अरविंद तिवारी
बात यहां से शुरू करते है
♦ सत्ता के माइक वन यानि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी कैबिनेट के नंबर दो गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के बीच इन दिनों अबोलापन हैं। यह अबोलापन नेताओं और अफसरों के बीच चर्चा का विषय है। अबोलापन क्यों है इसका कारण तलाशा जा रहा है और यह जल्द से जल्द दूर हो इसकी कोशिश वह लोग कर रहे हैं जो सामान्यतः ऐसे मामलों से दूर रहते हैं। वैसे इसका एक कारण दोनों द्वारा नापसंदगी को मजबूरी में स्वीकार करना बताया जा रहा है।
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♦ नीरज मंडलोई का लोक निर्माण विभाग का प्रमुख सचिव बनना उतना चौंकाने वाला नहीं माना जा रहा है जितना डीपी आहूजा का जल संसाधन और नितेश व्यास का नगरीय प्रशासन विभाग का प्रमुख सचिव बनना। दोनों अफसरों को जिन महकमों की कमान सौंपी गई है उन पर या तो अतिरिक्त मुख्य सचिव या फिर इस पद पर पदोन्नति के कगार पर खड़े वरिष्ठ प्रमुख सचिव ही अब तक काबिज होते रहे। निर्माण से जुड़े इन महकमों में हुई इन पदस्थापनाओं को उस डी फैक्टर से जोड़कर देखा जा रहा है जो शिवराज सिंह चौहान के सत्ता में आते ही नौकरशाहों की पदस्थापना के मामले में बहुत पावरफुल हो जाता है।
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♦ इन दिनों ग्वालियर कनेक्शन की बड़ी अहमियत है और इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर की डीन डॉ. ज्योति बिंदल। कोरोना सेंपल टेस्टिंग के मामले में जब मेडिकल कॉलेज पर उंगली उठने लगी और कुछ बड़ी लापरवाही पकड़ी गई तो तय हुआ कि बिंदल को हटवाया जाए। स्थानीय स्तर से पहल भी हो गयी लेकिन बिंदल का मददगार बना ग्वालियर कनेक्शन। यह फिर नरेंद्र सिंह तोमर का हो या फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया या नरोत्तम मिश्रा या यशोधरा राजे में से कोई। इस कनेक्शन ने स्थानीय पहल को विफल करवा दिया। हां, इसका फायदा डॉक्टर बिंदल के अलावा संपत फार्म में रह रहे डॉक्टर प्रदीप भार्गव को भी पूरा मिल रहा है जिनकी सलाह इन दिनों एमजीएम से जुड़े हर निर्णय में अहम होती है। अब आप पता कीजिए कि बिंदल और भार्गव का कनेक्शन क्या है।
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♦ पुरुषोत्तम पाराशर यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया के आरके मिगलानी। सिंधिया के सबसे विश्वस्त पाराशर को पिछले लोकसभा चुनाव में भी मुरैना से मैदान में लाने की मांग सिंधिया समर्थकों ने की थी, लेकिन तब रामनिवास रावत ज्यादा वजनदार निकले और बात आई गई हो गयी। अब जबकि उपचुनाव की एक-एक सीट सिंधिया के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है पाराशर को जौरा से मैदान में लाने की अटकलें हैं। यहां से पहले सिंधिया के कट्टर समर्थक बनवारी लाल शर्मा विधायक थे।
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♦ ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी यह लगने लगा है कि 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में उनके समर्थकों की नैया उनके अलावा दो ही लोग पार लगा सकते हैं। एक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और दूसरे संघ के क्षेत्रीय प्रचारक दीपक विस्पुते। दरअसल इस चुनाव में कांग्रेस से भाजपा में आए सिंधिया समर्थकों की हार जीत इस बात पर निर्भर करेगी कि भाजपा के लोग कितनी ईमानदारी से उनके लिए काम करते हैं। चूंकि सरकार बचाना शिवराज की सर्वोच्च प्राथमिकता है, इसलिए खुद वे और भाजपा को हमेशा सत्ता में देखने वाला संघ का रोल भी इसमें अहम रहेगा। संघ इस बात की भी निगरानी रखेगा की कार्यकर्ता ईमानदारी से काम करें ताकि सरकार बची रहे। इस जरूरत के चलते शिवराज के साथ ही विस्पुते से भी सिंधिया ने संवाद बढ़ा रखा है।
