी और अर्थपूर्ण बन सकता है। विज्ञान और आध्यात्मिकता या दोनों के परस्पर मेल से यह संभव है। इसलिये इस पर विचार करना जरूरी है। सिंहस्थ के अवसर पर विचार-मंथन के बाद मानवता के लिए सार्वभौमिक संदेश प्रसारित होगा।

जूना पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने मुख्यमंत्री चौहान को विक्रमादित्य और हर्षवर्धन की परंपरा निभाने वाला मुख्यमंत्री बताते हुए कहा कि वे ऐसे शासक हैं जो भीतर से एक उपासक है। स्वामी अवधेशानंद जी ने कहा कि अगली सदी भारत की सदी है क्योंकि जब पश्चिम की उपभोक्तावादी संस्कृति थक जाएगी तब भारत के आध्यात्मिक नेतृत्व की जरूरत होगी। भारत की भूमि से ही आध्यात्मिक मार्ग निकलेगा जो विश्व का मार्गदर्शन करेगा।

गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पंडया ने कहा कि वैज्ञानिक अध्यात्मवाद को अपनाने का समय गया है। उन्होंने विचार कुंभ को जनता की संसद बताते हुए कहा कि यही संसद समस्याओं का समाधान निकालने का उचित मंच है। संतों के साथ बैठकर संवाद करने और समस्याओं का निराकरण करने की परंपरा को मुख्यमंत्री ने आगे बढ़ाया है। वर्ष 2016 से 2026 तक भारत के उत्कर्ष का समय है।

इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ मोहन भागवत के साथ जूना अखाड़े के प्रमुख स्वामी अवधेशानंद गिरी, गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पंड्या, मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और राज्यसभा सदस्य अनिल माधव दवे ने दीप प्रज्जवलित कर किया।  आयोजन समिति की कमान अनिल दवे संभाल रहे हैं।

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