सिलावट बहुत खफा हैं पटवारी से

अरविंद तिवारी

– अपनी सक्रियता, सहज उपलब्धता और सीधे संवाद के कारण भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा कार्यकर्ताओं में एक अलग पहचान बनाने में सफल रहे हैं। प्रभात झा, नंदकुमार सिंह चौहान और राकेश सिंह की शैली से इतर शर्मा चाहे राजधानी में रहें या प्रवास पर, उनसे मिलने के इच्छुक पार्टी से जुड़े किसी व्यक्ति को निराश नहीं होना पड़ता है। भोपाल में प्रदेश भाजपा कार्यालय में शर्मा की मौजूदगी एक अलग ही अहसास देती है। अपने मोबाइल पर आने वाले हर कॉल को वे पूरा रिस्पांस देते हैं और त्वरित समाधान भी करते हैं। प्रदेशाध्यक्ष के इस अंदाज ने पार्टी के कई दिग्गजों की परेशानी को बढा भी रखा है।

– ज्योतिरादित्य सिंधिया का अंदाज अब भाजपाइयों को रिझाने लगा है। पिछले दिनों जब भोपाल प्रवास पर थे तब भाजपा के कई बड़े नेता उनसे मिलने को बेताब दिखे। इनमें कई मंत्री और विधायक शामिल थे। सिंधिया ने भी किसी को निराश नहीं किया। इस बार उनका अंदाज भी कुछ जुदा ही था। पार्टी के कुछ दिग्गज नेताओं ने तो सिंधिया को सामने रखकर भविष्य की संभावनाओं को टटोलना भी शुरू कर दिया है। पार्टी के एक बड़े वर्ग के इस तरह सिंधिया की तरफ डायवर्ट होने में भी कोई राज तो छुपा है। ठीक ही कहा गया है राज को राज ही रहने दो।

– विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद जीतू पटवारी को लेकर तुलसी सिलावट ने बहुत तीखे तेवर अख्तियार कर रखे हैं। अलग-अलग फोरम पर खुलकर इसका इजहार भी कर रहे हैं। सिलावट की नाराजगी, जिस भाषा उपयोग पटवारी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ किया है, उसको लेकर है। उनका कहना है कि मेरे खिलाफ जिस स्तर तक पटवारी गए हैं उसे मैं नजरअंदाज कर सकता हूं, लेकिन मेरे नेता को लेकर जो कुछ उन्होंने कहा उसका खामियाजा उन्हें हर हालत में भुगतना पड़ेगा। देखना यह है कि इसे अमल में कैसे लाया जाता है और इसमें पटवारी का कितना नुकसान होता है।

– मुख्यमंत्री की हैसियत से भोपाल में सिविल लाइंस स्थित जिस बंगले में वीरेंद्र कुमार सकलेचा रहा करते थे उसी बंगले को अब उनके बेटे कबीना मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा ने अपना आशियाना बना लिया है। दरअसल श्री सकलेचा की माताजी का इस बंगले से बहुत लगाव रहा है। मंत्री बेटे को जब 45 बंगले स्थित सरकारी निवास से इस बंगले में शिफ्ट होना था तो उन्होंने एक सिविल लाइंस स्थित बंगले को अपनी पसंद बनाया और आखिरकार यह बंगला उन्हें मिल ही गया। एक जमाने में जब प्रकाश चंद्र सेठी मुख्यमंत्री थे तब यही बंगला मुख्यमंत्री निवास भी था। सुषमा स्वराज, सुभाष यादव, शिवभानुसिंह सोलंकी और शीतला सहाय जैसे दिग्गज भी यहां रह चुके हैं।

– विदिशा को भाजपा का गढ़ कहा जाता है और इस गढ़ में विधानसभा चुनाव के दौरान किला फतह करके शशांक भार्गव ने सेंध लगाई थी। लेकिन भार्गव इन दिनों बहुत दुखी हैं और उनके इस दुख का कारण कांग्रेस के ही नेता हैं। युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विधायक कुणाल चौधरी ने विदिशा जिले में की गई एक नियुक्ति की प्रक्रिया पर ली गई भार्गव की आपत्ति को जिस स्वरूप में संबंधित लोगों के सामने प्रस्तुत किया उससे भार्गव बहुत आहत हैं। उनका कहना है कि पहले तो चौधरी यह कहकर बचते रहे कि यह नियुक्ति उन्होंने नहीं शोभा ओझा ने की है और बाद में गलत बयानी करने लगे। भार्गव ने तो चौधरी से यह आग्रह तक कर डाला कि आपको सही स्थिति बताने से परहेज नहीं होना चाहिए।

