विजय बुधौलिया
आजकल ‘लक्ष्मण-रेखा’ शब्द बहुत चलन में है। विशेषकर जबसे प्रधानमंत्री जी ने कोरोना वायरस से बचने के लिए लोगों से अपने घर की लक्ष्मण-रेखा के अंदर बने रहने की अपील की है। इस लक्ष्मण-रेखा से उनका आशय हम सब की सुरक्षा-रेखा से है। सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में भी लक्ष्मण-रेखा मर्यादा की उस सीमा को माना जाता है,जिसे पार करने पर व्यक्ति के अनैतिक और समाज के अराजक होने की आशंका बनी रहती है।
इसका नाम चूँकि लक्ष्मण-रेखा है, तो निश्चित ही यह राम के अनुज लक्ष्मण से संबंधित ही है और इसका उल्लेख किसी राम-कथा में होना भी चाहिए। तो आईए, इस संदर्भ में कुछ राम कथाओं की ओर नजर डालते हैं।
सीता-हरण की उस घटना से आप और हम सब अच्छी तरह परिचित हैं, जब माता सीता ने कुटी के बाहर एक स्वर्ण-मृग देखा था। तब वे राम और लक्ष्मण को बुलाती हैं और उसे पाने के लिए अनुरोध करती हैं। इस पर राम, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप कर उस स्वर्णमृग का शिकार करने के लिए उसका पीछा करते हुए कुटी से दूर घने वन में चले जाते हैं। राम के बाण से घायल होने पर मारीच मृग का रूप छोड़ कर अपने असली रूप में प्रकट हो जाता है और पूर्वयोजना के अनुसार राम की वाणी में ‘हा सीते-लक्ष्मण’ चिल्लाता है।
जब सीता जी को यह आर्त-नाद सुनाई देता है, तब वे इसे राम की आवाज समझकर विचलित हो जाती हैं और यह अनुमान लगाती हैं कि राम भारी संकट में हैं। वे लक्ष्मण से कहती हैं कि वे तुरंत राम की सहायता के लिए जाएँ। इस पर लक्ष्मण उन्हें समझाते हैं कि राम पर कभी कोई संकट आ ही नहीं सकता। जरूर यह कोई माया है। किन्तु, जब सीता जी उन्हें कुछ कटु शब्द कहती हैं, तब बाध्य होकर उन्हें जाना पड़ता है।
माना जाता है कि वन में जाते समय लक्ष्मण ने अपने धनुष से सीता जी की रक्षा के लिए कुटिया के चारों ओर एक अभिमंत्रित रेखा खींची थी और सीता जी को चेताया था कि किसी भी दशा में वे इस रेखा को पार न करे। इसी रेखा को लक्ष्मण-रेखा कहा जाता है। सीता जी ने त्रुटिवश जब इस रेखा को पार किया तब आगे क्या हुआ, यह कहानी जगत प्रसिद्ध है।
वाल्मीकि रामायण में सीता को लक्ष्मण की रक्षा में छोड़कर राम मृग को मारने के लिए जाते हैं। इसमें माना गया है कि लक्ष्मण सीता के कटु वचन सुन कर राम की सहायता के लिए गए। किंतु, जाने के पूर्व लक्ष्मण द्वारा कोई रेखा खींची गई थी, ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता। अब रावण परिव्राजक के रूप में सीता के पास पहुँचता है और उनसे आतिथ्य-सत्कार ग्रहण करता है और उस के बाद अपना असली परिचय देता है और सीता के सामने लंका की महारानी बनने का प्रस्ताव रख देता है। सीता का कटु उत्तर सुन कर वह अपने राक्षस रूप में प्रकट हो जाता है और उनको अपने रथ पर रख कर लंका की ओर रवाना हो जाता है।
