अजय बोकिल
मजाक में ही सही, किसी ने टिप्पणी की कि बिहार के चोर भी ‘विद्वान’ होते हैं। वजह हिंदी के महान उपन्यासकार और कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु के घर से उनकी किताबों की मूल प्रतियों और अन्य सामग्री की चोरी की विचलित करने वाली खबर। पहले रेणु की पांडुलिपियां चुराने की सूचना भी थी, लेकिन बाद में उसका खंडन हो गया। सही क्या है, पता नहीं। थाने में रिपोर्ट के बाद पुलिस ने जांच शुरू कर दी है, लेकिन ऐसा ‘साहित्य प्रेमी चोर’ पुलिस के हत्थे चढ़ पाएगा, इसकी उम्मीद कम ही है। वैसे भी ऐसी ‘असाधारण चोरियां’ पुलिस की सामान्य तफ्तीश, मुकदमों और सजाओं की श्रेणी में नहीं आती। और भी मामले हैं जांच के लिए।
समाज भी ऐसी चोरियों की खबर पढ़कर ठंडी आह भले भरता हो, बाद में बात आई-गई हो जाती है। पांडुलिपि तो ठीक, कवींद्र रवीन्द्र का 16 साल पहले चोरी गया नोबेल पदक पुलिस आज तक नहीं ढूंढ सकी है। एक और नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी के नोबेल पुरस्कार की अनुकृति भी चोर ले उड़े। भारत रत्न और शहनाई के पर्याय उस्ताद बिस्मिला खां की जादुई शहनाई के चोर तो इसलिए पकड़े जा सके, क्योंकि ‘चोर’ भी घर के ही थे। रेणु की चुराई गईं कृतियां भी वापस लौटेंगी या नहीं, कहा नहीं जा सकता।
जाने-माने लेखकों के साहित्य से सामग्री चुराकर ‘नया’ साहित्य रचने की बातें तो आम हैं, ठीक उसी तरह कि कई लोगों की लाइब्रेरियां भी इसी तरह ‘समृद्ध’ होती रही हैं (इसमें अब डिजिटल चोरी भी शुमार कर लें)। लेकिन मूल कृतियों अथवा पांडुलिपि पर ही चोर धावा बोल दें और हम उसे बचा तक न सकें, यह एक तरह से हमारी चेतना की नपुंसकता भी है। यानी लिखे हुए कागद ही चुरा ले गया न! कोई सोना चांदी तो नहीं ले गया..। ऐसी प्रतिक्रियाओं में निहित मानसिकता यही दर्शाती है कि वस्तुओं के सृजनात्मक मूल्य की तुलना में उसका आर्थिक मूल्य हमारे लिए ज्यादा अहम है।
फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी के उन महान साहित्यकारों में हैं, जिन्होने आंचलिक उपन्यास को नई हैसियत बख्शी, उसे मान्यता दिलवाई। बिहार की पृष्ठभूमि पर लिखी ‘मैला आंचल’ उनकी अमर कृति है। कई लोग रेणु को प्रेमचंद की अगली कड़ी मानते हैं। मसलन यदि प्रेमचंद गांवों के उद्गाता हैं तो रेणु ग्रामीण संस्कृति में रचे-बसे और उसे जीने वाले साहित्यकार हैं। रेणु को हमसे बिछड़े अब 43 साल हो चुके हैं। लेकिन चोरों की निगाह अब भी उनकी कृतियों पर बनी हुई थी। जो खबर मीडिया में आई, उसके मुताबिक बिहार की राजधानी पटना में कदम कुआं इलाके में राजेन्द्र नगर स्थित उनके फ्लैट बी-30 से चोर उनका साहित्य ही चुरा ले गए। जिसमें ‘मैला आंचल’ की मूल प्रति भी शामिल है।
चोरों ने रेणु के हस्ताक्षर वाली परती परिकथा, पलटू बाबू रोड, ठुमरी, अधूरा हस्तलिखित, कागज की नाव, दर्जनों दुर्लभ चिट्ठियां, अन्य लेखकों की दर्जनों पुस्तकें भी चुरा लीं। बताया जाता है कि स्व. रेणु के इस आवास में उनके बेटे का साला रहता है। चोरी के वक्त वह अपने गांव गया था। सो घर पर ताला था। हालांकि रेणु के संदर्भ में यह चोरी पहली नहीं है। रेणु के पैतृक गांव अररिया जिले के फारबिसगंज के औराही हिंगना स्थित रेणु स्मृति भवन से भी चोर पूर्व में आधा दर्जन कमरों के ताले तोड़कर लाखों का सामान चुरा चुके हैं।
बताया जाता है कि राज्य की नीतीश कुमार सरकार रेणु के साहित्य का संग्रहालय बनवाना चाहती थी, लेकिन कोरोना और विधानसभा चुनाव आड़े आ गए। हालांकि सीसीटीवी फुटेज के आधार पर पुलिस का दावा है कि वह चोरों को जल्द पकड़ लेगी। इसके पहले हम अपनी वैश्विक धरोहर रवींद्रनाथ टैगोर के नोबेल पुरस्कार पदक को भी चोरों की नजर से नहीं बचा पाए थे। 2004 में रवीद्रनाथ टैगोर का नोबेल पुरस्कार शांति निकेतन स्थित उनके स्मृति संग्रहालय से कोई ले उड़ा। मामले की सीआईडी जांच हुई फिर सीबीआई जांच भी।
