अजय बोकिल
कोरोना के चलते देशव्यापी लॉक डाउन के बीच 33 बरस पुराने और बेहद लोकप्रिय टीवी सीरियल ‘रामायण’ का ताला खुल गया है। केन्द्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि सोशल मीडिया पर लोगों की मांग के चलते दूरदर्शन अपने इस अत्यंत लोकप्रिय धारावाहिक को फिर से टेलीकास्ट करने जा रहा है। मुमकिन है इसी बहाने दूरदर्शन की टीआरपी का ताला भी खुल जाए। तीन दशकों बाद इस सीरियल का डीडी नेशनल पर आना नेट व मोबाइल में डूबी मिलेनियल पीढ़ी को कितना प्रभावित करेगा, यह देखना दिलचस्प होगा। इतना तय है कि जिस ‘रामायण’ ने उस जमाने में लोकप्रियता का रिकॉर्ड कायम किया, वहीं नई पीढ़ी को राम कथा नए रूप में सुनाई, दिखाई।
इस सीरियल ने भारतीय राजनीति में हिंदुत्व का तड़का लगाने में भी महती भूमिका निभाई। इसी ने राम मंदिर आंदोलन की पूर्व पीठिका भी तैयार की। आज जिस राज सिंहासन पर भाजपा विराजमान है, उसके पाए भी ‘रामायण’ ने ही तैयार किए, इसके विपरीत जिस कांग्रेस के राज में इस सीरियल को प्रसारित करने का फैसला हुआ, वह आज लगभग राजनीतिक वनवास की स्थिति में है।
‘रामायण’ धारावाहिक का निर्माण और निर्देशन अपने जमाने के मशहूर निर्माता निर्देशक रामानंद सागर ने किया था। रामानंद संस्कृत में गोल्ड मेडलिस्ट, लेखक, पत्रकार और फिल्म निर्देशक थे। वे राजकपूर की उस यादगार फिल्म ‘बरसात’ के लेखक भी थे, जिसने हिंदी सिनेमा का नया व्याकरण रचा। इसके बाद रामानंद ने राजकुमार, आरजू, गीत और आंखे (1968) जैसी हिट फिल्में बनाई और निर्देशित कीं। सत्तर के दशक में अचानक उनका रुझान टीवी की तरफ हुआ। उस जमाने में भारत में टीवी का क्रमिक विस्तार हो रहा था। हालांकि तब टीवी ब्लैक एंड व्हाइट ही होते थे। फिर भी घर में छोटे पर्दे का एक अलग जादू और आकर्षण था।
कश्मीरी पंडित रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि पापाजी (रामानंद) को टीवी सीरियल बनाने की प्रेरणा उनकी फिल्म ‘चरस’ की स्विट्जरलैंड में शूटिंग के दौरान मिली थी, जब उन्होंने वहां कलर टीवी पर एक फ्रेंच फिल्म देखी और तय कर लिया कि वे अब टीवी सीरियल बनाएंगे। ‘रामायण’ के पहले सागर ने ‘विक्रम बेताल’ जैसा लोकप्रिय धारावाहिक बनाया था, जिसके संवाद प्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी ने लिखे थे। इसी सीरियल के ज्यादातर कलाकारों को बाद में ‘रामायण’ में लिया गया।
हालांकि दूरदर्शन के लिए ‘रामायण’ बनाने का शुरुआती अनुभव रामानंद सागर के लिए बहुत अच्छा नहीं था। उनकी जीवनी ‘एन एपिक ऑफ रामानंद सागर’ में उनके बेटे प्रेम सागर ने खुलासा किया है कि उस समय देश में कांग्रेस का राज था और प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। दूरदर्शन जैसे सरकारी टीवी पर हिंदुओं के धार्मिक महाकाव्य ‘रामायण’ के प्रसारण को लेकर काफी विरोध हुआ। प्रसारण शुरू होने के पहले और बाद में भी। सबसे तगड़ा विरोध तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री विट्ठल एन. गाडगिल ने किया था। उनका मानना था कि ऐसे पौराणिक आख्यानों के प्रसारण से भारत की धर्मनिरपेक्ष आत्मा को आघात पहुंचेगा तथा हिंदू कट्टरवाद को खाद-पानी मिलेगा। बीजेपी जैसी पार्टियों का वोट बैंक मजबूत होगा।
