सरयूसुत मिश्रा
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का निवेश कांग्रेस को जोड़ने में कितना काम आएगा यह तो वक्त के साथ ही साबित होगा। राहुल गांधी अपनी यात्रा को जरूर चर्चा में लाने में सफल माने जा सकते हैं। अब तक की यात्रा जहां-जहां से गुजरी है, वहां कांग्रेस की जमीन को छूने का आभास वर्चुअल ही कहा जाएगा। कोई राज्य ऐसा नहीं है जहां कांग्रेस में बड़े नेताओं में विवाद सतह पर न दिखाई पड़ रहे हों।
कांग्रेस में सबसे चर्चित विवाद राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट का बना हुआ है। मध्यप्रदेश में भी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह गुटों के बीच की राजनीतिक गड़गड़ाहट भविष्य के बादलों का संकेत कर रही है। ऐसा माना जा रहा था कि राहुल की यात्रा नेताओं के बीच दिलों की दूरियों पर मरहम लगाने में सफल होगी। यात्रा के दिल्ली के करीब पहुंचने तक भी कांग्रेस के नेताओं के बीच नफरत और विद्वेष कांग्रेस की कमजोरी का बड़ा कारण दिखाई पड़ता है।
किसी भी यात्रा की सफलता स्मृतियों में बहुत लंबे समय तक कायम रखने के लिए जरूरी है कि कुछ बदलाव चरित्र और चेहरे में दिखें। राहुल जरूर अपनी इमेज को नए सिरे से ब्रांड करने की कोशिश में सफल हो सकते हैं लेकिन पार्टी की जकड़न को तोड़ने में यात्रा असरदार नहीं दिखाई पड़ रही है।
चीन आज भारत में कई नजरिए से चिंता का कारण बना हुआ है। सीमा पर चीन की चालें सरकार के लिए चिंता और चुनौती का विषय बनी हुई हैं तो विपक्ष के लिए चीन का मुद्दा राजनीतिक हथियार बना हुआ है। चीन में कोरोना के बढ़ते संकट के कारण दुनिया के देशों में कोरोना के विस्फोट की चिंता देखी जा रही है। भारत भी इससे अछूता नहीं रह सकता। सरकार के सामने हमेशा धर्मसंकट रहता है कि सावधानी के लिए समय पर कदम उठाए तो भी समस्या, कदम उठाने में कोई ढील हो जाए तो भी समस्या।
भारत जोड़ो यात्रा कोरोना के नजरिए से सियासत का रुदन बन गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री कोरोना से सावधानी के लिए प्रोटोकॉल का पालन करने का पत्र राहुल गांधी और राज्य सरकारों को एडवाइजरी के रूप में भेज रहे हैं।प्रोटोकॉल के उल्लंघन पर राजनीति नई नहीं है। कोरोना के समय जब भी देश में प्रोटोकॉल लागू रहा तो राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे कि सरकार अपने कार्यक्रमों में तो प्रोटोकाल का पालन नहीं कर रही है और दूसरे दलों के कार्यक्रमों में प्रोटोकाल के नाम पर बाधा पैदा कर रही है।
ऐसे ही आरोप अब ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को लेकर भी लगाए जा रहे हैं। राहुल गांधी कह रहे हैं कि यात्रा चलती रहेगी। यात्रा वैसे तो अंतिम चरण की ओर बढ़ रही है। जो यात्रा इतने लंबे समय से चल रही है वह अगर कश्मीर पहुंचकर अपना समापन करेगी तो उससे कोई राजनीतिक तूफान तो नहीं खड़ा हो जाएगा। अगर राजनीति के कारण यात्रा में शामिल एक भी यात्री कोरोना का भागी बन गया तो फिर इसके लिए जिम्मेदारी किसकी होगी?
