राकेश अचल
मध्यप्रदेश में दलबदल के बाद नयी सरकार के गठन और फिर उपचुनावों में भाजपा की विजय के बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया राजनीति के केंद्र में हैं। कांग्रेस ने प्रदेश में भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गयी माफिया विरोधी मुहिम के चलते सिंधिया को ही निशाने पर लिया है। ग्वालियर में सिंधिया के पुतले जलाये जा रहे हैं जो इस सदी के सियासी इतिहास का नया अध्याय है।
प्रदेश में माफिया विरोधी मुहिम की शुरुआत इंदौर में कम्प्यूटर बाबा के आश्रम और उनके समर्थक की सम्पत्तियों को तोड़ने के साथ हुई। इस मुहिम में कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद भी लपेटे में आ चुके हैं और आजकल फरार हैं। सिंधिया के गृह नगर ग्वालियर में यह मुहिम कांग्रेस नेता अशोक सिंह के एक रिश्तेदार के मैरिज गार्डन की तोड़फोड़ से शुरू हुई है। प्रशासन ने सिंधिया ट्रस्ट के एक मंदिर के पुजारी को बेदखल कर इस मुहिम को और विवादास्पद बना दिया है। इसी तोड़फोड़ के विरोध में ग्वालियर में कांग्रेस ज्योतिरादित्य सिंधिया के पुतले जला रही है।
आपको बता दें कि सिंधिया जब कांग्रेस के दिग्गज थे तब भाजपा के पूर्व सांसद प्रभात झा और पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश का सबसे बड़ा भूमाफिया कहा करते थे। सिंधिया के भाजपा में शामिल होते ही भाजपा नेताओं के मुंह पर तो अपने आप ताले लग गए लेकिन अब यही आरोप कांग्रेस के नेता लगाने लगे हैं। यानि आरोप अपनी जगह हैं केवल जुबानें बदलीं हैं। सिंधिया पर आरोप लगाने वालों के पास आधार हैं या नहीं ये भगवान जानें लेकिन हकीकत ये है कि आरोप ज़िंदा हैं और शायद आगे भी मरेंगे नहीं।
दुनिया को पता है कि आजादी से पहले ग्वालियर रियासत की तमाम सम्पत्ति सिंधिया शासन की थी, लेकिन आजादी के बाद जो सम्पत्ति मध्यप्रदेश शासन की हो गयी थी, उसे भी सिंधिया परिवार की ओर से अपना बताकर वापस लेने के लिए कानूनी जंग लड़ी जा रही है। इस जंग में कहीं सिंधिया खुद हैं तो कहीं सिंधिया परिवार के तमाम ट्रस्ट हैं। सिंधिया परिवार के पास चल, अचल सम्पत्ति इफरात में है, इसे वे जकात की तरह बाँट दें ये मुमकिन नहीं। लेकिन वे अपने पूर्वजों की तरह अपने ही शहर में अपनी अनुपयोगी सम्पत्ति पर मैरिज हाउस बनाने के बजाय उसे अस्पताल, स्कूल और सार्वजनिक इस्तेमाल के उद्यान बनाने में इस्तेमाल करते तो शायद ज्यादा उचित होता।
सिंधिया के पूर्वजों ने ग्वालियर को आधुनिक बनाने के लिए आज से नहीं बल्कि 19 वीं सदी से बहुत से काम किये। सर्वधर्म समभाव के लिए भी और सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए भी। राजमाता विजयाराजे सिंधिया के समय तक सिंधिया परिवार की सम्पत्तियाँ लोक कल्याण के लिए इस्तेमाल हेतु दी जाती रहीं, लेकिन बाद में ये सिलसिला रुक गया, रुक ही नहीं गया, बल्कि सिंधिया की भूली-बिसरी सम्पत्तियों को दोबारा हासिल करने का अभियान शुरू हो गया। ये अभियान नैतिक है या अनैतिक इस पर बहस का कोई अर्थ नहीं है, लेकिन इसी अभियान ने सिंधिया की छवि पर भूमाफिया होने का आरोप चस्पा कर दिया।
