बेटे की नाकामी का जश्न मनाने वाले इस बाप को सलाम!

अजय बोकिल

न वो कोई साइकियाट्रिस्ट है, न काउंसलर है, न ही उसने समाज सुधार का कोई ठेका लिया है। यहां तक कि उसने परीक्षा में असफल बच्चों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याएं रोकने के लिए गठित मप्र विधानसभा की कमेटी की रिपोर्ट भी शायद ही पढ़ी हो, लेकिन अपनी सहज बुद्धि से इस बाप ने बेटे में जीवटता की आस जगाने का जो अभिनव तरीका खोजा, इसके लिए उसे सौ-सौ सलाम।

मामला मध्य प्रदेश के सागर जिले के शिवाजी वार्ड के एक मोहल्ले का है। मप्र माध्यमिक शिक्षा मंडल के 10 वीं बोर्ड की परीक्षा का रिजल्ट आने के बाद ठेकेदार सुरेन्द्र कुमार व्यास ने पूरे मोहल्ले में मिठाई बंटवाई। शामियाना लगवाया और पटाखों से पूरा इलाका गुंजा दिया। साथ में अपने बेटे आशू व्यास का जुलूस भी निकाला। लोग समझे कि बेटे ने परीक्षा में बड़ा तीर मारा है। असल में हुआ उलटा था। आशू 6 में से 4 विषयों में फेल हो गया था।

अमूमन परीक्षा में नाकामी को मातम की घड़ी मानने वाले तमाम लोग इस जश्न से हैरान थे। कुछ ने इसका मजाक भी बनाया। लेकिन आशू के पिता अपनी जगह अडिग थे। उन्होंने इस जश्न का औचित्य बताते हुए कहा कि वे इसके माध्यम से समाज को संदेश देना चाहते हैं कि अगर हम अपने बच्चे की कामयाबी में उसके साथ हैं तो उसकी असफलता में भी उसका साथ देना चाहिए और आगे के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। आज के समय में हर मां-बाप को अपने बच्चों के साथ इसी तरह का व्यवहार करना चाहिए ताकि बच्चे प्रेशर में आकर कोई आत्मघाती कदम ना उठाएं।

आशू के पिता की यह दूरदर्शिता और समझदारी सचमुच असाधारण है। खासकर तब कि जब मप्र में 10 वीं और 11 वीं बोर्ड के नतीजे आने के 24 घंटों में हताश 12 विद्यार्थियों ने अलग-अलग जगह मौत को गले लगा लिया हो। सतना जिले में तो दो सगे भाई-बहनों ने जिंदगी के सफर को ठीक से शुरू होने के पहले ही विराम दे दिया। कुछ बच्चों ने इसलिए आत्महत्या की क्योंकि उन्हें अपेक्षित 90 फीसदी से कम अंक मिले थे।

ऐसे ही भोपाल के एक छात्र ने खुद को जहर का इंजेक्शन लगा ‍लिया। कुछ बच्चे चलती ट्रेन के आगे कूद गए तो एक ने पांचवी मंजिल से छलांग लगा दी। अखबारों में छपी ये खबरें तमाम बच्चों के मां-बाप को भीतर तक कंपा देती हैं। बच्चों के रूप में वो जिस सपने को फूल-सा सहेजने की कोशिश करते हैं, वही मात्र परीक्षा में फेल होने की वजह हमेशा-हमेशा के लिए उनसे दूर चला जाता है। बिना यह सोचे कि स्वयं की मुक्ति (?) के लिए वो अपने जन्मदाताओं को जीवन भर का दुख देकर जा रहा है।

सवाल यह है कि बच्चे आखिर इतना अतिवादी कदम क्यों उठाते हैं? क्या जन्म लेने के मुकाबले मरना इतना आसान हो गया है? क्या परीक्षा में पास या फेल होना जीवन की परीक्षा में पास या फेल होना है? आजकल बच्चे इतनी जल्दी डिप्रेशन में क्यों आ जाते हैं? इसे रोकने के लिए मां बाप क्या करें? उनमें संघर्ष का माद्दा कैसे पैदा करें? ऐसे कई सवाल हैं, जो आज तकरीबन हर अभिभावक और पूरे समाज को झिंझोड़े हुए हैं।

परीक्षा में पास और फेल तो बच्चे पहले भी होते थे। फेल होने का दुख भी होता था। लेकिन इस बाजी को जीवन की अंतिम बाजी मान लेने की प्रवृत्ति अपवाद ही थी। आज इंटरनेट ने हर ज्ञान की तरह खुदकुशी के नुस्खे भी मुफ्त में बांट दिए हैं। यह जानते हुए कि मरने के लिए भी दुस्साहस करना होता है, बच्चे बिना कुछ सोचे-समझे अपनी जान दे रहे हैं।

बच्चों के इस व्यवहार से समाज के साथ सरकार भी चिंतित रही है। मप्र में तो शिवराज सरकार ने परीक्षा में असफल बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति रोकने के लिए बाकायदा विधायकों की एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी ने जो रिपोर्ट दी, उसमें माता-पिता से अपेक्षा की गई थी कि वे परीक्षा में नाकाम बच्चों में हीन भावना पैदा न होने दें। वे अपने बच्चों की तुलना दूसरों के बच्चों से न करें। अपने बच्चों के मानस को जानने समझने की कोशिश करें।

आशू व्यास के ‍पिता ने यह रिपोर्ट पढ़ी या नहीं, पता नहीं। एक समझदार पिता होने के लिए रिपोर्ट पढ़ना जरूरी भी नहीं है। उन्होंने अनुत्तीर्ण बेटे में अवसाद पैदा न होने देने के लिए वो तरीका अपनाया, जो अनुकरणीय है। सुरेन्द्र व्यास ने बताया, ‘इस पार्टी का मकसद अपने बेटे को प्रोत्साहित करना है। परीक्षा में फेल बच्चे अक्सर डिप्रेशन में चले जाते हैं और कई बार अपनी जिंदगी समाप्त करने तक का कदम उठा लेते हैं। मैं ऐसे बच्चों को बताना चाहता हूं कि बोर्ड की परीक्षा ही जिंदगी की अंतिम परीक्षा नहीं है। जिंदगी में आगे बहुत अवसर आते हैं। मेरा बेटा अगर फेल हुआ है तो वह अगले साल फिर से परीक्षा दे सकता है।’ इस पर बेटे आशू ने भी कहा कि मैं वादा करता हूं कि अगले साल ज्यादा मेहनत करके बेहतर नंबर लेकर आऊंगा।

यही वो जज्बा है, जो इंसान को इंसान बनने की प्रेरणा देता है। हर चुनौती से जूझने और उस पर विजय पाने का संकल्प पैदा करता है। मराठी के जाने-माने पार्श्व गायक स्व.अरुण दाते के संगीत पारखी पिता ने इंजीनियरिंग के पहले साल में बेटे के फेल होने का मातम मनाने के बजाए उसके द्वारा नया राग सीखने पर पूरे मोहल्ले में मिठाई बंटवाई थी, वह किस्सा अब किंवदंती बन चुका है।

ऐसा वही बाप कर सकता है, जिसका विश्वास जीवन की मशाल को जलाए रखने में है। चाहते तो सुरेन्द्र व्यास भी बेटे को डांट फटकार सकते थे। लेकिन उन्होंने नाकामयाबी का जश्न मनाकर बेटे को जो सकारात्मक संदेश दिया है, वो शायद बीसियों काउंसलिंग, कोरे उपदेश और नसीहतें भी नहीं कर सकतीं।

(सुबह सवेरे से साभार)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here