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♦ पहले जनसंघ फिर जनता पार्टी और फिर भाजपा, तीनों दौर में वीरेंद्र कुमार सकलेचा और सुंदरलाल पटवा की अदावत किसी से छुपी नहीं रही। जिसे जब मौका मिला उसने दूसरे को निपटाया। पटवा जिंदा रहते हुए अपने दत्तक पुत्र सुरेंद्र पटवा को मंत्री बनवा गए और अपने बलबूते पर राजनीति में स्थापित हुए सकलेचा के बेटे ओमप्रकाश सकलेचा कि राह रोकने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। अब पटवा इस दुनिया में नहीं है, सुरेंद्र पटवा गंभीर वित्तीय मामलों में घिरे हुए हैं और अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। ऐसी स्थिति में भाग्य इस बार चार बार के विधायक ओमप्रकाश सकलेचा का साथ देता नजर आ रहा है। मजबूत दिल्ली कनेक्शन भी इसमें मददगार हो सकता है।
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♦ किस्मत हो तो प्रबल सिपाहा जैसी। शान से झाबुआ की कलेक्टरी कर रहे सिपाहा जितने चहेते पूर्व मुख्य सचिव एसआर मोहंती के थे, उतने ही वर्तमान मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के भी। शिवराज सरकार के जाने और कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद वह मोहंती के कारण ही अपना पद बचा पाए थे अब मोहंती भले ही मुख्य सचिव नहीं हैं लेकिन मुख्य सचिव की हमदर्दी तो सिपाहा के साथ है। मोहंती जब इंदौर में कलेक्टर थे तब प्रबल उनके प्रोबेशनर थे और जब इकबाल सिंह बैंस भोपाल में कलेक्टर थे तब वे वहां अहम भूमिका में थे।
चलते चलते
♦ डीजीपी विवेक जौहरी ने काम में लापरवाही के चलते जिस डीएसपी पंकज दीक्षित को निलंबित कर दिया था, उन्हीं दीक्षित को मंत्री तुलसी सिलावट ने सांवेर का एसडीओपी बनवा लिया।
♦ संघ के प्रतिनिधि डॉक्टर निशांत खरे की मौजूदगी में कृष्ण मुरारी मोघे का एक अलग अंदाज में बिफरना क्या माना जाए ?
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अब बात मीडिया की
– अपने कर्मचारियों के वेतन में 30 फीसदी की कटौती करने और ब्यूरो दफ्तरों को खाली करने के बाद अब पत्रिका समूह ने इंदौर के सेंट्रल मॉल स्थित दफ्तर को भी किराए पर देने का इश्तिहार जारी कर दिया है। इसे क्या माना जाए?
– किसी समय बंसल न्यूज़ से ताल्लुक रखने वाले देवेंद्र चौहान भोजपुर न्यूज़ के नाम से एक नया रीजनल चैनल लाने की तैयारी में है।
– भोपाल से आकर इंदौर में दैनिक भास्कर की रिपोर्टिंग टीम में काम करने वाली सृष्टि भट्ट की सेवाएं अब भास्कर को नहीं मिलेंगी।
– तीन बहुत ही काबिल साथी सर्वज्ञ जैन, राजेंद्र गर्ग और जितेंद्र यादव अब पत्रिका समूह में नहीं हैं।
– समय का फेर है। भास्कर प्रबंधन के बेहद चहेते सीनियर फोटोजर्नलिस्ट ओपी सोनी अब दैनिक भास्कर में कॉन्ट्रेक्ट पर सेवाएं देंगे।
– इस्माइल लहरी ने जब भास्कर छोड़ दिया था तब संकट के दौर में भास्कर का साथ देने वाले ख्यात कार्टूनिस्ट कुमार यानी गोविंद लाहोटी को प्रबंधन ने अलविदा कह दिया है
– दैनिक भास्कर में अपनी लंबी यात्रा का सिलसिलेवार वर्णन करते हुए महेंद्र कुशवाह ने अब भास्कर से कोई नाता ना होने की जानकारी दी है।
इस बार बस इतना ही, जल्दी ही फिर मिलते हैं
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टीम मध्यमत