अरे वो रावण पूछ रहा है- क्‍या सबूत कि मैं जल गया?

निश्चित रूप से रावण ने इस बार कई दिन पहले से ही मीडिया पर नजर गड़ा रखी होगी। उसके गुप्‍तचर उसे पल पल की खबर दे रहे होंगे… अगर ऐसा नहीं होता, तो ऐसा कैसे हो सकता था कि हर साल की तरह इस बार भी पूरे विधि-विधान और धूम धड़ाके के साथ जला दिए जाने के बाद भी वह यह प्रश्‍न लेकर सामने खड़ा हो जाता कि – ‘’क्‍या सबूत है कि मैं जल गया?’’

लेकिन इस बार ऐसा हुआ है। रावण ने न सिर्फ खुद को जला दिए जाने का सबूत मांगा है, बल्कि उसके मीडिया मैनेजरों ने तो रावण दहन के आयोजन को ही ‘फेक’ (फर्जी) बता दिया है। रावण की ओर से यह सवाल उछाले जाने के बाद बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है। जिस बंदे को हर साल जलाकर खाक करते आए हैं, आज वही सीना तानकर पूछ रहा है कि आपके पास क्‍या सबूत है मेरे खाक हो जाने का? क्‍या खराब जमाना आया है, हजारों लोगों की आंखों के सामने, खुद अपने हाथों से जिसे आग लगाई, जिसके धू-धू कर जलते हुए शरीर के साथ अपनी सेल्‍फी ली, वही अब पूछ रहा है कि बाबू तू तो सबूत ला…

यह तो पता नहीं कि रावण के जमाने में जब ऐसे सवाल उठाए जाते होंगे, तो लोग किसको ‘कन्‍सल्‍ट’ करते होंगे। अलबत्‍ता हमारे जमाने में इस मामले में बड़ी सुविधा है। जब कुछ समझ न आए तो मीडिया से ‘कन्‍सल्‍ट‘ कर लो। पढ़कर, देखकर, सुनकर या गूगल देव की शरण में जाकर अपने सवाल का जवाब खोज लो। ठीक ठीक जवाब अगर न भी मिला, तो इस बात की गारंटी है कि प्रश्‍न पूछने वाले के सिर पर दे मारने के लिए एक उलटा सवाल जरूर मिल जाएगा। यदि सवाल पूछने वाला आपको ‘कन्‍फ्यूज’ करने या आपके मजे लेने के लिए सवाल कर रहा है, तो आप मीडिया से ‘कन्‍सल्‍ट‘ करके उसे कई गुना अधिक ‘कन्‍फ्यूज’ कर उसके मजे ले सकते हैं।

रावण के इस सवाल ने मुझे भी उलझन में डाल दिया। मैंने भी जमाने के चलन के हिसाब से ‘मीडिया’ को ‘कन्‍सल्‍ट‘  करने का तरीका अपनाया और विजयदशमी के अगले दिन के अखबार टटोल डाले। यहां फिर अहसास हुआ कि जमाना कितना बदल गया है। हमारे जमाने में दशहरे जैसे प्रमुख त्‍योहारों के दिन अखबार की छुट्टी हुआ करती थी, सो रावण दहन की खबरें अगले दिन के बजाय दो दिन बाद मिला करती थीं। लेकिन अब ऐसा नहीं है।

विजयदशमी के अगले दिन आने वाले अखबार मुझे कई खबरों से रूबरू करा रहे थे।

– पहली ही बड़ी खबर, जिस पर नजर पड़ी, वो यह थी कि राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने विजयदशमी पर अपने संदेश में मध्‍यप्रदेश में संघ की ओर से कराए गए एक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए बताया कि 9000 गांवों के अब तक हुए सर्वे में यह बात सामने आई है कि लगभग 40 प्रतिशत गांवों में मंदिर, 30 प्रतिशत में पानी व 35 प्रतिशत गांवों में श्‍मशान को लेकर दलितों के साथ भेदभाव वाला व्यवहार होता है।

– दतिया जिले से एक खबर थी कि वहां जिला मुख्‍यालय से 15 किमी दूर बीकर गांव में एक दलित ने गरीबी से तंग आकर 13 और 6 साल की अपनी दो बेटियों को दस-दस हजार रुपए में कंजरों को बेच दिया।

– विजयदशमी के दिन ही अंतर्राष्‍ट्रीय बालिका दिवस भी था। उसी सिलसिले में वैश्विक संस्‍था ‘सेव द चिल्‍ड्रन’ की ओर से जारी रिपोर्ट के आधार पर दी गई खबर बता रही थी कि लड़कियों को बेहतर अवसर देने के मामले में 144 देशों की सूची में भारत का नाम पाकिस्‍तान से भी पीछे है। पाकिस्‍तान जहां 88 वें स्‍थान पर है वहीं भारत 90वें स्‍थान पर। दुनिया में सबसे ज्‍यादा बाल विवाह भी भारत में ही होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार 47 प्रतिशत महिला आबादी में से 2.46 करोड़ बच्चियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी गई। जबकि पाकिस्‍तान में बाल विवाह भारत की तुलना में कम होते हैं।

– बच्चियों से ही जुड़ी एक और खबर राजधानी भोपाल के नजीराबाद थाना से थी, जहां सात साल की एक बच्‍ची से दुष्‍कर्म की रिपोर्ट के साथ ही एक ब्‍योरा भी नत्‍थी था जो बता रहा था कि बच्‍चों के अपहरण, खुदकुशी और ज्‍यादती जैसे अपराधों में पिछले दस सालों में 222 फीसदी इजाफा हुआ है।

इन खबरों ने रावण के सवाल पर सोचने को मजबूर कर दिया। लगा कि हम कितने भुलावे में हैं। एक पुतले को हर साल जलाकर मान ले रहे हैं कि हमने ‘रावण’ को जला दिया। जबकि वह हमारे आसपास कई कई रूपों में न सिर्फ जिंदा है, बल्कि उसके सिर भी दस से सौ, सौ से हजार और हजार से लाख होते जा रहे हैं।

फिर हम कैसे कह सकते हैं कि हमने रावण को जला दिया। मेरे पास तो रावण को देने के लिए ऐसा कोई सबूत नहीं है, यदि आपके पास हो तो जरूर बताइएगा।

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