यह सवाल भी उठाया गया कि रामानंद कौन से राम की कहानी दिखाने वाले हैं, वाल्मीकि के रामायण के ‘महानायक राम’ की अथवा तुलसी के ‘रामचरित मानस’ वाले ‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम’ की। दूरदर्शन के कई अधिकारी भी इसी विचार के थे। लेकिन कांग्रेस में ही एक तबका इसके पक्ष में इस आधार पर था कि ‘रामायण’ केवल हिंदुओं की थाती नहीं है, यह समूचे भारत की विरासत है। ‘रामायण’ शुरू कराने में एक पूर्व नौकरशाह एस.एस. गिल की अहम भूमिका बताई जाती है। क्योंकि वो ‘रामायण’ को भारतीय नैतिक व सामाजिक मूल्यों की महान विरासत मानते थे। सागर को लिखे एक पत्र में गिल ने कहा था कि हमें रामायण को नई पीढ़ी की नजर से देखना और समझाना चाहिए।
यह भी कहा जाता है कि स्वयं राजीव गांधी इस सीरियल के प्रसारण के पक्ष में थे। इसका कारण यह था कि शाह बानो केस में तलाकशुदा मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को राजीव गांधी की सरकार ने कट्टरपंथी मुसलमानों के दबाव में संविधान संशोधन के माध्यम से पलट दिया था। इससे देश के हिंदुओं में कांग्रेस को लेकर नाराजी बढ़ने लगी थी। इस माहौल को बदलने के लिए ‘रामायण’ जैसे धारावाहिकों से राजीव अपनी और कांग्रेस की छवि सुधारना चाहते थे। इस सीरियल के प्रसारण के साल भर पहले ही अयोध्या में राम जन्म भूमि पर लगे ताले कोर्ट के आदेश पर खोले (या खुलवाए?) गए थे।
इन सबका परिणाम यह हुआ कि राजीव गांधी ने अचानक सूचना प्रसारण मंत्रालय की कमान उन अजित कुमार पांजा के हाथ में दे दी, जो ‘रामायण’ को अलग निगाह से देखते थे और बॉलीवुड के साथ उनके अच्छे सम्बन्ध थे। दूरदर्शन के चार आला अफसरों को भी ताबड़तोड़ तरीके से बदल दिया गया। इस बीच मंडी हाउस के अफसर रामानंद सागर को इस सीरियल की मंजूरी के लिए चक्कर लगवा रहे थे। यहां तक कि सीरियल के चार पायलट एपीसोड्स को घटाकर एक में समेट दिया गया। लेकिन ‘ऊपर’ से इशारे के चलते आखिरकार इसे मंजूरी मिल गई।
‘रामायण’ का पहला एपीसोड 25 जनवरी 1987 को दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ। फर्क इतना है कि वो दिन रविवार था, अब जब दूसरी बार यह प्रसारित होगा वह शनिवार है। रामानंद सागर के इस रामायण में राम की भूमिका अरुण गोविल, सीता की भूमिका दीपिका चिखलिया, हनुमान का रोल दारासिंह और रावण की भूमिका अरविंद त्रिवेदी ने अदा की थी। मधुर संगीत रवींद्र जैन का तथा शीर्षक संगीत जयदेव का था। रामानंद सागर ने राम के आदर्श पुरुष रूप को ही चित्रित किया। प्रसारण शुरू होते ही यह सर्वाधिक लोकप्रिय सीरियल में शुमार हो गया। कहते हैं कि तब इसके हर एपीसोड से दूरदर्शन को 40 लाख रुपये की कमाई होती थी। हालांकि तब टीआरपी की अंधी दौड़ नहीं थी। ‘रामायण’ भारत सहित दुनिया के 55 देशों के 65 करोड़ लोग देखते थे। शुरू में ‘रामायण’ के 52 एपीसोड को मंजूरी मिली थी। बाद में इन्हें बढ़ाकर 78 किया गया। रामायण का अंतिम एपीसोड 31 जुलाई 1988 को प्रसारित हुआ था।
