सावन आयो रे…

राकेश अचल

सावधान, खबरदार, होशियार सावन आ रहा है। सावन के आने में अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं, लेकिन मै आपका शुभचिंतक होने के नाते आपको एक दिन पहले से आगाह कर रहा हूँ कि- सावन आ रहा है। हमारे यहां तो अब तक आषाढ़ भी नहीं आया, एक बूँद पानी की नहीं बरसी, लेकिन आपके यहां सावन आ रहा है इसलिए सावधान रहिये, होशियार रहिये, खबरदार रहिये ।

सावन का आना विशेष घटना होती है। सावन आता है तो मन हिलोरें लेने लगता है। बिना झूले के भी झूलने लगता है। सावन आते ही पेड़ों पर झूले डाल दिए जाते हैं, जिनके यहां पेड़ नहीं होते वे लोहे के पाइपों पर झूले डाल लेते हैं। अनेक सौभग्यशाली लोगों के यहां परमानेंट झूले होते हैं। झूले भी नाना प्रकार के होते हैं। उन्हें डालने की विधि भी नाना प्रकार की होती है। झूला झूलना और झूला झुलाना अपने आपमें एक ललित कला है। आजकल देश में झूला सबसे ज्यादा चर्चा का विषय है। हमारे पंत प्रधान ने पिछले साल चीन के पंत प्रधान को अहमदाबाद में झूला झुलाया था, उस झूले की धमक आज तक है।

झूला झुलाना अतिथि सत्कार का एक हिस्सा है, लेकिन विपक्षी हैं कि इसे मानने को तैयार ही नहीं और पीछे पड़े हैं पंतप्रधान के कि शी जिन पिंग को झूला क्यों झुलाया? वो उसके बदले में गलवान घाटी में हमारे जवानों की शहादत ले रहा है। अब इन मरदूदों को कौन समझाये कि झूला झुलाने का गलवान घाटी की वारदात से क्या रिश्ता है? कांग्रेस की सरकार भी तो चीन के साथ गलबहियां डाल कर रखती थी! बहरहाल झूला प्रधान जी के गले पड़ गया है।

सावन के झूले नव विवाहिताओं के लिए विशेष हुलस भरे होते हैं। हमें अपना बचपन याद है। उस समय बखरी के बाहर लगे नीम और बरगद के पुराने पेड़ों पर झूले डाले जाते थे और ऐसी मिचकी ली जाती थी कि झूलने वाला पड़ोस की अटरिया तक देख आता था, हालांकि ऐसा करते हुए प्राण कंठगत हो जाते थे। छोटी सी काठ की पटली के झूले का मुकाबला रंगीन कलात्मक पटलियाँ नहीं कर सकतीं। कवियों ने तो सावन का भरपूर इस्तेमाल कविताएं लिखने में किया। ‘जसोदा हरि पालना झुलावें’ किसे याद नहीं है? हमने तो हर तरह के झूले झूले हैं, इसलिए आपको झूलों के बारे में अधिकारपूर्वक बता रहे हैं।

सावन में झूलों से कोई ख़ास खतरा नहीं होता। सावन में सबसे ज्यादा खतरा होता है आँखों को। कहते हैं कि इस महीने में जिनकी आँखों की रोशनी जाती है वो हमेशा के लिए हरे रंग को नहीं भूल पाता। सावन में आँखों का संक्रमण फैलता ही है लेकिन वो कोरोना जैसा नहीं होता। आँखों का सावनिया संक्रमण केवल गधे किस्म के लोगों की आँखों को परेशान करता है। इस महीने में नेत्रज्योति गंवाने वाले बाद में अंधभक्त कहलाते हैं। उन्हें आजादी होती है कि वो अपनी पसंद के इष्ट को चुनें। कोई सूरदास हो जाता है तो कोई किसी पार्टी का प्रवक्ता।

