अजय बोकिल
बीसवीं सदी के अनूठे वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग को उन महान वैज्ञानिकों की परंपरा में रखा जा सकता है, जब नोबेल पुरस्कार शुरू भी नहीं हुआ था और वैज्ञानिक निरपेक्ष भाव से समूची मानवता के लिए विज्ञान के माध्यम से सत्य की खोज में जुटे हुए थे। यह बात इसलिए, क्योंकि नोबेल पुरस्कार शुरू होते ही वैज्ञानिकों के काम की महानता को काफी हद तक उन्हें मिले नोबेल पुरस्कारों से आंका जाने लगा, जो आज भी जारी है।
स्टीफन हॉकिंग को भी उनकी असाधारण परिकल्पना के लिए बीती सदी के श्रेष्ठतम वैज्ञानिकों में स्थान मिला। वे एक द्रष्टा और समर्पित वैज्ञानिक होने के साथ-साथ महान मानवतावादी भी थे, जिनकी विज्ञान के अलावा अपनी सामाजिक राजनीतिक और पर्यावरणीय प्रतिबद्धताएं भी थीं। इन्हीं स्टीफन हाकिंग ने 76 साल की उम्र में आखिरी सांस लीं।
भारत जैसे मंदिर-मस्जिद, आर्थिक घोटालों और क्रिकेट में उलझे देश को स्टीफन के काम की दिव्यता का अनुभव शायद ही हो, क्योंकि हमारा मानस दूसरे ढंग का बना है और हमारी प्राथमिकताएं भी अलग हैं। स्टीफन हाकिंग का ध्यान आते ही आंखों के आगे तिरछी लटकी गर्दन और चश्मे की आड़ से शून्य को भेदता एक चेहरा तैर जाता है। वो चेहरा, जो कम्प्यूटर के परे बसी एक अजानी दुनिया को चीन्हता-सा लगता है।
शायद स्टीफन ब्रह्मांड में झांकते और उससे बातें करते थे। लेकिन यह ‘गुफ्तगू’ किसी चमत्कार को थोपने के लिए नहीं थी। वह ब्लैक होल (कृष्ण विवर) की तासीर को बूझने वाले डॉक्टर थे। 1974 में उनकी महत्वपूर्ण ब्लैक होल थ्योरी आई। इसमें उन्होने बताया था कि कैसे ब्लैक होल क्वांटम प्रभावों की वजह से गर्मी फैलाते हैं। बता दें कि ब्लैक होल ब्रह्मांड में बने कोई गड्ढे नहीं है बल्कि ये करोड़ो-अरबों साल जीने के बाद मृत हुए तारों के अवशेष हैं।
स्टीफन ने कई ऐसी स्थापनाएं दीं, जो जिन्हें गहराई से समझने की जरूरत है। स्टीफन का ज्यादातर काम सामान्य सापेक्षता के क्षेत्र में है। उन्होंने विश्व को गुरुत्वाकर्षण विलक्षणता का प्रमेय दिया। उन्होंने ही बताया कि बुझे हुए तारे विकिरण का उत्सर्जन करते हैं। इसे हॉकिंग विकिरण भी कहा जाता है।
वे ब्रिटेन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मेथेमेटिक्स के प्रोफेसर, सैद्धांतिक भौतिक शास्त्री और ब्रह्मांड विज्ञानी थे। उन्होने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें ‘अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ बहुत प्रसिद्ध है। इस पुस्तक के जरिए स्टीफन ने बिग बैंग सिद्धांत, ब्लैक होल, प्रकाश शंकु और ब्रह्मांड के विकास के बारे में नई खोजों का दावा कर दुनिया में तहलका मचाया था। मृत तारों की हकीकत बताने वाली इस किताब ने स्टीफन को विज्ञान जगत का चमकता सितारा बना दिया था।
स्टीफन मनुष्य की जीवटता की इंतिहा भी थे। एक अत्यंत विरल और असाध्य बीमारी एम्योट्राफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (एएलएस) से पीडि़त थे। इस बीमारी में शरीर निर्जीव सा हो जाता है, लेकिन प्रज्ञा असाधारण रूप से काम करती है। स्टीफन इसी प्रज्ञा के माध्यम से इस दुनिया के परे भी देख और समझ पाते थे। इस काम में कम्प्यूटर उनकी सौ फीसद मदद करता था। स्टीफन की लाइलाज बीमारी के चलते डॉक्टरों ने उनके ज्यादा जीने को लेकर संदेह जताया था, लेकिन अपनी जिजीविषा के चलते स्टीफन ने उसे हमेशा झुठलाया और 76 वर्ष तक विज्ञान और मानवता की सेवा करते रहे।
