दूसरे दिन सवाल तो बहुत आए लेकिन जवाब नहीं आया

बजट एक ऐसा नशा है जिसकी खुमारी लंबे समय तक नहीं टूटती। शायर सवालिया अंदाज में पूछता है ‘’नशा शराब में होता तो नाचती बोतल’’ लेकिन बजट के मामले में आप गारंटी से कह सकते हैं कि इसमें गजब का नशा होता है और इस नशे के असर से बोतल तो क्‍या पूरा मैकदा ही नाचने कूदने लगता है।

तो आज की बात बजट के हैंगओवर या उसकी खुमारी में ही होगी। फर्क सिर्फ इतना है कि बजट के नशे की जो तेजी गुरुवार को थी वह शुक्रवार होते होते उतरती चली गई और धीरे धीरे जैसे ही असलियत सामने आने लगी, पता चलने लगा कि यथार्थ में हम कहां खड़े या पड़े हैं। खुमारी उतरी तो लोग सवाल करने लगे और देखते ही देखते इतने सारे सवाल खड़े कर दिए गए कि पूछिए मत…

बजट पेश होने के 24 घंटे के भीतर ही यह हालत थी कि चौतरफा सवालों की बौछार हो रही थी और संतोषजनक जवाब देने वाला कोई नहीं था। सबसे ज्‍यादा सवाल सरकार के दोनों महत्‍वाकांक्षी ऐलानों को लेकर हुए। पहला ऐलान किसानों को उनकी फसल का लागत से डेढ़ गुना मूल्‍य देने और दूसरा दस करोड़ परिवारों को पांच लाख रुपए तक की चिकित्‍सा सहायता मुहैया कराने का था।

बजट पेश होने के बाद से ही खेती किसानी से जुड़े लोग लागत मूल्‍य वाली घोषणा से संतुष्‍ट नजर नहीं आ रहे हैं। टीवी चैनलों से लेकर अखबारों तक में उनकी ओर से जो प्रतिक्रियाएं आई हैं वे सरकार की मंशा पर उंगली उठाने वाली और योजना के क्रियान्‍वयन में भारी गफलत की आशंका जताने वाली हैं।

देविंदर शर्मा जैसे कृषि विशेषज्ञ ने सवाल उठाया कि सरकार लागत मूल्‍य तय करने का स्‍वामीनाथन आयोग का फार्मूला तोड़मरोड़कर पेश करते हुए किसानों को भरमा रही है। इस फार्मूले के तहत लागत मूल्‍य तय करते समय किसानों की जमीन के किराये को भी शामिल किया गया था, लेकिन सरकार ने उस हिस्‍से को छोड़ दिया है। यह सीधे सीधे किसानों के साथ धोखा है।

दूसरा सवाल पूर्व कृषि मंत्री सोमपाल शास्‍त्री ने उठाया। उन्‍होंने ‘सुबह सवेरे’ से कहा- रबी की फसल आई पड़ी है, लेकिन सरकार डेढ़ गुना मूल्‍य रबी सीजन से देने के बजाय अगले खरीफ सीजन से देने की बात कर रही है। यानी भूख आज लगी है पर रोटी आठ महीने बाद मिलेगी। वे आशंका जताते हैं कि खरीफ फसल अक्‍टूबर माह तक आएगी और तब तक सरकार चुनावी मोड में आ चुकी होगी। पता नहीं तब किसानों की सुध लेने का समय किसके पास होगा।

दूसरा मसला आयुष्‍मान राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य संरक्षण योजना का है। विशेषज्ञ योजना की तो सराहना कर रहे हैं लेकिन उनके इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा? वित्‍त मंत्री ने अपने बजट भाषण में ऐलान किया है कि योजना के तहत दस करोड़ परिवारों को पांच लाख रुपए तक की चिकित्‍सा व्‍यय सुरक्षा प्रदान की जाएगी।