रामानंद सागर की मुश्किलें धारावाहिक का प्रसारण शुरू होने के बाद भी कम नहीं हुईं। दूरदर्शन के ही एक पूर्व अधिकारी शरद दत्त के अनुसार सागर जो बना रहे थे, उसकी गुणवत्ता निम्न थी। दत्त ने एक बार रामानंद से सवाल भी किया कि आप ‘रामायण’ बना रहे हैं या ‘राम लीला’? आलोचनाओं का दौर जारी था। वामपंथी नाटककार जी.पी. देशपांडे ने तो ‘रामायण’ सीरियल को इस महाकाव्य के साथ ‘अन्याय’ निरूपित किया। उन्होंने इसे ‘कैलेंडर आर्ट’ कहकर खारिज किया। इसमें कई तकनीकी खामियां भी गिनाई गईं। इसके विपरीत दर्शकों में इस सीरियल की लोकप्रियता तेजी से बढ़ती जा रही थी। यही जन दबाव था कि दूरदर्शन को ‘रामायण’ का प्रसारण जारी रखना पड़ा।
तैंतीस साल पहले के रामायण सीरियल प्रसारण के दौरान बनने वाले और आज के माहौल में एक समानता है। तब भी देश भर में 45 मिनट के लिए ‘लॉक डाउन’ सा हो जाता था और आज कोरोना भय के कारण ‘लॉक डाउन’ है। तब रास्ते सूने हो जाते थे और लोग घरों में भक्ति भाव से ‘रामायण’ देखते थे। उसी भावना के साथ बहने लगते थे। ‘बच्चा बच्चा राम का’ नारे की यह पूर्व पीठिका थी। इसी रामासक्ति को आरएसएस और भाजपा ने हाथों हाथ लिया।
‘रामायण’ सीरियल और उसकी प्रस्तुति अपनी जगह है, लेकिन यह राम कथा की ही ताकत है, जो वह सार्वकालिक है और समयातीत भी। राम का चरित्र हमे मानसिक संबल देता है। यह कथा हमारे उदात्त नैतिक मूल्यों और न्याय की कथा है। तुलसी ने महामानव राम को मर्यादा पुरुषोत्तम में बदल दिया है। लिहाजा वह दोषों से परे हैं। उनका यह रूप जनमानस में रच बस गया है। ‘रामायण’ हमारे जीवन और आचरण का भी हिस्सा है। तकनीकी तौर पर देखें तो आज की पीढ़ी को ‘रामायण’ की क्वालिटी थोड़ी पूअर लग सकती है, क्योंकि अब डिजिटल का जमाना है। लेकिन पूरी ‘रामायण’ को देखना, सुनना और महसूस करना अपने आप में असमाप्त अनुभव है और चिर नूतन है।
रहा सवाल इस सीरियल के प्रसारण के राजनीतिक पहलू का तो ‘लॉक डाउन’ में इस सीरियल को ‘डाउन लोड’ करने के पीछे साफ सुथरे मनोरंजन के अलावा छुपा सियासी एजेंडा भी हो सकता है। क्योंकि राम भाजपा के राजनीतिक आराध्य भी हैं। जब तक यह सीरियल चलेगा, उसी दौरान अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास भी हो जाएगा। यानी कोरोना की दहशत का शमन होने पर एक नई राम लहर फिर उठ सकती है। ऐसी राम लहर जो ‘राम लला’ को ‘राजा राम’ के रूप में प्रतिष्ठित और प्रोजेक्ट करेगी। यह भाजपा के मनोनुकूल होगा। फिलहाल इस सीरियल को कोरोना से ध्यान हटाने का जरिया मानें तो संत तुलसीदास ‘राम राज’ की व्याख्या इस चौपाई में कर ही गए हैं-‘’दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज काहू नहीं व्यापा।‘’ क्या सचमुच ऐसा होगा? जवाब यही है कि अभी तो सीरियल का आनंद लें।