राकेश अचल
मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल का बहुप्रतीक्षित विस्तार आज हो गया और इसमें भाजपा और भाजपा में विलीन हुए कांग्रेस के पूर्व विधायक अपने-अपने तरीके से कुर्सियां पा गए। मुख्यमंत्री होते हुए भी शिवराज सिंह अपनी पसंद के लोगों को मंत्री नहीं बना सके जबकि सौ दिन पहले भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपेक्षा से अधिक समर्थक मंत्रिमंडल में शामिल करा लिए। मेरे हिसाब से ये मंत्रिमंडल पीपीपी मॉडल का मंत्रिमंडल है अर्थात अब जिसे अपनी कुर्सी बचाना है वो विधानसभा के उपचुनावों में अपने हिसाब से नतीजे लाकर दे।
कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कुल छह मंत्री थे लेकिन भाजपा की शिवराज सरकार में उनके एक दर्जन से अधिक समर्थक मंत्री हैं। इस लिहाज से आप इसे महाराज की सरकार भी कह सकते हैं। ये ज्योतिरादित्य सिंधिया का ही कमाल है की उन्होंने अपने अनुभवी समर्थकों के साथ है अनगढ़ समर्थकों को भी मंत्री बनवाने में कामयाबी हासिल कर ली। उनके आड़े न तो ग्वालियर-चंबल में भाजपा के क्षत्रप माने जाने वाले नरेंद्र सिंह तोमर आये और न मालवा तथा महाकौशल के क्षत्रप। सबने एक हैराँकुन चुप्पी साध ली।
नए मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के कितने समर्थक हैं ये गणना आसानी से की जा सकती है। वे हैं ही गिनती के। नए 28 मंत्रियों में सिंधिया समर्थकों की संख्या ज्यादा है। जाहिर है कि ये मंत्रिमंडल केवल सौ दिनों के लिए ही है। उपचुनावों के नतीजे आने के बाद यदि भाजपा की सरकार अपना वजूद बनाये रखती है तो इसे पुनर्गठित किया जाएगा। ये मौक़ा होगा जब शिवराज एक बार फिर इसे अपने ढंग से गठित कर सकें लेकिन ये तभी मुमकिन है जब सिंधिया के समर्थक मंत्रियों की संख्या चुनाव के बाद कम हो।
भाजपा को ग्वालियर-चंबल संभाग से 16 सीटों से उप चुनाव लड़ना है। मालवांचल की कोई चार-पांच सीटें ही हैं, इसलिए पिछले कमलनाथ मंत्रिमंडल में जहां भिंड, मुरैना, शिवपुरी और अशोकनगर का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था वहीं अब इन जिलों में कम से कम दो मंत्री हैं। इन मंत्रियों पर खुद जीतने के अलावा आस-पड़ोस की सीटें जिताने का दारोमदार भी होगा। सिंधिया को इन नए मंत्रियों की मौजूदगी से परोक्ष लाभ ये होगा की वे अब मुख्यमंत्री की तरह ही चुनावी घोषणाएं कर सकेंगे।
भिंड में कांग्रेस से भाजपा में आये ओपीएस भदौरिया मंत्री बने तो आरएसएस के अरविंद भदौरिया को भी मंत्री बनाया गया। मुरैना में दिग्विजय सिंह के समर्थक रहे ऐदल सिंह कंषाना के साथ गिर्राज दंडोतिया को भी मंत्री बनाया गया। ग्वालियर में इमरती देवी और प्रद्युम्न सिंह तोमर के अलावा नरेंद्र सिंह तोमर के समर्थक भरतसिंह कुशवाह भी मंत्री बनाये गए। शिवपुरी में यशोधरा राजे सिंधिया मंत्री बनीं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक सुरेश धाकड़ भी मंत्री बने। गुना और अशोकनगर में भी यही स्थिति बनी। इस लिहाज से अब मंत्रिमण्डल में सिंधिया शिवराज सिंह के बराबर हैं।
कहा जाता है की सिंधिया ने बिसाहूलाल, बृजेन्द्र प्रताप सिंह और हरदीप सिंह डंग की भी नैया पार लगवा दी। भाजपा में इस मंत्रिमंडल को लेकर भयंकर असंतोष है लेकिन कोई मुंह खोलने की स्थिति में नहीं है। एक उमा भारती ने कुछ बात कही है लेकिन उसका कोई महत्व इसलिए भी नहीं है क्योंकि उमा भारती खुद पार्टी में हाशिये पर हैं और उनके दामन पर भी पार्टी से बगावत का दाग लगा हुआ है। कैलाश विजयवर्गीय जैसे क्षत्रप इस मंत्रिमंडल विस्तार से तिलमिलाकर रह गए हैं। उनके समर्थक मंत्री पद से वंचित कर दिए गए हैं।
शिवराजसिंह मंत्रिमंडल में दो उप मुख्यमंत्री बनाये जाने की अटकलें निराधार साबित हुईं, क्योंकि भाजपा हाईकमान ने इसे स्वीकार नहीं किया। समझा जाता है कि अब विधानसभा उपचुनावों के नतीजे आने के बाद मौजूदा मंत्रिमंडल, मुख्यमंत्री और ज्योतिरादित्य सिंधिया के भविष्य को नए सिरे से मूल्यांकन के लिए कसौटी पर कसा जाएगा। सिंधिया यदि अपने अंचल की सोलह में से सोलह सीटें ले आयें तो उन्हें उत्तीर्ण माना जाएगा, शेष सीटों को जिताने का जिम्मा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के ऊपर रहेगा। हालाँकि ये सीटें भी सिंधिया के समर्थकों की ही हैं।
भाजपा के सामने अब पार्टी के अंदरूनी असंतोष को समाप्त करने और सिंधिया का झंडा ऊंचा बनाये रखने की जिम्मेदारी है। सिंधिया की सफलता और असफलता का ठीकरा फूटेगा भाजपा नेताओं के सर पर ही, सिंधिया के दोनों हाथ में लड्डू हैं। वे खुद राज्य सभा पहुंच कर अपना भविष्य सुनिश्चित कर चुके हैं, रही उनके समर्थकों की बात तो उसके लिए भी वे जितना बन पड़ेगा करेंगे ही। जातीय गणित उन्होंने अपने ढंग से बना ही दिया है।
जैसे भिंड में डॉ. गोविंद सिंह का असर कम करने के लिए दो ठाकुरों को मंत्री बनवा दिया। मुरैना में पिछड़ा वर्ग और ब्राम्हणों को अपने साथ रखने के लिए एक गुर्जर और एक ब्राह्मण को मंत्री बनवा दिया। ग्वालियर में उनका साथ छोड़कर गए लाखन सिंह की कमी पूरी करने के लिए पिछड़े वर्ग से भरतसिंह कुशवाह को मंत्री बनवाया तो शिवपुरी में अपनी बुआ यशोधरा राजे के अलावा सुरेश धाकड़ को भी मंत्री पद दिलवा दिया। गुना और अशोकनगर में भी वे अपने समर्थकों को मंत्री बनवाने में कामयाब रहे, यहां तक कि उन्होंने अपने अंचल से दूर राजवर्धन सिंह को भी मंत्री बनवा लिया।
मध्यप्रदेश का इतिहास उठाकर देखिये तो पाएंगे की सिंधिया परिवार आज जितना ताकतवर होकर उभरा है वैसा पहले न कांग्रेस के समय में उभरा और न भाजपा के समय में। एक तरह से अब भाजपा में सिंधिया सरकार वजूद में है। ये वजूद कब तक कायम रह पाएगा ये समय ही बताएगा।
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टीम मध्यमत