कोरोना पर राजनीति सर्वथा निंदनीय होनी चाहिए। हर दल को सावधानी बरतना चाहिए। जान है तो जहान है। अगर राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के पत्र से भारत जोड़ो यात्रा को ध्यानाकर्षण मिला है। इसका राजनीतिक लाभ कांग्रेस को ही दिखाई पड़ता है। बीजेपी अगर राजनीतिक नजरिए से काम कर रही होती तो कांग्रेस को लाभ उठाने का मौका देने की शायद पहल नहीं करती।
देश की राजनीति की बुनियाद कांग्रेस से शुरू होती है। वही कांग्रेस आज राजनीति की कुछ बुनियादी गलतियों का शिकार बनी हुई है। पार्टी कड़े निर्णय लेने और क्रियान्वित करने से घबराती दिखाई पड़ती है। निर्णय को टाला जाता है। पार्टी में जीत के जोश की कमी दिखाई पड़ती है। आलोचकों को दरकिनार करने की रणनीति पार्टी को नुकसान पहुंचाती है।
राजनीति में आलोचना आगे बढ़ने के लिए बूस्टर डोज के रूप में उपयोग की जाती है। कांग्रेस को अपने मुख्य प्रतिद्वंदी बीजेपी से यह सीखने की जरूरत है कि कैसे अपने आलोचकों को राजनीतिक जरूरत के हिसाब से पार्टी में शामिल किया जाता है, एडजस्ट किया जाता है, उन्हें मौका दिया जाता है और भविष्य में उसका राजनीतिक लाभ प्राप्त किया जाता है।
गुजरात में बीजेपी से असंतुष्ट कई युवा चेहरे कांग्रेस में शामिल हुए थे लेकिन पार्टी उन्हें संभाल कर नहीं रख सकी और बीजेपी ने ऐसे नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल किया। यह सारे नेता बीजेपी के खिलाफ मुखर थे लेकिन फिर भी राजनीतिक वास्तविकता और जरूरतों को समझते हुए बीजेपी ने आलोचकों को भी गले लगाया, जिसका लाभ गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिला।
कांग्रेस में आलोचना मतलब गांधी परिवार के प्रति अविश्वास मान लिया जाता है। धीरे-धीरे ऐसे नेताओं को अलग-थलग करना कांग्रेस में परंपरा सी बन गई है। परंपरागत राजनीति आज लगातार बदल रही है। नए टैलेंट को राजनीति में आगे लाने का बराबर लाभ मिलता हुआ दिखाई पड़ रहा है। कांग्रेस में नए टैलेंट को अवसर और हक मिलने में संरचनात्मक बाधा महसूस की जाती है।
लोकतंत्र में मीडिया को चौथा स्तंभ माना जाता है। कांग्रेस मीडिया मैनेजमेंट में भी कमजोर साबित होती रही है। कांग्रेस अपनी बात मीडिया के माध्यम से सफलतापूर्वक रखने में सक्षम क्यों नहीं हो पा रही है? कांग्रेस देश में लंबे समय तक शासन में रही है। कांग्रेस नेताओं की समृद्धि आज भी देखी जा सकती है। कांग्रेस में नेता स्वयं के विकास पर ज्यादा फोकस करते हैं पार्टी के विकास में हिस्सेदारी पर कम।
कांग्रेस और बीजेपी की ही तुलना की जाए तो अधोसंरचना की दृष्टि से दोनों पार्टियों में काफी अंतर देखा जा सकता है। बीजेपी जहां पार्टी का इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने के लिए इन्वेस्टमेंट को प्राथमिकता देती है। बीजेपी नेताओं को पार्टी के लिए धन एकत्रित करना एक अघोषित सिद्धांत बना हुआ है वहीं कांग्रेस नेता पार्टी से धन खींचने का काम करते दिखाई पड़ते हैं।
यात्रा कभी भी अपने आप में सफल और असफल नहीं होती। यात्रा के उद्देश्य सफल होते हैं। यात्रा के अनुभवों से चाल-चरित्र और चेहरे में आए परिवर्तन से सफलता मिलती है। अगर केवल यात्रा ही सफलता का पैमाना हो तो हर राजनीतिज्ञ पूरे पांच साल यात्रा में ही लगा रहे। राहुल की यात्रा की सफलता कांग्रेस में पीढ़ीगत बदलाव और मतभेदों को कम कर ही सोची जा सकती है।
(लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)
(मध्यमत)
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