जांच को लेकर दोनों में राजनीति भी हुई। 12 साल बाद पुलिस चोरी के शक में एक बाउल गायक को पकड़ पाई। उसके बाद क्या हुआ, किसी को नहीं पता। यही नहीं चोरों ने शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित व मप्र के गौरव कैलाश सत्यार्थी के दिल्ली में कालकाजी स्थित आवास अरावली अपार्टमेंट से नोबेल पुरस्कार की अनुकृति, कीमती सामान व दस्तावेज चुरा लिए। यह तीन साल पहले की बात है। तब कैलाशजी विदेश यात्रा पर थे।
ये तो हुई ‘बाहरी’ चोरों की बात। भारत रत्न और महान शहनाईवादक बिस्मिला खान के बनारस स्थित उनके आवास से खां साहब की शहनाइयां ही चुरा ली गईं। जांच में पता चला कि यह कारनामा उनके पोते शादाब ने ही अंजाम दिया था। उसने दादा की पांच शहनाइयां बाजार में बेच दीं। पोते की निगाह में इन शहनाइयों का मोल उसमें जड़ी चांदी के बराबर ही था। चार साल पहले हुई इस चोरी में गई वो मधुर शहनाइयां अब कभी बरामद नहीं हो सकेंगी, क्योंकि चोर ने वो 17 हजार रुपये में एक ज्वेलर को बेच दीं। ज्वेलर ने लगे हाथ उन्हें पिघलाकर उसमें लगी चांदी निकाल ली।
अलबत्ता चांदी के रूप में वो स्वरविहीन शहनाइयां जरूर मिलीं। इनमें एक शहनाई वो भी थी, जिसे खां साहब मुहर्रम के जुलूस में बजाया करते थे। यहां भी कहानी वैसी ही है, जैसे रेणु के मामले में बताई जाती है। उस्ताद की शहनाइयों, पुरस्कारों और स्मृति चिन्हों का एक संग्रहालय बनने वाला था, लेकिन नहीं बना। अब कोई संभावना भी नहीं है। खां साहब सिर्फ ‘मुसलमान’ हो जाने से बच जाएं, यही काफी है।
वैसे इस तरह की ‘सांस्कृतिक’ चोरियां’ हमारे देश में ही होती हों, ऐसा नहीं है। कुछ साल पहले इंग्लैंड के बर्मिंघम में हुई एक चर्चित चोरी में चोर हैरी पॉटर सीरिज के प्रीक्वल की पांडुलिपि ही चुरा ले गए। महान लेखक अर्नेस्ट हेमिंग्वे के प्रथम विश्वयुद्ध के अनुभवों के आधार पर रची पांडुलिपि से भरा सूटकेस भी चोरों ने चुरा लिया था। बरसों की मेहनत चंद मिनटों में मिट्टी में मिल गई। हालांकि इसके बाद भी हेमिंग्वे ने धैर्य नहीं खोया।
यहां सवाल यह है कि हमारे लिए इन सांस्कृतिक धरोहरों का मोल क्या है? पांडुलिपियां चुराकर चोर क्या करेगा? इन पुरानी पांडुलिपियों की रद्दी के रूप में कीमत भी बहुत कम होगी। चोर इतना सुसंस्कृत तो यकीनन नहीं होगा कि वो इस तरह मूल प्रतियां चुराकर उन्हें पढ़े और मूल प्रति के पठन का थ्रिल अनुभव करे। एक रचनाकार के लिए और उसके रसग्राहकों के लिए इन रचनाओं का मूल्य अनमोल है। लेकिन उसे पैसों में भुनाने वालों के लिए वह पुरानी रद्दी ही है। ठीक उसी तरह जैसे बिस्मिल्ला खां की शहनाई में जड़ी चांदी ही उसका व्यावहारिक मोल है। उसे बेचकर पेट भरा जा सकता है। पेट की क्षुधा और बौद्धिक चेतना और भूख की यह दूरी पाटना मुश्किल ही है।
हम यह भी नहीं जानना चाहते कि ये रचनात्मक कृतियां उस लेखक या कलाकार मात्र की विरासत न होकर पूरे समाज और देश की धरोहर है। उसे सम्मानपूर्वक सहेजना हमारा नैतिक कर्तव्य भी है। ऐसी पांडुलिपियों और पुरस्कारों का चोरी जाना हमारी लापरवाह सांस्कृतिक चेतना का परिणाम है। इसमें एक टुच्चापन भी है, जो यह दलील दे सकता है कि कहां-कहां निगरानी करें। जब माल्या, नीरव मोदी जैसे भगोड़े पूरे देश को चकमा दे रहे हों तो एक पांडुलिपि का चोरी हो जाना कौन-सी अनहोनी है।
ऐसा तर्क किसी लाचार और मानसिक रूप से गुलाम देश का ही हो सकता है। क्योंकि जो चुराई गई है वह हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। अनमोल विरासत है। ऐसा सृजन विरल होता है और जब होता है, तब नया इतिहास गढ़ता है। रेणु की कृतियां चुराई जा सकती हैं, उनका कृतित्व नहीं।