सरकारी घोषणा के अनुसार ही यदि गणित लगाया जाए तो योजना के लिए 5 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी। हालांकि ऐसा कभी नहीं होता कि पूरे दस करोड़ परिवार एक साथ इतने बीमार हो जाएं। लेकिन फिर भी यह योजना इतनी बड़ी है कि इसके लिए भारी भरकम राशि की जरूरत होगी। वित्‍तमंत्री ने शुक्रवार को जो खुलासा किया उसके मुताबिक फिलहाल योजना के लिए 2000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।

लेकिन विशेषज्ञ इस राशि को अपर्याप्‍त मान रहे हैं। पूर्व वित्‍त मंत्री पी. चिदंबरम ने तो पूरी योजना को ही ‘जुमला योजना’ करार दे दिया है। शुक्रवार को टीवी चैनलों पर भी जो पैनल चर्चाएं चलीं उनमें विशेषज्ञों ने कहा कि यदि यह बीमा आधारित योजना है और जैसाकि कहा जा रहा है कि प्रत्‍येक परिवार से इसके लिए 1100 रुपए का अंशदान लिया जाएगा, तो फिर यह मुफ्त योजना कैसे हुई?

सवाल उठाया जा रहा है कि बजट में वित्‍त मंत्री ने सभी सरकारी साधारण बीमा कंपनियों को मिलाकर एक करने की बात कही है। कहीं यह नई स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना भविष्‍य में बनने वाली उस ‘महाबीमा कंपनी’ का स्‍वास्‍थ्‍य ठीक करने के इरादे से फंड जुटाने के लिए तो नहीं लाई जा रही। स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजनाओं में किस तरह के घपले होते हैं यह बात किसी से छिपी नहीं हैं।

विशेषज्ञों को आशंका है कि कहीं ऐसा न हो कि योजना के भारी भरकम बजट को निजी अस्‍पताल और बीमा कंपनियां दोनों मिलकर लूट लें और जनता को कुछ न मिले। आज भी बीमित व्‍यक्ति के अस्‍पताल में भरती होने के बाद विभिन्‍न जांचों आदि के नाम पर उसके खाते में हजारों रुपए का अनावश्‍यक खर्च जोड़ दिया जाता है। अस्‍पताल मरीज को तसल्‍ली देते हुए कहते हैं, तुम्‍हारी जेब से क्‍या जा रहा है, तुम तो जांच करा लो, तुम्‍हें कौन पैसा देना है?

दूसरा मसला चिकित्‍सा क्षेत्र से जुड़े लोगों ने ही उठाया है और वह मसला है अस्‍पतालों के साथ साथ डॉक्‍टरों और विभिन्‍न जांचों संबंधी प्रयोगशालाओं की भारी कमी का। विशेषज्ञ कहते हैं कि सरकार भले ही इलाज का खर्च वहन करने की व्‍यवस्‍था कर दे, लेकिन बीमार होने के बाद व्‍यक्ति अस्‍पताल ही तो जाएगा ना… और यदि अस्‍पताल ही न हो…, अस्‍पताल में मरीजों को देखने वाले डॉक्‍टर ही न हों तो योजना क्‍या कर लेगी?

शुक्रवार को केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री जेपी नड्डा की प्रेस कॉन्‍फ्रेंस भी थी। पत्रकारों ने उन पर इन सारे सवालों की बौछार कर दी। लेकिन नड्डा के पास ज्‍यादातर सवालों के संतोषजनक या समाधानकारी जवाब नहीं थे। जबकि वित्‍त मंत्री ने ओपन हाउस चर्चा में दावा किया योजना एक अप्रैल 2018 से लागू हो जाएगी और गरीब परिवार के लोग इसी तारीख से पांच लाख रुपए तक का इलाज मुफ्त करवा सकेंगे।

देसी अंदाज में कहें तो अभी कटिंग बननी शुरू हुई है। सिर पर बाल कितने हैं यह तो कटिंग हो जाने के बाद ही पता चल सकेगा… यह भी हो सकता है कि नाई आपका सिर ही मूंड डाले!

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