सावन में आँखों की रोशनी खोने वाले सिर्फ गधे ही होते हों ऐसी बात नहीं है। कांग्रेस के एक नेता होते थे डीपीटी (देवीप्रसाद त्रिपाठी), क्या धुरंधर  वक्ता थे। हमारे अपने सूबे के यमुनाप्रसाद शास्त्री को यदि किसी ने बोलते सुना हो तो जानता होगा कि उन्हें बोलता देख आँखों वाला भी शर्मा जाये। हमारे रविंद्र जैन साहब को कौन भूल सकता है? लेकिन ये वे लोग हैं जो अंधभक्तों की श्रेणी में नहीं आते। ये स्वतंत्र और विनम्र लोग हैं।

सावन में अंधे होने वाले सियासी लोग बड़े कट्टर और दुष्ट किस्म के होते हैं। उनके आगे टिककर खड़े रहना आसान नहीं होता। उनके लिए उनके इष्ट के सौ खून माफ़ होते हैं। इसमें उनका भी क्या दोष? उन्हें तो हरा ही हरा दिखाई देता है! वे सड़कों पर पलायन करती भीड़ थोड़े ही देख सकते हैं, गलवान के शहीदों के दर्शन थोड़े ही कर सकते हैं। वे सिर्फ कुतर्क कर सकते हैं, सो वे करते रहते हैं।

बहरहाल मेरा नैतिक दायित्व था कि अपने लोगों को सावन के खतरों से आगाह करा दूँ, सो मैंने करा दिया। दरअसल अब नैतिकता का सियासत से तो कोई लेना देना है नहीं इसलिए बेचारी हम जैसे कलमघसीटों के पास पड़ी अपने दिन गुजार रही है। हम भी ठहरे फकीर आदमी, सो नैतिकता को अपने कन्धों पर ढोए जा रहे हैं। सावन में अंधे होने से बचने का एक ही उपाय है कि आँखों को उतना ही खोलिये जितनी कि जरूरत है। आँखों को सुबह-शाम ताजा यानि टटके पानी से धो लीजिये, अंजन लगाइये, सुरमा लगाइये आपके पास जो आंजने के लिए हो उसे इस्तेमाल कीजिये और खूब पढ़िए, समझिये ताकि हकीकत और अफ़साने का फर्क आपकी समझ में आ जाये।

वैसे किसी के लिए सावन लाखों का होता है और नौकरी दो टके की। किसी के लिए सावन पानी में आग लगाने वाला होता है। किसी की आँखों से रिमझिम सावन बरसता है, तो  किसीके लिए सावन का महीना और पवन का शोर मन में मोर नचाने वला होता है। किसी के लिए सावन प्रतीक्षा है तो किसी के लिए परीक्षा। यानि सावन एक है लेकिन उसका प्रभाव अनेक है।

सावन में अंधे होने से बचना चाहते हों तो शिव भक्ति करें, भगवान ने इस बार आपको भक्ति के लिए पांच सोमवार दिए हैं। लेकिन इस शिव भक्ति के लिए आप अपने ही घर में शिव अभिषेक करें। मंदिरों की भीड़ से बचें, शिव चालीसा और शिवाष्टक का पाठ करें, व्रत करें, कोरोनाकाल में बेरोजगार हुए लोगों की मदद करें, शिवजी को दूध पिलाने के बजाय उनके नाम से गरीब बच्चों को दूध पिलायें।

शिव पुराण के अनुसार सावन का महीना शंकर जी को अति प्रिय है और सोमवार का दिन शिवजी का होता है। भगवान शिव को पाने के लिए देवी पार्वती ने सावन माह में ही कठोर तप किया था। भगवान शिव दांपत्य जीवन के साथ संतान सुख प्रदान करने वाले माने गए हैं। उनकी पूजा से सुख, शांति, धन-धन्य और अच्छा स्वास्थ्य सब कुछ प्राप्त होता है।
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