स्टीफन ने विकलांगता को अपनी ताकत बना लिया था। उनकी सारी जिंदगी उस व्हील चेयर पर कटी, जिसे उन्होंने अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस कर रखा था। 2007 में स्टीफन ने विशेष रूप से तैयार किए गए विमान में गुरुत्वाकर्षण विहीन क्षेत्र में उड़ान भरी। वो 25-25 सेकेण्ड के कई चरणों में इस गुरुत्वहीन क्षेत्र में रहे। लेकिन स्टीफन ने स्वर्ग की कल्पना को सिरे से खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि मुझे मौत से डर नहीं लगता, बल्कि इससे जीवन का और अधिक आनंद लेने की प्रेरणा मिलती है।
हॉकिंग कहते थे कि हमारा दिमाग भी एक कम्प्यूटर की तरह है, जब इसके पुर्जे खराब हो जाएंगे तो यह काम करना बंद कर देगा। खराब हो चुके कंप्यूटरों के लिए स्वर्ग और उसके बाद का जीवन नहीं है। स्वर्ग की कल्पना केवल अंधेरे से डरने वालों के लिए बनाई गई है। अपनी किताब ‘द ग्रैंड डिजाइन’ में प्रोफेसर हॉकिंग ने बताया कि ब्रह्मांड खुद ही बना है और इसे बताने के लिए विज्ञान को किसी दैवी शक्ति की जरूरत नहीं है। स्टीफन का ईश्वर में विश्वास नहीं था। वे यह भी कहते थे कि ब्रह्मांड के नियम भले ईश्वर ने बनाए हों, लेकिन ईश्वर स्वयं उन नियमों को कभी नहीं तोड़ता। हॉकिंग का मानना था कि विश्व में सारी सूचनाएं पूरी तरह नष्ट नहीं होंगी। ब्लैक होल से कुछ सूचनाओं को फिर से प्राप्त किया जा सकेगा।
अपनी वैज्ञानिक खोजों के साथ-साथ स्टीफन मानव जाति के भविष्य को लेकर भी चिंतित रहते थे। जब उनसे पूछा गया कि पूरी दुनिया में राजनीतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय अराजकता के चलते अगले सौ वर्षों में मानव जाति का भविष्य क्या है? तो स्टीफन ने उत्तर दिया कि मैं इसका उत्तर नहीं जानता, लेकिन दुनिया को न्यूक्लीयर वॉर से खतरा है। साथ ही यह भी कहा कि मनुष्य जाति का भविष्य आगे सुपरइंटेलिजेंट आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (अतिप्रज्ञ कृत्रिम बुद्धिमत्ता) तय करेगी। ईश्वर में अविश्वास करने वाले स्टीफन को एलियन्स (दूसरे ग्रहों के प्राणी) पर विश्वास था। उन्होंने आगाह भी किया कि उनसे सम्पर्क साधना खतरनाक हो सकता है।
यह प्रश्न मन में उठना स्वाभाविक है कि इतना कुछ देने के बाद भी स्टीफन के काम को नोबेल पुरस्कार के लायक क्यों नहीं समझा गया। इसके बारे में नेशनल जियॉग्राफिक मैगजीन में ‘द साइंस ऑफ लिबर्टी’ के लेखक टिमोथी फेरिस का कहना है कि स्टीफन हॉकिंग की ब्लैक होल थिअरी को सैद्धांतिक भौतिकी में स्वीकार कर लिया गया है। लेकिन इसे साबित करने का कोई तरीका अभी नहीं मिला है। हॉकिंग के सिद्धांत को अगर वाकई जांचा जा सकता तो उन्हें नोबेल पुरस्कार मिल सकता था। लेकिन ऐसा कभी होगा, कहना मुश्किल है।
स्टीफन की राजनीतिक विचारधारा वामपंथी थी। वे पूंजीवाद के विरोधी थे। उन्होंने अमेरिका द्वारा छेड़े गए वियतनाम और इराक युद्ध के खिलाफ प्रदर्शनों में भाग लिया था। स्टीफन की तुलना महान वैज्ञानिक आइंस्टीन से की जाती है। स्टीफन ने जब इस दुनिया में पहली बार आंखे खोली थीं, तब विश्व दूसरे महायुद्ध में झुलस रहा था। जापान पर गिराए गए एटम बम के बाद लगने लगा था कि दुनिया बचेगी भी या नहीं।
इसी दौर में पले बढ़े स्टीफन ने सात साल पहले हमे आगाह किया था कि 200 साल के भीतर धरती नष्ट हो जाएगी। क्योंकि बढ़ती आबादी, घटते संसाधन और परमाणु हथियारों का खतरा लगातार धरती पर मंडरा रहा है। अगर इंसान को इससे बचना है तो अंतरिक्ष में नया आशियाना बनाना पड़ेगा। यानी नास्तिक लगने वाले स्टीफन मानव सभ्यता को बचाए रखने के लिए चिंतित थे। मुर्दा तारों की हकीकत बताने वाले इस वैज्ञानिक को तलाश एक ऐसे जिंदा तारे की थी, जहां जीवन फिर फल-फूल सके। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
(सुबह सवेरे से साभार)