दस्तावेजी साक्ष्य हैं कि सिंधिया रियासत की सीमाएं भले ग्वालियर से मालवा अंचल तक रही हों लेकिन उनकी परिसम्पत्तियां देश के तमाम हिस्सों में थीं और हैं। सिंधिया परिवार के सदस्यों ने जब भी मौक़ा मिला देश के तमाम धर्मस्थलों पर मंदिर, घाट, धर्मशालाएं बनवाईं और अनेक पर्यटन स्थलों पर अपने निजी ठिकाने बनवाये, जहां आज कोई फटकता तक नहीं है। वे वीरान पड़े हैं या उनकी देखभाल के लिए कारिंदे रखे गए हैं।
मुझे कोलकाता, बनारस, उत्तराखंड तक में सिंधिया की सम्पत्तियाँ अवशेष के रूप में मिलीं। जाहिर है कि सिंधिया के पास समेटने के लिए अभी भी बहुत है लेकिन अब राजपथ बंद हो चुके हैं, खुद सिंधिया लोकपथ पर खड़े हैं। ऐसे में उन्हें सार्वजनिक इस्तेमाल में आ रहीं रियासतकालीन सम्पत्तियाँ जनता यानि सरकार के हवाले कर देना चाहिए। इससे उनका वैभव कम होने के बजाय बढ़ेगा और उनके पुतले भी नहीं फूंके जाएंगे।
एक लेखक के रूप में मेरे लिए सलाह देना आसान काम है लेकिन परिसम्पत्तियों का त्याग करना सिंधिया के लिए आसान काम नहीं है। इसके लिए दरियादिली चाहिए। आज के सिंधिया मेरे हिसाब से दरियादिल हैं लेकिन उन्हें इसके प्रदर्शन से रोकने वालों की भी कोई कमी नहीं है। ऐसा करने वालों के अपने स्वार्थ हैं। मेरा मानना है कि सिंधिया भू-माफिया न थे और न हो सकते हैं, हाँ वे अपने पूर्वजों की सम्पत्तियों को बचाने के मामले में अपने पिता के मुकाबले ज्यादा सतर्क हैं। ये सतर्कता ही उनकी दुश्मन बन गयी है। वे चाहे अदालत से जीतें या दस्तावेजों से, कोई ये मानने को तैयार ही नहीं होता कि उन्होंने अपनी सम्पत्तियों पर दोबारा हक हासिल करने के लिए अपने प्रभाव का बेजा इस्तेमाल नहीं किया।
सिंधिया का पुतला जलाना या उन्हें भूमाफिया बताना राजनीतिक क्रियाकर्म का हिस्सा है लेकिन मुझे पता है कि आज भी सिंधिया रियासत की सम्पत्तियों पर असंख्य लोगों के बेजा कब्जे हैं या वे उन पर मामूली भाड़े पर रह रहे हैं, और शायद मामूली भाड़ा भी अदालत में जमा कर रहे हैं। सिंधिया शासनकाल की सम्पत्तियों से शायद इतनी आय भी नहीं हो रही है कि रियासतकालीन स्मारकों को (जो सिंधिया के स्वत्वाधिकार में हैं) ठीक से संधारित किया जा सके। शिवपुरी की छतरियों के अलावा ग्वालियर के अनेक स्थलों की दुर्दशा इसका उदाहरण हैं।
आजादी के बाद बने संविधान और दीगर कानूनों ने सिंधिया को जो अधिकार दिए हैं उनका इस्तेमाल करने से कोई उन्हें रोक नहीं सकता, हाँ जिसे उनके पुतले जलाना हैं जला सकता है, जिसे आरोप लगना है, लगा सकता है। सिंधिया खुद पहल कर इन सब पर रोक लगा सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें एक बार फिर ‘दीनदयाल’ अवतार लेना होगा। जो सम्पत्तियाँ उनके इस्तेमाल की नहीं हैं उन्हें वे अपनी ओर से सरकार को, स्थानीय निकायों को या अन्य जिम्मेदार न्यासों को देकर ये सब कर सकते हैं।
ग्वालियर किले पर रोप-वे बनवाकर इसकी पहल की जा सकती है, अन्यथा उन्हें लेकर राजनीति तो होती ही रहेगी, फिर चाहे वे इस दल में रहें या उस दल में। ध्यान रखना चाहिए कि दाग कैसे भी हों आसानी से धुलते नहीं हैं। एक दाग तो बीते 163 साल से पीछ कर ही रहा है।