अजय बोकिल
अतिउत्साह किसी बड़ी कामयाबी को भी बदरंग कैसे कर सकता है, इसे समझना हो तो कोरोना वैक्सीनेशन में भारत के 100 करोड़ डोज के रिकॉर्ड पर जल्दबाजी भरी प्रतिक्रियाओं को देखें। अफसोस कि इसमें वो पत्रकार भी शामिल हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि किसी भी घटनाक्रम को वो विवेकपूर्ण ढंग से देखते और प्रतिक्रिया देते हैं। 140 करोड़ की आबादी वाले और कोरोना की दूसरी लहर में लाखों लोगों को गंवाने वाले भारत देश में अक्टूबर के तीसरे सप्ताह में यदि 100 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन लगाई जा चुकी है तो यह अपने आप में आश्वस्त करने, सरकार के चौतरफा प्रयास, सरकारी मशीनरी की संकल्पबद्धता और जनता के सकारात्मक प्रतिसाद का परिणाम है। खासकर तब कि जब एक वर्ग वैक्सीन की प्रामाणिकता को लेकर ही संदेह का गुबार उठाने में लगा था। उसके बाद वैक्सीन उत्पादन, वितरण और आपूर्ति को लेकर भी सवाल उठे।
शुरुआती गफलत, अफरातफरी और असमंजस के बाद सरकार भी संभली और लोगों ने भी वैक्सीन पर भरोसा करना शुरू किया। यही कारण है कि इस साल 16 जनवरी से देश भर में शुरू हुए कोरोना वैक्सीनेशन अभियान ने 10 माह में अगर 100 करोड़ वयस्कों को टीकाकृत कर दिया है तो यह भी कोई मामूली बात नहीं है। खासकर उस भारत जैसे देश में, जिसकी मेडिकल सुविधाओं पर सवाल उठाए जाते रहे हैं, जहां लोग कम शिक्षित और हों और वैक्सीन को लेकर कम जाग्रति हो।
देश में वैक्सीनेशन के जो आधिकारिक आंकड़े आ रहे थे, उनसे साफ संकेत मिल रहे थे कि हम जल्द ही 100 करोड़ के आंकड़े को छूने जा रहे हैं। हालांकि कुछ लोग इन आंकड़ों की प्रामाणिकता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। हो सकता है उसमें कुछ कमीबेशी हो, लेकिन जिस कोविन ऐप से पूरे देश में वैक्सीनेशन का डाटा एकत्रित होता है, उसमें गड़बड़ी की गुंजाइश कम है। लिहाजा मोटे तौर पर ये आंकड़े सही माने जाने चाहिए।
यह अपेक्षित ही था कि प्रधानमंत्री इस उपलब्धि पर देश की पीठ थपथपाएं। इस मौके पर अपने विशेष संबोधन में उन्होंने कहा कि भारत का टीकाकरण अभियान ‘विज्ञान-जनित, विज्ञान-संचालित और विज्ञान-आधारित’ है। इसमें कोई ‘वीआईपी-संस्कृति’ नहीं है। साथ ही उन्होंने लोगों को कोरोना को लेकर अभी भी सावधानी बरतते रहने की हिदायत दी।
इसमें दो राय नहीं कि कोरोना के तमाम त्रास और त्रासदियों के बावजूद भारत एक ‘वैक्सीन पावर’ के रूप में उभरा है। यानी हम महामारियों की वैक्सीन बनाने में न केवल सक्षम हैं बल्कि दुनिया को भी इसे मुहैया करा सकते हैं, करा रहे हैं। यह बात अलग है कि कोरोना के पीक समय में वैक्सीन की उपलब्धता वैसी नहीं हुई, जैसी की होनी चाहिए थी। विपक्ष ने इसके लिए सरकार की ‘वैक्सीन डिप्लोमेसी’ को जिम्मेदार माना। लेकिन बाद में हालात सुधरे और अब देश के किसी भी हिस्से में बड़ी आसानी से कोरोना वैक्सीन कोई भी लगवा सकता है।
यहां चर्चा का मुद्दा इस बड़ी उपलब्धि को अकेले भारत के खाते में लिखवाने की जल्दबाजी का है। हमेशा की तरह यह अति उत्साह उस सोशल मीडिया में दिखा, जो अंडा सेने से पहले ही चूजा निकालने में भरोसा रखता है। एक बड़े टीवी न्यूज चैनल की पत्रकार ने ट्विट किया ‘वैक्सीनेशन रिकॉर्ड तोड़, डोज 100 करोड़! 100 करोड़ डोज देने वाला पहला देश बना भारत।‘ ऐसा लिख कर वो क्या साधना और दर्शाना चाहती थी? जल्दबाजी या अज्ञान? एक भाजपा विधायक ने भी ट्वीट किया ‘अबकी बार 100 करोड़ पार, कोरोना महामारी के खिलाफ देश की शानदार उपलब्धि, देश में टीकाकरण का आंकड़ा 100 करोड़ के पार हुआ।‘
जबकि हकीकत ये है कि टीकाकृत कुल 100 करोड़ लोगों में 71.32 करोड़ को कोरोना वैक्सीन का पहला और 29 करोड़ से ज्यादा लोगों को दूसरा डोज लगा है। अगर देश की वयस्क आबादी 1 अरब 10 करोड़ भी मानें तो इतनी जनसंख्या को दोनों डोज लगने की मंजिल अभी काफी दूर है। और जब तक इतने लोगों को दोनो डोज नहीं लग जाते तब तक वैक्सीन लगाने का ‘जश्न’ मनाने का कोई खास मतलब नहीं है। क्योंकि वैक्सीन लगाने की संख्या महत्वपूर्ण नहीं है, कोरोना से लोगों की सुरक्षा ज्यादा अहम है।
