राकेश अचल
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मेरी लगभग सभी मुद्दों पर असहमति रहती है, इसके अलग कारण हैं लेकिन मैं योगी के इस फैसले से गदगद हूँ कि अब पूरे उत्तर प्रदेश में सड़क किनारे से सभी पूजा स्थलों को हटाया जाएगा। हिन्दुस्तान में केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं अपितु सड़क किनारे के पूजा स्थल एक राष्ट्रीय समस्या हैं। भगवान का लाख-लाख शुक्र कि उन्होंने योगी आदित्यनाथ को ये सद्बुद्धि दी।
आज की तमाम सुर्ख़ियों में मुझे यही सबसे अच्छी खबर लगी। खबर के मुताबिक योगी सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए सड़क के किनारे अतिक्रमण कर बने सभी धार्मिक स्थालों को हटाने का निर्देश दिया है। उत्तरप्रदेश के गृह विभाग ने इस संबंध में सभी कमिश्नर और जिलाधिकारियों को आदेश जारी किया है। राज्य के अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने सड़क किनारे बने सभी धार्मिक स्थलों को हटाने के निर्देश देते हुए पत्र में लिखा है कि धार्मिक स्थलों के नाम पर किए गए अतिक्रमण हटाए जाएं। इस मामले पर सभी जिलाधिकारियों को 14 मार्च तक रिपोर्ट भेजनी होगी, जिसमें उन्हें ये बताना होगा कि आदेश के बाद कितने सार्वजनिक स्थलों को धार्मिक अतिक्रमण से खाली करवाया गया।
अगर आपने पीके फिल्म देखी हो तो आप सड़क किनारे बनाये जाने वाले पूजा स्थलों की हकीकत से खूब वाकिफ होंगे। हमारे यहां किसी भी शिलाखंड पर सिन्दूर पोतिये या हरी चादर बिछाकर एक माला डाल लीजिये पूजा स्थल तैयार हो सकता है। केवल गुरुद्वारों और गिरजाघरों को अपवाद माना जा सकता है। हमारे योगी जी के उत्तर प्रदेश में ही एक बाबा जी होते थे जय गुरुदेव उन्होंने तो मथुरा के पास अपना पूरा का पूरा आश्रम ही सरकारी जमीन पर तान दिया था। सड़क किनारे बनाये जाने वाले पूजाघर सड़क दुर्घटनाओं में सबसे बड़ा योगदान देते आये हैं। मैंने अनेक राजमार्गों पर यात्रा के समय देखा है की सड़क किनारे बनी दरगाहों और मंदिरों पर वाहन चालक बाकायदा वाहन रोककर प्रसाद और मालाएं चढ़ाते हैं। जहाँ वाहन रोकना सम्भव नहीं होता वहां चढ़ावा हवा में उछाल दिया जाता है।
सड़क किनारे होने वाले हादसों के मामले में हिन्दुस्तान की प्रतिष्ठा बहुत अच्छी नहीं है। हमारे यहां सड़कें सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं और मंदिर, मस्जिदें भी इसकी एक वजह हैं। हमारे अपने शहर ग्वालियर में एक प्रख्यात मंदिर सड़क के बीचोंबीच बना है और इस मंदिर की आड़ में टेलीफोन एक्सचेंज और महारानी लक्ष्मीबाई महाविद्यालय की जमीन पर भी अतिक्रमण कर लिया गया, लेकिन मजाल की कोई इस बारे में दृढ़तापूर्वक फैसला कर पाए। अकेले ग्वालियर जिले में 700 से ज्यादा छोटे बड़े मंदिर हैं, इनमें से तमाम सड़क किनारे की जमीन पर अतिक्रमण करके ही बनाये गए हैं। पूजाघरों के नाम पर सड़कें ही नहीं पूरे के पूरे पहाड़ हथिया लिए जाते हैं।
इस मामले में योगी सरकार के फैसले की मुक्तकंठ से सराहना करते हुए दूसरे राज्यों की सरकारों से भी इस तरह के फैसले करने का आग्रही हूँ। खास तौर पर भाजपा शासित सरकारों से। देश की तमाम भाजपा शासित सरकारों ने जैसे ‘लव जिहाद’ के मामले में क़ानून बनाने को लेकर यूपी की नकल की है, उसी तरह उन्हें सड़क किनारे से पूजाघर हटाने के मामले में भी कठोर निर्णय करना चाहिए। ऐसे क़ानून बनाते समय ध्यान ये रखना होगा की कोई पक्षपात न हो। पक्षपात एक आम बात है। हमारे शहर में एक कलेक्टर आकाश त्रिपाठी के कार्यकाल में इस तरह की कार्रवाई की गयी थी, लेकिन उस समय यातायात में बाधक एक जैन मंदिर को तत्कालीन एडीएम ने बचा लिया था क्योंकि वे जैन थे।
इस समय मैं अमेरिका में हूँ और देखता हूँ कि यहां एक भी पूजाघर सड़क किनारे नहीं है, अतिक्रमण का तो सवाल ही नहीं उठता। चाहे जिस धर्म के पूजाघर हों यहां बाकायदा भूखंड खरीदकर पार्किंग आदि की तमाम शर्तों के पालन के बाद ही बनाये जाते हैं। हमारे यहां सरकारें धर्मभीरु होने के कारण न तो सड़क किनारे अतिक्रमण कर बनाये जाने वाले पूजाघरों को बनने से रोक पाती हैं और न उन्हें बनाने वालों के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई ही कर पाती हैं। उलटे जरूरत पड़ने पर ऐसे अवैध पूजाघरों में जाकर माथा और टेकते नजर आती हैं।
पूजाघरों का निर्माण करने की एक सुस्पष्ट नीति होना चाहिए। पूजाघरों के लिए न तो अतिक्रमण को बर्दाश्त किया जाये और न ही पूजाघर बनाने के लिए मुफ्त में सरकारी जमीन दी जाये। हमारे यहां पूजाघरों ही नहीं अपितु जातीय धर्मशालाओं और छात्रावासों तक के लिए सरकारी जमीनें खैरात समझकर दे दी जातीं हैं। ये सब परिदृश्य बदलना चाहिए। धर्म के नाम पर होने वाली सियासत को तो देश रोक नहीं सका लेकिन यदि कुछ मुख्यमंत्री योगी की तरह सोचने लगें तो शायद स्थितियों में सुधार हो।
योगी सरकार के इस फैसले के पीछे भी बदनीयत छिपी हो सकती है किन्तु हमें उम्मीद है कि जनहित और राष्ट्रहित में योगी महाराज कम से कम एक तो अक्लमंदी का काम अवश्य कर गुजरेंगे। इस तरह के फैसलों को राजनितिक चश्मे से न देखा जाये और न उनकी आलोचना की जाये। बेहतर हो कि समाज भी ऐसे फैसलों में सरकारों के साथ खड़ा नजर आये।(मध्यमत)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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