राजनीति और मनोरंजन तक छाए हैं ‘राम’

हेमंत पाल

ये संभवतः पहली बार है कि देश में चारों तरफ माहौल राम से सराबोर है। बरसों पुराने विवाद के बाद अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर बनने वाले मंदिर का शिलान्यास हो गया। इसे रामजी का प्रताप ही माना जाना चाहिए कि सब कुछ सद्भाव के साथ पूरा हुआ। देश की एक राजनीतिक पार्टी के सत्ता तक पहुँचने का तो रास्ता ही उनकी रामभक्ति से होकर गया। तीस साल पहले उन्होंने राम जन्मभूमि मामले को अपने राजनीतिक एजेंडे में शामिल कर वहाँ मंदिर बनाने का जो मुद्दा हाथ में लिया था, उसका पटाक्षेप हो गया। इस बीच बहुत कुछ अच्छा-बुरा घटा, पर पार्टी अपनी रामभक्ति से नहीं डिगी। इसे भी श्रीराम की कृपा ही माना जाना चाहिए कि इस सबसे बड़े विवाद का सर्वमान्य हल भी उस समय निकला, जब वो पार्टी सत्ता में है।

भगवान राम हिंदू धर्म में सर्वाधिक पूजे जाने वाले देवताओं में एक हैं। यहाँ तक कि हिंदुओं के बोल व्यवहार में भी ‘जय श्रीराम’ का संबोधन आम बात है। यही कारण है कि जीवन के बाद मनोरंजन की दुनिया में भी ‘राम’ को हमेशा पसंद किया जाता है। हिंदी फिल्म निर्माण की शुरुआत भी रामजी के पितृपुरुष राजा हरिश्चन्द्र पर आधारित फिल्म ‘राजा हरिशचंद्र’ से ही हुई थी। जबकि, टेलीविजन पर भी ‘रामायण’ ऐसा सीरियल है, जो भारत समेत दुनिया के कई देशों में श्रद्धा से देखा गया।

सिनेमा के बड़े परदे पर तो राम कुछ सालों के अंतराल के बाद लगातार अवतरित होते रहे। आश्चर्य इस बात का कि राम के जीवन का कथानक सर्वविदित होते हुए भी दर्शकों के बीच हमेशा लोकप्रिय रहा। हिंदू धर्म परंपरा में श्रीराम ही ऐसे देवता हैं, जिनकी जीवनगाथा हर हिंदू जानता है। रामजी के जन्म से लगाकर पूरे जीवन में घटने वाली सभी घटनाओं में वो सबकुछ है, जो फ़िल्मी कथानक में होता है। वी. शांताराम ने पहली बार 1932 में ‘अयोध्या चा राजा’ बनाकर बॉक्‍स ऑफिस पर सिक्के खनखनाए थे। उसके बाद तो राम का सिक्का हर दौर में खनकता रहा।

सिनेमा में और कोई चले न चले, राम का नाम हमेशा ही दर्शकों की रुचि में शामिल रहा है। विजय भट्ट के निर्देशन में 1943 में बनी प्रेम अदीब और शोभना समर्थ की फिल्म ‘राम राज्य’ के बाद तो ऐसा जादू चला कि दर्शक सालों तक इन दोनों को पूजते रहे। उस दौर में इस फिल्म ने 60 लाख की कमाई की थी। ये पहली हिन्दी फिल्म थी, जिसका प्रीमियर अमेरिका में हुआ था। इस फिल्म से प्रेम अदीब को इतनी शोहरत मिली थी, कि उनका सार्वजनिक स्थानों पर जाना मुश्किल हो गया था। लोग उनकी पूजा करने लगे थे। उन्हें देखते ही पैर छूने वालों की कतार लग जाती। उनके चित्र कैलेंडर पर छपे और फ्रेम करवाकर घरों में लगाए गए। किसी कलाकार के जीवन में इससे पहले ऐसी लोकप्रियता नहीं कभी नहीं देखी गई। कहते हैं कि महात्मा गाँधी ने अपने जीवनकाल में जो एकमात्र फिल्म देखी, वो यही थी।

जितनी भी पौराणिक फिल्में बनी, उनमें भगवान राम के जीवन पर आधारित फिल्में सबसे ज्यादा बनीं और पसंद की गईं। इनमें लंका दहन (1917), राम पादुका पट्टाभिषेकम (1932), सीता कल्याणम (1934), सती अहिल्या (1937), सीता राम जनम (1944), रामायणी (1945), रामबाण (1948), रामजन्म (1951), रामायण (1954), सम्पूर्ण रामायण (1958, 1961, 1971), सीता राम कल्याणम (1961), लवकुश (1963 और 1997), हनुमान विजय (1974), बजरंग बली (1976), रावण (1984 और 2010), रामायणा : द लिजेंड ऑफ़ प्रिंस रामा (1992), हनुमान (2005), रिटर्न आफ हनुमान (2007), दशावतार (2008) और हनुमान चालीसा (2013) प्रमुख है।

बाबूभाई मिस्त्री के निर्देशन में 1961 में बनी ‘सम्पूर्ण रामायण’ ने सिनेमाघरों को सियाराम की गूंज से गुंजा दिया था। फिल्म में रावण और हनुमान को ट्रिक फोटोग्राफी से उड़ते दिखाया था। तब लंका दहन और राम रावण युद्ध के दृश्यों को फिल्माना अजूबे से कम नहीं था। इस फिल्म में महिपाल और अनीता गुहा को राम-सीता की भूमिका में पहचाना गया। रावण की भूमिका निभाकर बीएम व्यास खलनायक के रूप में पहचाने गए।

फिल्मों की तरह गानों में भी राम का जगह जगह प्रयोग किया गया है। मसलन राम करे ऐसा हो जाए, ओ राम जी, रोम रोम में बसने वाले राम, रामचन्द्र कह गए सिया से, जय रघुनंदन जय सिया राम। राम के नाम ने हिन्दी फिल्मों के गीतों में भी उतना ही योगदान दिया। भक्ति संगीत की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले गीतों में रोम रोम में बसने वाले राम, रामचन्द्र कह गए सिया से, रामजी की निकली सवारी, सुख के सब साथी दुख में न कोय मेरे राम, तेरा नाम इक सांचा दूजा न कोय’ जैसे गाने आए तो राम करे ऐसा हो जाए, राम तेरी गंगा मैली हो गई, राम राम जपना पराया माल अपना जैसे गीतों को भी श्रोताओं ने लम्बे अरसे तक याद रखा।

फिल्मों पर ही रामजी का आशीर्वाद नहीं बरसा। जाने-माने निर्देशक रामानंद सागर ने जब टीवी की दुनिया में कदम रखा तो उनके सीरियल ‘रामायण’ ने अरुण गोविल, दीपिका चिखलिया और दारासिंह को दर्शकों के दिलों में राम-सीता और हनुमान के रूप में बसा दिया। अब कंगना रनौत ने घोषणा की है कि वे राम मंदिर मुद्दे पर फिल्म बनाएंगी जिसका नाम ‘अपराजित अयोध्या’ होगा। ‘बाहुबली’ सीरीज के निर्माता केवी विजयेंद्र प्रसाद फिल्म का निर्देशन करेंगे।

ऐसी फिल्में भी है, जिनका रामजी से दूर का नाता नहीं है। लेकिन, उनके शीर्षक में भी राम का इस्तेमाल कर दर्शकों को आकर्षित करने की कोशिश की गई। इनमें राम तेरी गंगा मैली, रामावतार, राम-लखन, राम और श्याम, रामलीला, राम जाने और ‘हे राम’ जैसी फ़िल्में प्रमुख है।

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