राकेश दुबे
केंद्र ने यूँ तो आर्थिक समीक्षा 2022-23 में कहा है, परंतु राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 का वादा कुछ और है! वादों का क्या वादे करना तो हर सरकार का काम होता है, वादा निभाना एक मुश्किल काम है और ख़ास तौर पर जब वादा जन स्वास्थ्य से जुड़ा हो। अभी तो सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा को सुलभ और सस्ती बनाने के लिए केंद्र व राज्यों का सार्वजनिक स्वास्थ्य पर व्यय बढ़ाकर 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत के बराबर करने की जरूरत है।
वैसे इस आर्थिक समीक्षा में पंद्रहवें वित्त आयोग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 का हवाला देते हुए कहा गया है कि स्वास्थ्य पर सरकार का व्यय 1.2 प्रतिशत से बढ़ाकर 2025 तक जीडीपी के 2.5 प्रतिशत करने की सिफारिश की गई थी। सरकार विचार करती है, पर मंथर गति से।
इसमें ही उल्लेख किया गया है कि केंद्र व राज्य सरकारों का स्वास्थ्य पर बजट खर्च बढ़कर वित्त वर्ष 23 के बजट अनुमान में जीडीपी के 2.1 प्रतिशत के बराबर पहुंच गया है, जो वित्त वर्ष 2022 के संशोधित अनुमान में 2.2 प्रतिशत था। जबकि वित्त वर्ष 21 में स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार का व्यय जीडीपी का 1.6 प्रतिशत था।
आँकड़ों की नज़र से देखें तो सामाजिक सेवाओं पर होने वाले कुल खर्च में स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले व्यय की हिस्सेदारी वर्ष 2019 के 21 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 के बजट अनुमान में 26 प्रतिशत हो गई है। इसी दौरान स्वास्थ्य पर कुल व्यय (टीईई) में मरीजों द्वारा किए जाने वाले खर्च (आउट आफ पॉकेट एक्सपेंडीचर या ओओपीई) की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 14 के 64.2 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 19 में 48.2 प्रतिशत हो गई है। बढ़ती जनसंख्या के मान से यह प्रतिशत संशोधित होना चाहिए।
वैसे आँकड़े कहते हैं स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय, जिसमें सामाजिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम, सरकार द्वारा वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएं और सरकारी कर्मचारियों के इलाज पर हुए खर्च के भुगतान की योजना का खर्च शामिल है, वित्त वर्ष 2014 के 6 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2019 में 9.6 प्रतिशत हो गया है। समीक्षा में कहा गया है कि सरकार ने स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है।
कुल स्वास्थ्य व्यय में सरकार का स्वास्थ्य पर किया गया व्यय वित्त वर्ष 2014 के 28.6 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2019 में 40.6 प्रतिशत पर पहुंच गया है और इसकी वजह से लोगों द्वारा स्वास्थ्य पर अपनी जेब से किए गए खर्च के प्रतिशत में कमी आई है। कहने को पिछले 8 साल के दौरान उप केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) की संख्या बढ़ी है, पर जनसंख्या भी।
ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में कुछ सुधार हुआ है। इस दौरान डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े अन्य कर्मचारियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इसकी वजह से कुल मिलाकर स्वास्थ्य संबंधी संकेतकों जैसे अस्पताल में बच्चे के जन्म, टीकाकरण, स्वास्थ्य बीमा के कवरेज में सुधार हुआ है, जिसकी जानकारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस) के आंकड़ों से मिलती है।
सरकार का दावा है कि आयुष्मान भारत कार्यक्रम के तहत 1,50,000 स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र (एचडब्ल्यूसी) 31 दिसंबर 2022 तक चालू हो गए थे और आयुष्मान भारत कार्यक्रम के लाभार्थियों की संख्या 22 करोड़ पहुंच गई है। समय बताएगा इसका कितना लाभ देश को मिलता है। ओओपीई घटाने, दवाओं की कीमत घटाने के मकसद से नवंबर 2022 में राष्ट्रीय औषधि मूल्य प्राधिकरण द्वारा आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची- 2022 में 119 दवाओं के दाम निर्धारित किए गए हैं।
इसके साथ ही 2,196 फॉर्म्युलेशन के खुदरा दाम डीपीसीओ- 2013 के तहत निर्धारित किए गए हैं। करीब 9,000 जन औषधि केंद्रों के माध्यम से 1,749 दवाएं और और 280 सर्जिकल डिवाइस सस्ती कीमत पर मुहैया कराए जा रहे हैं। सवाल बढ़ती जनसंख्या और इनकी सुलभ उपलब्धता की दिशा में बहुत कुछ किया जाना शेष हैं।(मध्यमत)
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