जहां तक कोरोना वैक्सीनेशन में दुनिया में नंबर होने की बात है तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं दुनिया भर को कोरोना का अभिशाप ‘निर्यात’ करने वाला चीन वैक्सीनेशन में भी नंबर वन है। आकंड़ों के मुताबिक वहां 16 सितंबर 2021 को ही 100 करोड़ से ज्यादा लोगों को टीका लग चुका है। चीन की आबादी 140 करोड़ से कुछ ज्यादा है। लेकिन वहां अब तक 223 करोड़ वैक्सीन डोज लगाए जा चुके हैं। इसका अर्थ यह है कि चीन की 71 फीसदी आबादी पूर्ण टीकाकृत हो चुकी है। भारत के संदर्भ में देखें तो जब 110 करोड़ लोगों को दोनो डोज लग चुके होंगे तब हम दुनिया में पहले पांच देशो में हो सकते हैं। अभी तक केवल 29 करोड़ लोगों को ही दूसरा डोज लग पाया है। जाहिर है कि अभी वयस्कों को दूसरा डोज लगने में काफी समय लगेगा।
चूंकि, हमारे देश में किसी भी मुद्दे पर राजनीति हो सकती है, इसलिए कोरोना टीकाकरण पर भी हो रही है। प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद कांग्रेस ने सवाल खड़ा किया कि जितने टीके लगे, वो तो ठीक, लेकिन जो लोग टीकों के अभाव में जान से हाथ धो बैठे, उनका क्या? आशय यह कि कोरोना से देश में करीब साढ़े 4 लाख लोगों की मौतों के बाद जश्न किस बात का? हालांकि इस ‘राष्ट्रीय उपलब्धि’ पर भी कांग्रेस में एका नहीं दिखा। पार्टी के सांसद शशि थरूर ने इस उपलब्धि के लिए मोदी सरकार को श्रेय दिया। ट्वीट किया- ‘’ये सभी भारतीयों के लिए गर्व का विषय है।‘’
थरूर ने यह भी कहा कि दूसरी कोविड लहर के गंभीर कुप्रबंधन और टीकाकरण की विफलता के बाद सरकार ने अब आंशिक रूप से खुद को सुधारा है। सरकार अपनी पिछली विफलताओं के लिए अब भी जवाबदेह है। जबकि कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इसे ‘सरकार के कुप्रबंधन का शिकार हुए लोगों का अपमान’ करार दिया। खेड़ा ने कहा कि ‘’टीकाकरण का श्रेय सरकार को देना उन लाखों परिवारों का अपमान है, जो व्यापक कोविड कुप्रबंधन के बाद के प्रभावों और दुष्प्रभावों से पीड़ित हैं। श्रेय मांगने से पहले पीएम को उन परिवारों से माफी मांगनी चाहिए।‘’ हकीकत यह है कि कोरोना महामारी के अनुभवों से इस देश ने बहुत सीखा है। एक दूसरे के नुक्स निकालना बहुत आसान है। लेकिन महामारियां किसी राजनीतिक एजेंडे को लेकर नहीं चलतीं। समूची मानवता उनके निशाने पर होती है और मानव की संकल्पशक्ति ही महामारी का तोड़ खोजने में सक्षम होती है।
सियासी पार्टियों के क्षुद्र राजनीतिक एजेंडो को अलग रखें तो 100 करोड़ लोगों को टीके लगने का पहला श्रेय तो उस जनता जनार्दन को जाता है, जिसने कोरोना काल में सबसे ज्यादा कष्ट झेले। अस्पताल में बेड के लिए, दवाओं के लिए, इंजेक्शन के लिए, ऑक्सीजन के लिए और यहां तक कि मरने के बाद अंतिम संस्कार तक के लिए। लाखों लोगों ने इस अफरातफरी के बीच अपनों को खोया। इतना सहकर भी वो वैक्सीन के लिए लाइन में लगे। वैक्सीन को लेकर जारी दुष्प्रचार के बीच दूसरों को वैक्सीन लगवाने के लिए प्रेरित किया।
श्रेय उन तमाम डॉक्टरों, मेडिकल स्टाफ और फ्रंट लाइन वॉरियर्स को भी जाता है, जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर भी दूसरों की जान बचाने की जी तोड़ कोशिश की। यह जानते हुए भी कि उन्हीं मेडिकल डॉक्टरों के चिकित्सकीय ज्ञान और समर्पण पर सवालिया निशान लगाने की ओछी हरकत भी कोरोना काल में ही हुई। श्रेय उन वैज्ञानिकों और दवा उद्योग में लगे लोगों को है, जिन्होंने दिन रात मेहनत कर कोरोना वैक्सीन तैयार की, उसे देश दुनिया को मुहैया कराया। श्रेय उन सभी सरकारों को है, जो आपस में राजनीतिक होली खेलने के साथ साथ कोरोना पर काबू पाने के लिए हर संभव कोशिशें कर रही थीं।
बेशक, बड़ी उपलब्धि पर हमे गर्व करने का हक है। लेकिन कामयाबी को जरूरत से ज्यादा बढ़ा चढ़ाकर बताने की हिमाकत करना भी सही नहीं है। क्योंकि यदि हमने उपलब्धि हासिल की है तो पूरी दुनिया उसे देख और सराह रही है। साथ में यह भी तौल रही है कि हम इस बड़ी कामयाबी को विवेक के फ्रेम में देखना कितना जानते हैं।(मध्यमत)
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