नृसिंह पुराण के अनुसार रावण सन्यासी के रूप में आकर सीता से कहता है कि भरत आ गए हैं और उन्होंने आपको ले जाने के लिए मुझे भेजा है। राम भी मृग को फंसा कर अयोध्या जा रहे हैं। यह सुन सीता स्वयमेव विमान पर चढ़ती हैं और रावण को सीता जी का स्पर्श नहीं करना पड़ता। वृहद्धर्म पुराण में रावण सीता के पास आकर कहता है कि कौशल्या आपको देखने की इच्छुक है। भासकृत प्रतिमानाटक में इस कहानी का एक अलग रूप पाया जाता है। दशरथ के वार्षिक श्राद्ध के एक दिन पहले राम और सीता सोच रहे थे कि श्राद्ध किस तरह योग्य रीति से मनाया जाए। इस पर रावण परिव्राजक के रूप में आता है और अपना परिचय देकर कई शास्त्रों का उल्लेख करता है, जिनका उसने अध्ययन किया है। इनमें से एक है प्रचेतसं श्राद्धकल्पम्। राम श्राद्ध के विषय में जानना चाहते हैं। तब रावण कहता है कि हिमालय में रहने वाले कांचन मृग से पितृ विशेषरूप से तृप्त हो जाते हैं। उसी समय मारीच इस तरह का मृग बन कर दिखाई देता है। लक्ष्मण उस समय आश्रम के कुलपति का स्वागत करने गए थे। सीता को परिव्राजक (रावण) के पास छोड़कर राम मृग के पीछे चले जाते हैं। तब रावण अपना रूप धारण कर सीता को लंका ले जाता है।
किन्तु, बाद की बहुत सी रामकथाओं में लक्ष्मण-रेखा की कल्पना की गई और इस पर बहुत जोर दिया गया। जिसके अनुसार लक्ष्मण जाने के पहले सीता की रक्षा के लिए कुटी के चारों ओर धनुष से रेखा खींचते हैं और देवताओं की शपथ खाकर कहते हैं कि जो कोई इसके भीतर घुसेगा, उसका सिर फट जाएगा। बाद में छद्मवेषी रावण के अनुरोध पर सीता उसे भोजन देने के लिए हाथ रेखा के बाहर बढ़ाती हैं और रावण उनको खींच लेता है। इसी प्रकार की कथा तेलुगु द्विपद रामायण, कृतिवास रामायण, आनन्द रामायण, भावार्थ रामायण, असमिया गीतरामायण, रामचंद्रिका आदि में भी पाई जाती हैं।
एक रामकथा में लिखा है कि जब रावण रेखा पार करना चाहता है, अग्नि की लपटें उठकर उसे भीतर घुसने से रोकती हैं। सारलादास की उड़िया महाभारत के अनुसार लक्ष्मण तीन रेखाएँ खींचते हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्रतीक हैं। मधुसूदन के महानाटक में रावण सीता को तुलसी देना चाहता है, किंतु सीता रेखा का उल्लंघन करना अस्वीकार करती हैं, इस पर रावण रेखा पार कर सीता को ले जाता है। सेरीराम कथा के अनुसार सीता रावण को एक पुष्प देने के लिए अपना हाथ रेखा से बाहर बढ़ाती हैं, जिससे रावण उनको खींच लेता है।
रामचरित मानस में लक्ष्मण रेखा का उल्लेख है भी और नहीं भी है। सीताहरण के पूर्व सीता जी के कटु शब्द सुन कर लक्ष्मण राम की सहायता के लिए जाते हैं तब वे सीता को वन, देवता और दिशाओं की अभिरक्षा में छोड़ जाते हैं (बन दिसि देव सौंप सब काहू) पर कोई रेखा नहीं खींचते। किंतु, एक अन्य प्रसंग में लक्ष्मण रेखा का उल्लेख मानस में मिलता भी है। जब मंदोदरी रावण को राम से युद्ध न करने के लिए समझाती हैं, तब वह रावण को उलाहना देती हुई कहती है कि तुमसे रामानुज (लक्ष्मण) की खींची हुई एक छोटी सी रेखा तो पार की नहीं जा सकी, क्या यही है तुम्हारा पराक्रम-
‘रामानुज लघु रेख खचाई। सोई नहिं नाघेहु असि मनुसाई।।‘
सुखी जीवन जीने के लिए जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी लक्ष्मण-रेखा में ही रहे। फिर आज तो घर की लक्ष्मण रेखा जीवन-मरण का प्रश्न बन गई है। अत: अपनी सीमा में ही रहें और सुरक्षित बने रहें।
(फेसबुक पोस्ट से साभार)