– नामदेव दास त्यागी उर्फ कंप्यूटर बाबा जेल से रिहा होते ही भले ही इंदौर छोड़कर चले गए लेकिन उनके अगले कदम का सबको इंतजार है। बाबा को कंप्यूटर नाम कुछ सोच समझकर ही दिया गया था। हां यह जरूर है कि संकट के इस दौर में बाबा के साथ मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य चंद्रशेखर रायकवार जैसा सलाहकार नहीं है जिन्होंने बाबा को जेल जाने के पहले तक का मुकाम दिलाने में अहम भूमिका अदा की थी।

– युवा आईपीएस अधिकारियों में इन दिनों डीजीपी वीके जौहरी को लेकर असंतोष का भाव है। पुलिस मुख्यालय के अनेक कक्षों में इस भाव को महसूस भी किया जा सकता है। इन अधिकारियों का मानना है कि उनके हितों का संरक्षण इसलिए नहीं हो पा रहा है क्योंकि डीजीपी मजबूती से उनके पक्ष में खड़े नहीं हो पाते। यही कारण है कि कई बड़े जिलों से युवा अफसरों को बेदखल होना पड़ा। इसी तरह के हालात कुछ रेंज में भी बने। अब इंतजार जल्दी ही आने वाली तबादला सूचियों का है जिससे एक बार फिर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

– पुराने व नए एडीजी और एडीजी बनने के कगार पर खड़े आईपीएस अफसर इस बात की जोड़-तोड़ में लगे हैं कि कैसे वे अलग-अलग रेंज में पदस्थ आईजी रैंक के अफसरों को खो कर खुद वहां काबिज हो जाएं। इसके लिए जिसे जो रास्ता मिल रहा है, उस पर वह आगे बढ़ रहा है। इसी चक्कर में कुछ अफसर तो भोपाल में संघ मुख्यालय समिधा पर भी लगातार हाजिरी लगा रहे हैं। हालांकि इससे फायदा कितना मिलेगा यह उन्हें भी नहीं पता। ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें ऐसी सक्रियता नुकसानदेह भी रही है।

-चलते चलते-
– संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर की पसंद के बावजूद संस्कृति विभाग के किसी उपक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निष्ठावान जयंत भिसे की ताजपोशी किस कारण अटक गई है यह कोई समझ नहीं पा रहा है।
– मध्यप्रदेश के नए डीजीपी का फैसला होने में अभी काफी समय बाकी है। लेकिन विशेष पुलिस महानिदेशक पवन जैन के इर्द गिर्द बढ़ रही सरगर्मी काफी कुछ संकेत दे रही है। जरा पता लगाइए।

-बात मीडिया की-
– शिखा परिहार, संध्या रायचौधरी, सीमा वर्गीस, डॉ. आशा अर्पित और महिमा वर्मा जैसी दिग्गज महिला पत्रकारों की अगुवाई में शीघ्र ही एक न्यूज़ वेबसाइट मीडियापल्टन.कॉम प्रारंभ होने वाली है। इसमें सिर्फ महिलाओं से संबंधित विषय शामिल नहीं होंगे अपितु तात्कालिक एवं महत्वपूर्ण घटनाओं और खबरों का विश्लेषण भी होगा।
– उपमिता वाजपेयी को भास्कर के भोपाल संस्करण का संपादक बनाकर सुधीर अग्रवाल ने यह जता दिया कि वे हमेशा कुछ नया और अलग करने में भरोसा रखते हैं। हां उनके इस फैसले से स्टेट एडीटर अवनीश जैन के मंसूबों पर जरूर पानी फिर गया।
– कुछ दिन तक भास्कर डिजिटल की टीम में रहने के बाद नितेश पाल वापस पत्रिका की रिपोर्टिंग टीम का हिस्सा हो गए हैं।
– नईदुनिया इंदौर के कोर ग्रुप में जितेंद्र मोहन रिछारिया, उज्‍ज्‍वल शुक्ला, अश्विनी शुक्ला, प्रदीप दीक्षित और जितेंद्र व्यास की मौजूदगी अच्छा संकेत है। इन सभी को अच्छा मुकाम मिल गया है।
– भास्कर न्यूज़ अब ऑफस्क्रीन हो गया है। इस के प्रवर्तक बृजमोहन श्रीवास्तव अब स्काई टीवी के रूप में एक सेटेलाइट चैनल लेकर आ रहे हैं। इसका लाइसेंस उन्हें हासिल हो गया है।
– राजधानी के वरिष्ठ पत्रकार महेश दीक्षित की मौजूदगी का असर दैनिक अमृत दर्शन में दिखने लगा है।

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